| जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
 | 
			 419 पाठक हैं | |||||||
औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
 शाम हो आई।
 
 टाउनहॉल में एमनेस्टी की सभा है! मुझे भाषण देने जाना है। वैसे भाषण देने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं होता। यह अनुरोध मानना मेरे लिए मेरे लिए मानो पत्थर निगलने जैसा है, लेकिन अब क्या उपाय? शाम की शिफ्ट में फ्रांचेस्का नामक एक नई महिला-पुलिस ड्यूटी पर आई है। वह भी उसी तरह पिस्तौल नचाने वाली लड़की है! कार्यक्रम शाम छ: बजे शुरू होने वाला था, लेकिन शुरू हुआ रात सात बजकर पाँच मिनट पर! मतलब बांग्लादेश के नियम जैसा! क्लॉदिया, क्लॉरेलेनटीना और मैं! हम सब नारी-स्वाधीनता के मुद्दे पर गुरु-गंभीर बातचीत में मगन हो उठीं। दर्शक भी उत्तेजित हो उठे । दर्शकों की कतार में एरेसी, पावलो, सामंथा, एलिजावेथा, एलेक्जेन्द्रा, मासिमो-जिन-जिन लोगों से इस दौरान मेरी जान-पहचान हो चुकी थी, वहाँ मुझे सभी लोग नज़र आए।
 
 मैंने मौका देखकर, सबरीना को अपने पास बुलाकर पूछा, “आन्तोनेला कहीं नज़र नहीं आ रही है-?"
 
 सबरीना ने जवाब दिया, “उसको कोई ज़रूरी काम आ पड़ा था। वह घर गई है।"
 
 कार्यक्रम खत्म हो जाने के बाद, मैंने सबरीना को दुबारा धर दबोचा, “क्यों? आन्तोनेला लौट आई?"
 
 सबरीना ने हताश मुद्रा में सिर हिलाया, “ना-अभी नहीं लौटी।"
 
 एमनेस्टी दल ने फैसला किया कि वे लोग मुझे रेस्तराँ में खिलाने ले जाएँगे, लेकिन जो औरत दिन-भर मेरे साथ रही, वह अचानक अनुपस्थित हो, इसके लिए मेरे मन ने साथ नहीं दिया। किसके साथ, कहाँ, कोई गड़बड़ हो जाए, कौन जाने! मुझे बेहद गुस्सा आया। यूरोप की ये सब सभ्य संस्थाओं में अंदर-ही-अंदर कितनी कुछ असभ्यता पलती रहती है, यह मैं इतने दिनों में थोड़ा-बहुत समझ चुकी हूँ। मुझे हताश-निराश खड़े देखकर, सवरीना मेरे करीब आई। वह भी पत्थर की मूरत की तरह मेरे सामने निश्चल खड़ी रही।
 
 "तुम कुछ कहोगी?" मैंने झुंझलाकर पूछा।
 
 सबरीना ने धीमी आवाज में बताया, “आन्तोनेला के भाई के बीवी-बच्चों को करीब दो घंटे पहले माफिया के लोगों ने मार डाला है। अभी हम दो-एक लोगों के अलावा यह खबर कोई नहीं जानता।"
 
 मुझे लगा, जैसे किसी ने मेरे पेट में छुरा घोंप दिया हो। मुझे साँस लेने में तकलीफ होने लगी।
 
 “यह तुम क्या कह रही हो?" मेरी जुबान से बमुश्किल निकला।
 
 “स्टेफानो, आन्तोनेला का भाई, माफिया का आदमी था। कुछ महीनों पहले, पुलिस उसे पकड़कर ले गई। इन दिनों वह जेल में है। उसने फैसला किया था कि वह माफिया लोगों के बारे में जितना कुछ जानता है, सारा कुछ जज साहब को बता देगा। यह खबर उन लोगों तक पहुँच गई और उन लोगों ने उसके इस फरेब का बदला लेने के लिए, उसके बीवी-बच्चों को मार डाला।"
 			
| 
 | |||||
- जंजीर
- दूरदीपवासिनी
- खुली चिट्टी
- दुनिया के सफ़र पर
- भूमध्य सागर के तट पर
- दाह...
- देह-रक्षा
- एकाकी जीवन
- निर्वासित नारी की कविता
- मैं सकुशल नहीं हूँ

 
 
		 





 
 
		 

 
			 

