|
जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
|
419 पाठक हैं |
|||||||
औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
भारतीय उपमहादेश के त्यागी आदर्श काफी कुछ मैसाकिज्म जैसा है। अपने का आगम-गोश से वंचित करना, अपने को तकलीफ देना-इस पार मैसाकिज्म को मानसिक रोग माना जाता है।
मैं भी दफ्न हुई जा रही हूँ दूधिया वर्फ तले,
घास की तरह, पेड़-पौधों की तरह, घर-मकान की तरह,
तुम मेरा उद्धार करो, उष्णता!
मैं भी ढकती जा रही हूँ नीले अंधकार में,
पाखी की तरह, आकाश की तरह, सागर की तरह,
तुम मेरा उद्धार करो, रोशनी!
लो, मेरा मन ही उबार लेता है मुझे,
उसके अंग-अंग में भरी, दहकती हुई आग!
प्राग के सबसे बड़े होटल में आयोजन! अंतर्राष्ट्रीय पेन क्लव की तरफ से लेखक-सम्मेलन! दुनिया के अनगिनत देशों से आए हुए लेखक समूह! मुझे तो चेकोसोभाकिया ही कहने की आदत है। अव नया नाम चेक रिपब्लिक! स्लोवाकिया अब अलग हो गया है। वाकलभ हॉवेल, चेकोस्लोवाकिया के अंतिम प्रेसीडेंट थे और अब चेक रिपब्लिक के पहले प्रेसीडेंट हैं। वाकलभ खुद एक नाटककार हैं। वे ही इस सम्मेलन के उद्घाटनकर्ता हैं। सम्मेलन में पहली बार मंरिडिथ टैक्स से मेरी मुलाकात हुई। मेरिडिथ टैक्स! जो मेरी मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय पेन संगठन की तरफ से लगातार प्रयास करती रही। इस तरह की कोशिश के लिए कभी उसने अन्य पेन संगठनों से भी आग्रह किया था। उन विभिन्न संगठनों में स्वीडन का पेन संगठन भी शामिल था। मेरिडिथ ने और भी ढेरों लेखकों से मेरा परिचय कराया। विभिन्न देशों के विभिन्न पेन संगठनों के लोग मुझसे मिलने आते हैं। उन सवने मेरे पक्ष में आंदोलन किया था। समर्थन में चिट्ठी-पत्री लिखना, लेखक-साहित्यकारों के दस्तखत जमा करना, वांग्लादेश की प्रधानमंत्री और प्रेसीडेंट को दस्तखत किए गए आवेदन भेजना-ये सारे काम उन लोगों ने किए थे-तसलीमा की किताव पर से निषेधाज्ञा के विरुद्ध कुछ कीजिए। कट्टरवादियों ने तसलीमा की हत्या की माँग की है, उसे सुरक्षा प्रदान करें। अगर आप उसे सुरक्षा न दे सकें तो उसे सही-सलामत देश छोड़ने की अनुमति दें।
मेरे चारों तरफ भीड़ ही भीड़! देश-विदेशों के कवि, लेखक, पत्रकारों का जमघट! अचानक मैंने गौर किया कि सारी-की-सारी भीड़ किसी और तरफ जुटने लगी है। वजह? पता चला, ऑर्थर मिलर मौजूद हैं वहाँ! टीवी पर इंटरव्यू दे रहे थे। लोग दूर से ही दर्शक बने देख रहे हैं। गुण्टर ग्रास भी आए हैं। उनसे काफी देर तक मेरी बातचीत होती रही। जव में अपने देश में थी, सिर्फ भिन्न राय जाहिर करने के जुर्म में अत्याचार का शिकार थी, उस वक्त गुण्टर ग्रास मेरे पक्ष में खड़े थे। मैंने उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया। वे मुझन देश की हालत, राजनैतिक परिस्थिति, देश के कलाकार, साहित्यकार, बुद्धिजीवी लोगां स समर्थन मिल रहा है या नहीं इस सब वारे में जानकारी प्राप्त करते रहे। मैंने उन्हें बताया कि उन लोगों का समर्थन मुझे प्राप्त है। गुण्टर ग्रास को मेरी इस सहमति पर विश्वास नहीं हुआ। उनको विश्वास है कि अगर मुझे उन लोगों का समर्थन मिला होता, तो मैं अपने देश में ही रह सकती थी। मुझे देश से निर्वासित न होना पड़ता।
यहाँ भी हॉन्स मिल गए। जर्मन के एक पत्रकार। ऑस्ला के वाशिन्दे। उनके साथ एक कैमरामैन, कंधे पर भारी-भरकम कैमरा लिए यहाँ भी हाजिर था। इस प्राग में भी! उन्होंने मुझ पर एक डॉक्यूमेंटरी बनाई है। गैवी से दोस्ती गाँटकर स्वीडन में ही वे मुझसे मिलने-जुलने का रास्ता बना चुके थे। काफी हँसमुख और दरियादिल इंसान! किसी से भी जान-पहचान होते ही उनके हाव-भाव से यही जाहिर होने लगता है, माना व उसे जन्म सही जानते-पहचानत हां। जर्मनी में जन्म लेने और नॉर्वे जैसे वर्फ-प्रदेश में रहते-सहते, उन्हें ठंडे मिजाज़ का होना चाहिए था, लेकिन हँसी-धमार और हो-हुल्लड़ में वे बदस्तूर गर्म थे। प्राग में मैं उन्हें विल्कुल भी वक्त नहीं देना चाहती थी। मैं चलती-फिरती-घूमती रहूँगी और मेरे आगे-पोछे कैमरा घूमता रहे, यह वहद परेशान करने वाली बात है। अपना आपा विल्कुल बंदर जैसा लगता है। वाकी सब लोग इंसानों की तरह घूमते-फिरते हुए, एकमात्र में ही लाचार! ऐसा नहीं कर सकती मैं! इसलिए मैं हॉन्स को पूरी-पूरी तरह नजरअंदाज करके चलती रही। आखिरकार हॉन्स कुछेक पल, प्राग के मशहूर चार्ल्स सेतु पर चलते हुए, वाकलभ हॉवेल से बातचीत करते हुए-यही कुछेक दृश्य फिल्माकर लौट गया। वैसे सिर्फ हॉन्स ही नहीं, फ्रांस और जर्मनी से भी कई पत्रकार, मेरा इंटरव्यू लेने के लिए, हवाई जहाज से उड़कर आ पहुँचे थे। फ्रांस के 'नोबेल ऑब्जर्वेतर' ने एक धाकड़ लड़की एलिजाबेथ को भजा था।
|
|||||
- जंजीर
- दूरदीपवासिनी
- खुली चिट्टी
- दुनिया के सफ़र पर
- भूमध्य सागर के तट पर
- दाह...
- देह-रक्षा
- एकाकी जीवन
- निर्वासित नारी की कविता
- मैं सकुशल नहीं हूँ











