नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा प्यार का चेहराआशापूर्णा देवी
|
9 पाठकों को प्रिय 223 पाठक हैं |
नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....
35
सागर की हालत ऐसी हैं जैसे वह रो देगा।
चीख उठता है, "लतू दी !"
लतू मीठी मुसकराहट के साथ कहती है, "अच्छा, अब से ध्यान लगाकर देखना। तेरी नानीबेहद चालाक औरत है, इसीलिए उस प्रकाश को ढंकने की खातिर अपने चेहरे को कठोर बना लेती हैं।"
सागर गंभीर स्वर में कहता है, “लतू दी, तुमने पहले यह सब क्यों नहीं बताया था?"
"कहने से क्या तेरे चार हाथ उत्पन्न हो जाते?"
"आंख खुल जाती। देखता कि भैया पर निगाह जाते ही तुम्हारे चेहरे पर भी..."
लतू उदास होकर कहती है, "यह तो तेरे भाग्य में नहीं था।”
तो भी लतू का चेहरा अभी प्रकाश से जगमगाता हुआ क्यों दिख रहा है? इसलिए कि ढलती वेला कोप्रकाश आकर ठहर गया है?
सागर अवाक् होकर सोचता है, "ऐसा चेहरा देखने के बावजूद भैया ने झिड़की सुनाई।” सागर आहतस्वर में कहता है, “भैया बड़ा ही निष्ठुर है, लतू दी।"
लत आंख उठाकर उसकी ओर ताकती है।
लतू के चेहरे पर भरपूर हंसी तिर आयी है। कहती है, "निष्ठर नहीं।”
"नहीं?”
नहीं, जी, नहीं। तू मेरा मित्र है, इसलिए कह ही डालें, मैं जब वहां उस पाकड़ के पेड़ केतले पहुंची, प्रवाल दा रिक्शे से उतर रहा था। प्रवाल दा बोला, 'ऐ सुनो, तुम मुझ पर बहुत गुस्साए हुए हो न? सच, मैं बड़ा ही अशिष्ट हूं।'...उसकेबाद ही गाड़ी आ धमकी।...गाड़ी से हाथ हिलाया।
सागर ने देखा, लतू के चेहरे का वह प्रकाश और भी अधिक देदीप्यमान होकर फैल गया है।
अपनी आंखों के सामने के उस अचानक खुले दरवाजे से सागर को दूर का एक दृश्य दिखाईपड़ा।...कलकत्ता के मकान के सामने एक टैक्सी खड़ी है। मां के बक्से, सूटकेस उसके अन्दर रखे जा चुके हैं, मां एक धुली हुई साड़ी पहन, माथे परसिन्दूर की बिन्दी लगाए, बाहर आकर गाड़ी के अन्दर बैठ गई। भोला मामी अपना फटा बैग लिये उसके अन्दर आए।
गाड़ी रवाना हो गई।
तो भी सागर उस दरवाजे से मां का चेहरा देख पा रहा है, भोला मामा का चेहरा भी प्रकाश से झिलमिलाता हुआ।
* * *
|