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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मैंने यह भी गौर किया है कि स्वीडन के लोग यह वात बड़े गर्व से घोपित करते हैं कि एक सौ अस्सी सालों से हम लोग किसी जंग से नहीं जुड़े। यहाँ तक कि दूसरे महायुद्ध में जब समस्त यूरोपीय देश उस युद्ध से जुड़े थे। स्वीडन उसमें शामिल नहीं था। इस दावे की वजह यह है कि स्वीडन दूसरे महायुद्ध में क्षतिग्रस्त नहीं हुआ, इसीलिए धनी देश के तौर पर टिका रह सका या युद्ध के फौरन बाद उस देश ने काफी सारा धन अर्जित किया। ये तमाम बातें मैंने धीरे-धीरे वाद में जानी हैं। दूसरे महायुद्ध के दौरान स्वीडन की निरपेक्ष भूमिका थी। 'निरपेक्ष' से उनका मतलव है, हम हिटलर के जर्मनी का भी समर्थन नहीं करेंगे, जर्मन-विरोधी मित्र-शक्तियों का भी पक्ष नहीं लेंगे। हम इधर भी हैं, उधर भी हैं या किसी तरफ भी नहीं हैं। हमने सिर्फ राह दी है। हमने नाज़ी फौज को स्वीडन के ऊपर से गुजरने की राह दी है। नाज़ी फौज सीधे नॉर्वे जा धमकी और नॉर्वे ध्वंस कर डाला। स्वीडन पर एक खरोंच तक नहीं आई। जब जंग ख़त्म हो गई तो ध्वंस-हाल जर्मनी में घर-मकान बनाने के लिए जिन माल-मसालों की जरूरत पड़ी, तो वहाँ के लोगों ने स्वीडन से ही खरीदा. क्योंकि यही एक देश आस-पास शान से सर उठाए खड़ा था। स्वीडन में अत्यधिक वन हैं। इसलिए वनों से काठ भेजा गया; पृथ्वी में लोहे की खानों का भंडार है, वहाँ से लोहा भेजा गया। इस तरह काठ और इस्पात बेचकर ही स्वीडन, जो एक मामूली-सा देश था, दुनिया का वेहद अमीर देश बन गया। अब वह नॉर्वे पर खूब दादागिरी करने लगा, लेकिन बाद में नॉर्वे को तेल के कुएँ मिल गए। तो वह स्वीडन से भी ज़्यादा धनी देश बन गया। अब इस तरफ डेनमार्क स्थित है, स्वीडन का छोटा भाई, उधर नॉर्वे, उसकी छोटी बहन! लेकिन, नॉर्वे को स्वीडन की छोटी बहन कहलाना बिल्कुल पसंद नहीं है। इस तरह अब दोनों देशों के बीच प्यार और नफ़रत दोनों ही तरह का रिश्ता है। स्वीडन और नॉर्वे ने जितने नाटक-नौटंकी तैयार किए हैं, उनमें से अधिकांश में यही दिखाया गया है कि एक पक्ष, दूसरे से बुद्धिमान नहीं है, बल्कि यही प्रमाणित किया है कि उनके मुकावले दूसरा देश वुद्ध है।

स्वीडन के लोग पूछते हैं, "अच्छा, बताओ तो नॉर्व के लोग रेगिस्तान में मानचित्र लेकर कों जाते हैं?"

“नहीं पता!"

“अच्छा, बताओ तो वह मानचित्र कैसा है?"

