अतिरिक्त >> कहानी अभी खत्म नहीं हुई कहानी अभी खत्म नहीं हुईराधा विश्वनाथ
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यह कहानी नहीं बल्कि एक सच्चाई है। नारी को जब सीमा से अधिक दबाया जाता है तो कभी-कभी वह उठकर खड़ी हो जाती है और तब उसकी सहज सामर्थ्य जागृत हो जाती है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अपनी बात
यह कहानी नहीं बल्कि एक सच्चाई है। नारी को जब सीमा से अधिक दबाया जाता है
तो कभी-कभी वह उठकर खड़ी हो जाती है और तब उसकी सहज सामर्थ्य जागृत हो
जाती है।
ऐसी ही कहानी है यह —शिक्षा, सभ्यता और छद्म संस्कृति से दूर तमाम रुढ़ियों और परम्पराओं से घिरे उस गांव की एक चम्पा की, जो प्रकृति, परिवेश, परिवार और समाज सबसे लड़ती है और लड़-भिड़कर जब अपने व्यक्तित्व को निखारती है तो वह व्यक्तित्व किसी सभ्य, सुसंस्कृति और नागरिक जीवन को जीने वाली नारी से कम प्रभावशाली नहीं होता।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन में स्त्रियों और पिछड़े वर्ग के लोगों को साक्षर और जागृत करने का लक्ष्य प्रारम्भ से ही रखा गया है। अक्षर और ज्ञान को महिलाएँ अपने विकास का साधन बनाएंगी और इस लक्ष्य की पूर्ति में यह मेरी पुस्तक उन्हें एक नया रास्ता दिखाएगी। इसी आशा के साथ उन्हीं दबी, पिछड़ी नारियों को यह पुस्तक समर्पित है। हमें विश्वास है कि इस प्रकार की नारियां अपने समाज में हैं और इन नारियों की कहानी न तो अभी खत्म हुई है और न आगे अभी कुछ दिनों तक खत्म होगी।
ऐसी ही कहानी है यह —शिक्षा, सभ्यता और छद्म संस्कृति से दूर तमाम रुढ़ियों और परम्पराओं से घिरे उस गांव की एक चम्पा की, जो प्रकृति, परिवेश, परिवार और समाज सबसे लड़ती है और लड़-भिड़कर जब अपने व्यक्तित्व को निखारती है तो वह व्यक्तित्व किसी सभ्य, सुसंस्कृति और नागरिक जीवन को जीने वाली नारी से कम प्रभावशाली नहीं होता।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन में स्त्रियों और पिछड़े वर्ग के लोगों को साक्षर और जागृत करने का लक्ष्य प्रारम्भ से ही रखा गया है। अक्षर और ज्ञान को महिलाएँ अपने विकास का साधन बनाएंगी और इस लक्ष्य की पूर्ति में यह मेरी पुस्तक उन्हें एक नया रास्ता दिखाएगी। इसी आशा के साथ उन्हीं दबी, पिछड़ी नारियों को यह पुस्तक समर्पित है। हमें विश्वास है कि इस प्रकार की नारियां अपने समाज में हैं और इन नारियों की कहानी न तो अभी खत्म हुई है और न आगे अभी कुछ दिनों तक खत्म होगी।
-राधा विश्वनाथ,
कहानी अभी खत्म नहीं हुई
समय के साथ सब कुछ भूल सा जाता है लेकिन कुछ ऐसा ही है, जो कभी नहीं
भूलता, बल्कि जीवन भर साथ-साथ चला करता है। मुझे अपना ननिहाल याद है, अपने
नाना-नानी याद हैं। नदी के किनारे पर बना अपने नाना का घर याद है। वह नदी
का घाट याद है, जिस घाट पर खड़ी होकर चंपा बड़ा जोर से मुझे बुलाती
थी—‘‘शीलू....’’
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