मनोरंजक कथाएँ >> ईमानदार देवदास ईमानदार देवदासदिनेश चमोला
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बाल कहानी संग्रह....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ईमानदार देवदास
तुंगभद्रा नदी के किनारे एक गरीब नाविक रहता था। नाम था देवदास। वह बहुत
ही ईमानदार, दयालु व सच्चा था। अपनी सत्यवादिता के कारण वह अत्यन्त गरीब
था। दूसरे नाविक झूठ का सहारा लेकर खूब धन कमाते थे। जबकि देवदास ईमानदारी
से प्राप्त धन को भाग्य का फल मान सन्तुष्ट रहता।
बहुत मेहनत करने पर भी देवदास के परिवार को दो जून की रोटी कठिनाई से ही जुट पाती। परिवार में देवदास के अलावा सभी लोग गरीबी से दुखी थे। बरसात में नदी में बाढ़ आ जाती तो नाव में बैठने वालों की संख्या कम हो जाती। देवदास ईमानदारी से होने वाली दो पैसे की कमाई से भी हाथ धो बैठता। दूसरे शहरों में नाव ले जाने पर वहाँ कर (टैक्स) देना होता था, जिसके डर से देवदास हर बार ही भगवान् द्वारा भेजी गई सवारी की प्रतीक्षा दिन रात करता रहता।
दिन निकलने से पहले ही तुंगभद्रा नदी के किनारे-किनारे दूर तक हो आना, दिन भर सवारियों की तलाश करना और शाम को निराश हो घर लौटना ही कई दिनों से देवदास की दिनचर्या हो गई थी। देवदास की पत्नी देवप्रभा को अब वह फूटी आँख न सुहाता। स्वार्थ का संसार जो ठहरा। यह बात मन-ही-मन देवदास भी जानता था। लेकिन तुंगभद्रा के इर्द-गिर्द चक्कर काटने के सिवाय उसके पास और चारा भी क्या था। इसलिए बहुत देर तक भी कुछ न मिलने पर वह घंटों भगवान् की भक्ति करता रहता।
एक बार नदी में भयानक बाढ आई। तुंगभद्रा के उत्तर में एक भयानक जंगल था जहाँ अनगिनत विषैले साँप रहते थे उनके डर से कोई नाविक कभी उस दिशा की ओर न जाता था नदीं में कई-कई साँप भी बहकर आए जिनके डर से आसपास के सभी नाविक अपनी-अपनी नावें छोड़कर अपने घरों को चले गए। संयोग से उस, दिन देवदास नदी पर कुछ विलम्ब से पहुंचा।
तब तक सैकड़ों साँप पानी में बह गए थे। यह बात देवदास को नहीं मालूम थी। नदी के तट पर पूजा-अर्चना करने के बाद देवदास ने एक विशाल सर्पराज को नदी के पानी में बहते देख। देवदास ने इतना विशालकाय साँप पहले कभी न देखा था, जो बहते पानी में बार-बार अपना सिर ऊपर निकाल रहा था। देवदास को लगा कि अवश्य नागराज सहायता के लिए ही अपना सिर उठा रहा है।
बहुत मेहनत करने पर भी देवदास के परिवार को दो जून की रोटी कठिनाई से ही जुट पाती। परिवार में देवदास के अलावा सभी लोग गरीबी से दुखी थे। बरसात में नदी में बाढ़ आ जाती तो नाव में बैठने वालों की संख्या कम हो जाती। देवदास ईमानदारी से होने वाली दो पैसे की कमाई से भी हाथ धो बैठता। दूसरे शहरों में नाव ले जाने पर वहाँ कर (टैक्स) देना होता था, जिसके डर से देवदास हर बार ही भगवान् द्वारा भेजी गई सवारी की प्रतीक्षा दिन रात करता रहता।
दिन निकलने से पहले ही तुंगभद्रा नदी के किनारे-किनारे दूर तक हो आना, दिन भर सवारियों की तलाश करना और शाम को निराश हो घर लौटना ही कई दिनों से देवदास की दिनचर्या हो गई थी। देवदास की पत्नी देवप्रभा को अब वह फूटी आँख न सुहाता। स्वार्थ का संसार जो ठहरा। यह बात मन-ही-मन देवदास भी जानता था। लेकिन तुंगभद्रा के इर्द-गिर्द चक्कर काटने के सिवाय उसके पास और चारा भी क्या था। इसलिए बहुत देर तक भी कुछ न मिलने पर वह घंटों भगवान् की भक्ति करता रहता।
एक बार नदी में भयानक बाढ आई। तुंगभद्रा के उत्तर में एक भयानक जंगल था जहाँ अनगिनत विषैले साँप रहते थे उनके डर से कोई नाविक कभी उस दिशा की ओर न जाता था नदीं में कई-कई साँप भी बहकर आए जिनके डर से आसपास के सभी नाविक अपनी-अपनी नावें छोड़कर अपने घरों को चले गए। संयोग से उस, दिन देवदास नदी पर कुछ विलम्ब से पहुंचा।
तब तक सैकड़ों साँप पानी में बह गए थे। यह बात देवदास को नहीं मालूम थी। नदी के तट पर पूजा-अर्चना करने के बाद देवदास ने एक विशाल सर्पराज को नदी के पानी में बहते देख। देवदास ने इतना विशालकाय साँप पहले कभी न देखा था, जो बहते पानी में बार-बार अपना सिर ऊपर निकाल रहा था। देवदास को लगा कि अवश्य नागराज सहायता के लिए ही अपना सिर उठा रहा है।
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