“सरेस कागज!" यह कहकर, जोर का ठहाका लगाते हैं।

असल में स्वीडन युद्धवाज़ था। रह-रहकर रूस पर टूट पड़ता था। इस देश का एक राजा था-गुस्ताव प्रथम! वैसे स्वीडन के मूल निवासी थे-माइकिंग! ये माइकिंग लोग समुद्री डाकू थे। पानी में आते-जाते जहाज-नौकाएँ, जो भी हाथ लगता था, लूट लेते थे। इसके अलावा विभिन्न देशों पर हमला बोलकर धन-दौलत लूट लाते थे। अभी ज़्यादा दिन नहीं गुज़रे, स्वीडन में बर्फ-युग ख़त्म हुआ है। कुल दस हजार साल पहले स्वीडन वर्फ तले दवा हआ था। जव यह वर्फ पिघलने लगी तो पूरव और दक्षिण से लोग-वाग आकर वहाँ रच-बस गए। जब इंसानों की रिहाइश शुरू हो गई तो पापाण युग शुरू हुआ। उसके बाद ताम्र युग! उसके बाद लौह युग! बारह सौ वर्षों के वाद स्वीडन की नींव पड़ी। उन दिनों खेती-बाड़ी, मछली पकड़ना, शिकार करना ही उन लोगों का मुख्य पेशा था। गरीबी इतनी जग-जाहिर थी कि सौ वर्ष पहले तक दस लाख लोग यह देश छोड़कर चले गए। वे लोग उत्तरी अमेरिका में शरणार्थी बन गए।

स्वीडन जैसे कड़ियल देश में राजा-रानी का रिवाज क्यों प्रचलित है, काफी दिमाग लडाने के बावजद, मेरी समझ में नहीं आया। राजा के पीछे पूरे नब्बे मिलियन क्रोनर ढाले जाते हैं। इसके बावजूद किसी को राजा-रानी के प्रति झुंझलाहट या नाराजगी नहीं है। ज्यादातर लोग चाहते हैं कि ये लोग बने रहें। बीच-बीच में चंद कट्टर वामपंथी एतराज उठाते हैं, लेकिन किसी भी एतराज को ज़्यादा तरजीह नहीं दी गई है। यहाँ राजा-रानी जरूर मौजूद हैं, लेकिन उन्हें देश चलाने की जिम्मेदारी नहीं दी गई। वे लोग सभा-समितियों में जाते हैं, फीते काटते हैं, और चंद पत्रिकाएँ उनके महल की भीतरी खबरें, दिल की खबरें छापकर कमा-खा रहे हैं। राजा हँसते-मुस्कराते देश-विदेशों की सैर करते हैं, स्वीडन के लिए सुनाम और व्यापार के प्रस्ताव लाते हैं। स्वीडन के औरत-मर्द इसी में बहुत खुश हैं। यहाँ अगर कोई पड़ोसी कभी अच्छी-सी गाड़ी ख़रीदता है, तो लोगों की भौंहें यह सोचकर तन जाती हैं कि ज़रूर उस कमबख्त ने टैक्स चुकाने में हेर-फेर किया होगा। वे लोग फौरन आयकर दफ्तर को खत लिखकर भेज देते हैं-ज़रा इस आदमी के बही-खातों की पड़ताल कीजिए, इतनी महंगी कार खरीदने के लिए उसके पास धन कहाँ से आया? ऐसे जलाधुर, तंगदिल, परायी बीवियों के प्रति दिलफेंक लोग, दराज हाथों से राजा-रानी को बेवजह ही लाखों-करोड़ों रुपए दान किए जा रहे हैं। वाकई यह अद्भुत कांड है। वह भी अगर राजा-रानी इस देश के होते, तब भी कोई बात थी। ये राजा वारनादत के वंशज हैं। बारनादत फ्रांसीसी था। नेपोलियन की फौज में कोई फौजी था वह बन गया स्वीडन का राजा। वर्तमान राजा, सोलहवाँ कार्ल गुस्ताब उसी का वंशधर है। सिल्विया उसकी रानी ब्राजिल की लड़की है। उसके पिता नाजी थे। हिटलर की मौत के बाद वहुतेरे नाजी सैनिक जर्मनी सं दक्षिण अमेरिका की तरफ भाग खड़े हुए थे। सिल्विया के पिता उन्हीं में से एक हैं। कार्ल और सिल्विया के तीन वेटे-बेटियाँ हैं-विक्टोरिया, फिलिप, मादलेडन ! राजा का ताज विक्टोरिया के सिर पर रखा जाएगा। कम-से-कम यह एक भला पहलू है कि पुरुपतांत्रिक समाज की तरह पिता का मुकुट वेट के सिर पर नहीं जाता। बेटे की मौजूदगी के बावजूद, बेटी को ताज सौंपा जाता है।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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