लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


दोपहर को हम मछली के मशहूर रेस्तराँ में पहुँचे। जाने कितनी समुद्री मछलियाँ नहीं खाई क्योंकि वह यहूदी है। मैं चकित हो उठी। जिसका जन्म ही समद्र की छाती पर हुआ हो। वह समुद्री मछलियाँ खाए बिना जीवन कैसे गुज़ार सकता है? और मैं मुसलमान घर में जन्म लेने के बावजूद सूअर का माँस तो खाती ही हूँ, वेनिस में बैठकर तरह-तरह के घोंघे, सीपी, ऑक्टोपस भी नहीं छोड़ती। सबसे ज्यादा परेशानी की बात यह है कि वेनिस पहुँचने के बाद से ही पाँच कैमरामैन दिन-भर मेरा पीछा करते रहे, पागलों की तरह हज़ारों तस्वीरें उतारते रहे। पता नहीं, इतनी-इतनी तस्वीरें लेकर, इनका अखबार और पत्रिकाएँ क्या करेंगी? मैं उन लोगों को इतना-इतना रोकती रही, मगर उन लोगों ने रुकने का नाम ही नहीं लिया। मैं खाना चबा रही हूँ। निगल रही हूँ, वे लोग इन सबकी भी तस्वीरें लेते रहे। बहरहाल खाना-पीना निबटाकर, हमने जल-टैक्सी ली, कभी पैदल ही पैदल, शहर घूमती रही। स्क्वायर और थियेटर परिदर्शन करते हुए, 'घेटो' लोगों के किस्से सुनती रही। 'घेटो' शब्द कहाँ से आया है, जानते हैं? वेनिस के इसी इलाके का नाम है-'घेटो! यहाँ कभी यहूदी रहा करते थे। वेनिस में नेपोलियन के आगमन से पहले, यहाँ का राजा यहूदियों पर घोर अत्याचार बरसाता था। उन लोगों को अक्सर इसी इलाके में कैद रखा जाता था। उन लोगों को बाहर भी निकलने नहीं दिया जाता था। रात के वक्त इस इलाके का गेट बंद करके जल-पुलिस पहरा दिया करती थी। अगर कोई यहूदी भागने की कोशिश करता तो, तो उसे गोली मार दी जाती थी। चूँकि वहाँ यहूदी लोग उँसी-उँसी हालत में रहते थे, इसलिए आजकल किसी भी बस्ती का और एक नाम घेटो है। नेपोलियन ने आकर यहूदियों को मुक्त किया।

टेलीविजन कैमरे वाले सामने खड़े थे। वे मेरा इंटरव्यू लेंगे ही लेंगे। वेनिस टेलीविजन में न्यूज जो देना होगा।

वेनिस शहर सौ द्वीपों को लेकर गढ़ा गया है। आर्मेनियन लोग एक पूरे द्वीप के मालिक हैं। उन लोगों के कॅन्वेंट, चर्च वगैरह सभी उस द्वीप में मौजद हैं। आर्मेनिया से काफी संख्या में लोग यहाँ पढ़ने आते हैं। उन्हीं आर्मेनियन के कल्चरल सेंटर में मेरे कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था। प्रचुर दर्शक और श्रोता! एक नजदीकी व्यक्ति और दर्शन के एक प्रोफेसर ने अपना वक्तव्य रखा! दर्शन के प्रोफेसर लेखक भी थे। उन्होंने 'लज्जा' के बारे में भी वक्तव्य दिया। दूसरा व्यक्ति झटाझट उसका अनुवाद भी करता जा रहा था। मुझे घोर अचरज भी हुआ कि इस वेनिस शहर में बैठे-बैठे। इस दूर-दूरान्तर समुद्री तट पर 'लज्जा' किताब पर गंभीर बातचीत हो रही है। उसके बाद मेरा भाषण! प्रश्नोत्तर पर्व भी खासा जमा। सभी गंभीर श्रोता थे। नहीं, दुनिया में नाम हो गया है, इसलिए वे लोग मेरी सिर्फ सूरत देखने नहीं आए थे। वहाँ कुछेक वामपंथी लड़के भी मौजूद थे। उनके सवाल सुनकर मुझे बेहद अच्छा लगा। कार्यक्रम खत्म होने के बाद, जब ऑटोग्राफ देने और किताबों पर दस्तखत करने का दौर जारी था, चंद अधेड़ और काफी सारे नौजवानों ने बताया कि वे लोग वेनिस शहर के नहीं हैं, बल्कि मेरे कार्यक्रम की खबर पाकर, सेंट्रल इटली से, प्लेन से आए हैं।

एक नौजवान ने कहा, "मेरा प्रेमी मेरे साथ नहीं आ पाया। तुम अगर इस किताब पर मेरा और मेरे प्रेमी का नाम लिख दो तो मुझे बेहद खुशी होगी।"

उसके बाद उसने अपने प्रेमी का जो नाम बताया, वह किसी लड़के का नाम था।

उसने खुद ही कबूल किया, "मैं होमोसेक्सुअल हूँ!"

कितनी सहज स्वीकृति थी! मैं उसकी बात सुनकर मुग्ध हो उठी। कार्यक्रम के बाद होटल में कुछ देर आराम! इसके बाद एमनेस्टी के कई सदस्यों के आमंत्रण पर रात का खाना और उसके बाद रात के वक्त एक बार फिर वेनिस-दर्शन! रास्ते में कुछ लोग मोरक्को के सामान बेचते हए! पुलिस इस कदर गंभीर थी कि उसने एक मोरक्को शख्स को इसलिए बिल्कुल डाँट ही दिया क्योंकि वह मेरी ओर देख रहा था। वह आदमी पुलिस से उलझ पड़ा। पुलिस चूँकि सादी पोशाक में थी, इसलिए बाहर से अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था कि वह पुलिसवाला है। एक दफा तो उन दोनों में मारपीट भी हो गई। बाकायदा उसकी नाक टूट गई, जबड़े फट गए, इस कदर मारपीट हो गई। उस वक्त, जो महिला-पुलिस मेरे साथ थी। वह मुझे झटपट वहाँ से हटा ले गई। वहाँ चर्च और प्रासाद के सामने चौकोर विशाल स्क्वायर तैयार किया गया है। उसे देखकर नेपोलियन ने मंतव्य दिया था-"यह तो सर्वाधिक खूबसूरत ड्रॉइंगरूम है। इसी तरह एक्सप्लोर! एक्सप्लोर!" मैं पिछली यादों में डूब गई। गुज़रे हुए इतिहास की खुशबू लेती रही। 15वीं-16वीं शताब्दी की खुशबू! उस रात मैंने लिखा-

जल में तैरते कमल मेरे,
तू मजे में तो है न वेनिस?
लोग-बाग लिखते हैं तेरा रूप,
मैं तेरी लंबी उसाँसें!
धुले-जल में तैरता है,
पंख-टूटा, बूढ़ा बत्तख!

आधी रात टूटी नींद, सिसकियाँ सुनकर,
देखा, तू है!

जल के पिंजरे में फँसी रूपहली मछली!
कोई समझा, क्या है फ्रांस?
ना, नहीं किसी को अहसास!

पुलक उठते लोग देखकर,
जवान औरत का स्तन,
कितनों को अंदाजा, अंतस का क्षय?
तैरती रहेगी तेरे बदन पर सबके ग्रीष्म-सख की नाव,
खैर, अब यह सब सोचकर क्या होगा?
तू आराम से रहना, वेनिस!
जी चाहे, तो खेलते रहना मेरे संग,
बाकी जीवन, कष्ट-मोचन का खेल!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book