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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


सेंट जॉन का गिरजा, अरवी स्थापत्य में निर्मित है। गिरजे के भीतर बाइबिल की जो कहानी लिखी गई है, उसके पात्र-पत्रिकाओं की पोशाकें भी अरवी! भूमध्य अंचलों के पश्चिमी लोग ईशू-मेरी को आँकते हुए, उनके सिर पर सुनहरे वाल और आँखों का रंग नीला दिखाया जाता है यानी उन्हें बदस्तूर पश्चिमी बनाकर ही दम लेते हैं। कहीं सब देखते-देखते अचानक विल्कुल भिन्न पोशाक, भिन्न चेहरे में गोल-मटोल दम्वे की बगल में खडे ईश को देखकर खटका लगा। सिर्फ गिरजा ही नहीं, मैं कैयूचिन कैटाकंब देखने भी दौड़ गई। बेहद खूबसूरत जगह है। वहाँ सत्रहवीं से उन्नीसवीं सदी की लगभग आठ हजार 'ममी' मौजूद हैं। उन 'ममी' को काफी गर्म हवा में रखा जाता था। इसके बाद मैं मध्ययुग में आँकी गई पेंटिंग्स और निर्मित मूर्तियों से सजी, कैटलान-गॉथिक स्टाइल की क्षेत्रीय गैलरी की तरफ दौड़ पड़ी। वहाँ म्यूजिओ आर्किओलॉजिको, पालात्यो द नॉर्मनी भी देखा। नॉर्मनी के प्रासाद में आजकल लोकल पार्लियामेंट बैठती है। विशाल दुर्ग, गुंबद वगैरह नॉर्मन जमाने के हैं। नॉर्मन लोगों ने सन् 1072 में हस्तगत किया था। इसके बाद राजा रॉजर द्वितीय ने प्रासाद की निचली मंजिल में सन् 1130 से 1140 में अरबी स्टाइल का निर्माण किया। दस प्राचीन खंभों पर घोड़े की खुर के आकार के तोरण! देखने में बेहद खूबसूरत! दीवारों और गुंबदों पर मोजैक का काम इस कदर खूबसूरत है कि उन्हें देख-देखकर आँखें नहीं भरती, मन होता है कि मैग्निफाइंग ग्लास लेकर, मैं दिन-भर वहीं बैठी रहूँ। दसरी मंजिल पर राजा रॉजर द्वितीय के कमरे में जैक में निर्मित शतरंज की बिसात आँकी हुई है। अच्छा, उस राजा को क्या शतरंज का खेल पसंद था? शायद! यूरोप के राजा-बादशाह न केवल शिल्प-स्थापत्य की कद्र करते थे, बल्कि हम सबको खासी सहूलियत दे गए हैं, वरना मुझे मोजैक में, ऐसी अद्भुत-अद्भुत पेंटिंग, मूर्तिकला और स्थापत्य देखने का मौका कैसे मिलता?

पालेरमोर का प्रसिद्ध 'कोनका दोरा' अब मौजूद नहीं है। पहाड़ और समुद्र के किनारे, नीबू और संतरे के अरण्य का नाम था-कोनका दोरा! इस शब्द का अनुवाद होगा-सनहरा शंख! समूचा इलाका नीबू और संतरों की फसल से सनहरा बना रहता था। आजकल सिसिली के अमीर लोग यहाँ मकान बनाकर रहने लगे हैं। इतनी जगहों के होते हुए, कोनका दोरा में क्यों? शायद यह जगह हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रही है, इसलिए यहाँ लोग आ बसे और संतरों की खेती किसी और जगह चालान कर दी। मुझे जाने कैसा तो शक होने लगा है कि कोनका दोरा में माफिया लोग रसे-बसे हैं, लेकिन अब मैंने इस बारे में आन्तोनेला से कुछ नहीं पूछा। बहरहाल कोनका दोरा अब नहीं रहा, लेकिन, वह पुरानी घोडागाड़ी अभी भी मौजूद है। घोड़े के सिर पर रंगीन मुकुट पहनाकर, घोड़े को ढेरों रंगों से सजाकर, उसे रंग-बिरंगा बनाकर, सिसिलियन लोगों ने अपने बाप-दादों के जमाने की शान को अभी भी संरक्षित रखा है। टिन से निर्मित फौज और सेठ-सामंत भी दुकानों में झूलते रहते हैं, मानो हाथ में ढाल-तलवार लिए एक-एक विजेता सेनापति खड़े हों। ये लोग किस जंग की फौज हैं, कौन जाने! इस देश में जंग तो कम नहीं हुई।

आन्तोनेला मुझे पहाड़ के ऊपर चट्टान काटकर निर्मित गिरजाघर दिखाने ले गई। किसी जमाने में सिसिली में महामारी का प्रकोप फैल गया था। प्लेग के शिकार होकर लाखों लोग मर गए। उन दिनों उस गिरजा की किसी नन ने सिसिली के लोगों को जाने कौन-सी दवा पिलाकर उन लोगों की जान बचाई थी। आजकल इस गिरजे के उसी नन की मूर्ति के पैरों पर लोग-बाग रुपए-पैसे-जेवर वगैरह चढ़ाते हैं। रोग-वीमारी में आज भी लोग इसी नन का आसरा-भरोसा करते हैं। इस गिरजे के बाहर एल्यूमिनियम के बने खिलौनों, हाथ-पाँवों की विक्री होती है। जिस भी व्यक्ति को पैर की कोई तकलीफ है, वह एक पाँव खरीदकर, उस मूर्ति के सामने रख देता है। उनके मन में यह विश्वास होता है कि यह नन, भगवान से सिफारिश करके, उनकी रोग-तकलीफ दूर कर देगी। भई, कुसंस्कार क्या सिर्फ भारत और बांग्लादेश में ही प्रचलित हैं?

पहाड़ के शिखर से समुंदर का नीला-नीला पानी, पानी में जैतून के पत्ते जैसी तैरती हुई मल्लाहों की नावें! यह दृश्य देखकर मेरा मन तरोताज़ा हो आया। आजकल पालेरमोत में फ्रेंच सैलानी आते हैं। लड़कियाँ-औरतें बिकनी पहनकर, भूमध्य सागर में नहाने उतरती हैं। कोई-कोई बिकनी भी उतारकर, बिल्कुल नंग-धडंग मुद्रा में लेटे-लेटे, धूप सेंकते रहते हैं। मैं ठहरी धूप-जली इंसान! धूप सेंकने वाली सैलानी नहीं हूँ। मैं तो यहाँ लोगों के चेहरे देखने आई हूँ, इंसानों की जिंदगी की जीवनशैली देखने-समझने आई हूँ। अगर कभी मन उदास हो तो जैतून के पेड़ की छाँव में लेटे-लेटे आसमान निहारने आई हूँ।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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