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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


हाँ, मेरे देश में दरिद्रता है, मैं इससे इंकार नहीं करती। किसी भी वजह से अपने देश की खामखाह प्रशंसा या निंदा करने जैसी कोई चीज मुझे नजर नहीं आती है। किसी भी देश में तरह-तरह की दरिद्रता मौजूद होती है। अर्थनैतिक, राजनैतिक! कहीं अध्ययन-मनन या शिक्षा की, कहीं विचारों की! हालाँकि विचारों की दरिद्रता ही सबसे बड़ी दरिद्रता होती है, लेकिन इसे दरिद्रता भला कहाँ मानी जाती है? आजकल तो आर्थिक वृद्धि को ही तरक्की की मापकाठी मान ली जाती है, इसलिए मेरा देश जब तक आर्थिक तौर पर उन्नत नहीं हो जाता, तब तक मैं उन लोगों की कतार में नहीं पड़ती। मुझे उस कतार में डाला ही नहीं जाता। भले मैं तारिका होऊँ, लेकिन सिर्फ मंच पर, मंच के बाहर नहीं। इसी लिडिंगों वाले घर में जब मैंने कदम रखा, मझे बताया गया कि नया टेलीफोन नंबर लेने के लिए दस हजार क्राउन जमा देना होगा। क्यों? इसलिए कि मैं इस देश की नागरिक नहीं हूँ, लेकिन अगर यहाँ का कोई नागरिक मुचलका लिख दे, तभी मुझे अपने नाम से टेलीफोन मिल सकता है। वैसे मुचलका लिखने के लिए मुझे पक्का भरोसा है कि मेरा प्रकाशन तैयार हो जाएगा, लेकिन हैरत है...भयंकर हैरत है, सूयान्ते वेलर ने मुझे मुचलका लिखकर नहीं दिया। नकद दस हजार क्राउन जमा देने के बाद ही मुझे टेलीफोन नंबर नसीब हो पाया। उसके बाद, उसकी नज़रों के सामने ही मुझे एक बार में पूरे छप्पन हजार रुपए का फोन बिल अदा करना पड़ा।

बिल चुकाने से पहले, मैंने सवाल भी किया, “मुझे कुछ ऐसा शक हो रहा है कि टेलीफोन कंपनी ने मेरे नाम कोई गलत बिल तो न भेज दिया हो।"

सूयान्ते ने बस एक जुमले में जवाब दे डाला, “अरे नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"

इसका मतलब यह हुआ कि मैं भूल कर सकती हूँ, कंपनी कोई भूल नहीं कर सकती। अगर मैंने इसी तरह की बात बांग्लादेश के बारे में कही होती। अगर मैंने बांग्लादेश की टेलीफोन कंपनी की किसी भूल का जिक्र किया होता तो ये लोग झट से सिर हिलाकर हामी भरते कि हाँ, उन लोगों से जरा भूल हुई होगी। स्वीडन की कोई कंपनी हरगिज गलती नहीं कर सकती। ये लोग त्रुटिहीन हैं! निष्कलंक-निष्पाप हैं। इसके बाद, मझे अपना संशय छिपाए रखना पड़ा। हाँ. मझे संशय था कि कहीं गैबी के टेलीफोन के साथ मेरा टेलीफोन मिला तो नहीं दिया गया! इससे तो कहीं गड़बड़ी नहीं हुई? कहीं उसका बिल और मेरा बिल मिला तो नहीं दिया गया। मुझे संशय-संदेह से ऊपर उठना होगा! मेरी तरफ से कोई संशय नहीं चलेगा। यह सब मैंने मन-ही-मन अपने को समझाया। अगर कोई तुम्हारी गर्दन काटना चाहे तो तुम चुपचाप अपनी गर्दन काटने देना। भई, अगर वह गर्दन काटना ही चाहता है तो गला काटने की जरूर कोई वजह होगी, इसीलिए वह काटना चाहता है! इसलिए तुम आवाज मत करो! ना, ना, हिलो-डुला मत! जो तुम्हारी गर्दन काटना चाहता है, उसे परेशान मत करो। वह स्वीड आदमी है! अमीर देश का प्राणी है! गोरी चमड़ी वाला है! भले ही वह अनपढ़ हो, चोर-बदमाश-गुंडा हो मगर वह स्वीड है! यह परिचय बहुत बड़ा परिचय है।

स्वीडन का दिया हआ कर्ट खोलस्की पुरस्कार की राशि थी एक लाख, पचास हजार क्रोनर! प्रायः नौ लाख रुपए! वे रुपए स्वीडन में ही खत्म हो गए। कुल तीन-चार महीनों में ही खर्च हो गए। कैसे खर्च हो गए, क्यों खर्च हो गए, मुझे नहीं पता। रुपयों का हिसाब-किताव करना मुझे कभी नहीं आया। अभी भी नहीं आता।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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