लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


वहाँ से बाहर आते ही जिल ने कहा, "देख लिया न? लोग तुम्हें कितना प्यार करते हैं! देखा न, कितनी दूर...रियूनियन, दुनिया के पार का देश, वहाँ के लोग भी तुम्हें पहचानते हैं।"


“हाँ, देखा! ऐसा प्यार देखकर, मेरा मन-प्राण भर उठता है।"

जिल ने कहा. "बडे-बडे राजनीतिक तमसे मिलने के लिए लाइन में खडे रहते हैं। वह सब टीवी में दिखाने के लिए, अख़बार में छपवाने के लिए उतावले रहते हैं। अरे, उन लोगों का स्वार्थ है इसमें! आज तुम्हारा नाम न होता तो कोई तुम्हें पहचानता भी नहीं, लेकिन हाँ, ये जो आम लोग हैं, रेस्तराँ में नज़र आ रहे हैं, इनका प्यार बिल्कुल खरा है।"

मेरे मन में छूटते ही एक और सवाल जाग उठा-अगर नाम न होता तो आम लोग भी भला यह सव करते, जो कर रहे हैं? लेकिन यह सवाल मैंने जान-बूझकर नहीं किया। यह सवाल करते ही, पलट सवाल किया जाएगा कि यह जो जिल, स्ट्रसबुर्ग सिर्फ मुझसे मिलने आई है? लेकिन वह भी क्या आती, अगर मेरा बूंद-भर भी नाम नहीं होता?

अगर मैं नामहीन, यशहीन इंसान होती, लेकिन मेरा मन उदार होता, मेरा दिल सच्चा होता, मुझमें ढेर सारी ईमानदारी होती, मैं बेहद मित्र-परायण होती, सहनशील होती, मुझमें संयम होता तो क्या मुझे कोई मित्र नहीं मिलता? सच्चा दोस्त या सच्ची सहेली नसीब नहीं होती? मुझे लगता है कि मैं वह सच्चा मित्र खो रही हूँ, क्योंकि असली 'मैं' तो ढाका में आँखें चौंधियाने वाली उस नामी-गिरामी 'मैं' की आड़ में गुम हो गई है।

उसका कहना है, परदेश में वह सुखी है,
बीच-बीच में वह हँसती है,
पागलों की तरह!
इस-उसको करती है प्यार,
और घास पर फैला देती है प्यार की जड़ें!
लेकिन घास क्या पकड़ पाती है प्यार की जड़ें?
बुद्ध कहीं की!
पत्थर पर अगर रोपी जाए सपनों की पौध,
आँखों के आँसुओं से सींचकर,
क्या कभी घटती है छाया-दुःखों की?

जिंदगी में मैं कभी किसी व्यक्तिगत विमान पर नहीं चढ़ी! ऐसा पहला मौका है! व्यक्तिगत विमान स्टॉकहोम के बर्फ-ढके 'ब्रोम्मा' हवाई अड्डे से अलस्सुबह ही जर्मनी की तरफ रवाना हो गया। मैं कुक्सहेवेन पहुँच गई। मेरे साथ कैलिफोर्निया से पीटर और नॉर्वे से हान्स शील्डे भी थे। दोनों ही जर्मन! हान्स मुझ पर डॉक्यूमेंटरी बना रहा है। यह जिम्मेदारी उसे जर्मन टेलीविजन ने सौंपी है। पीटर अपना भारी-भरकम कैमरे समेत गॉल्फ के मैदान से उड़कर सीधे स्टॉकहोम आया। पीटर शौकिया गॉल्फ खिलाड़ी भी है। उम्र पचास से ऊपर! लगभग पच्चीस सालों से कैलिफोर्निया में रह रहा है। मेरे अनगिनत देशों के भ्रमण की तस्वीरें हान्स ने कैमरे में बंद की हैं। बस. जर्मनी-यात्रा की तस्वीरें उतार ले तो उसका शौक, सोलह कला पूर्ण हो जाएगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book