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श्रेष्ठ सैनिक कहानियाँ

यशवंत मांडे

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5163
आईएसबीएन :81-7315-620-4

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भारतीय सैनिकों के साहस,वीरता और पराक्रम की रोमांचक कहानियों का संग्रह....

Shreshtha Sainik kahaniyan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारतीय सैनिकों के साहस, वीरता और पराक्रम की रोमांचक कहानियों का संग्रह।
भारत ने स्वतंत्रता पाने के बाद सन् 1962 में चीन के विरुद्ध, 1965 में पाकिस्तान के विरुद्ध, 1971 में बाँग्लादेश, 1999 में कारगिल और 2001 में ‘आपरेशन पराक्रम’ में शत्रु का सामना किया है। इन सभी संघर्षों की जीवंत व रोमांचक वर्णन इन कहानियों में दिया गया है। इन कहानियों की विशेषता रोचक व आकर्षक शैली में इनका प्रस्तुतीकरण है। इनमें सैनिक जीवन, उनके विचारों और आदर्शों का उल्लेख है। ये देश के प्रति गौरव और अभिमान की भावना जाग्रत करती हैं।

विश्वास है, यह कहानी-संग्रह पाठकों, विशेष रूप से युवा पीढ़ी, के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा।


भूमिका


मैंने भारतीय सेना में चालीस वर्ष से अधिक समय बिताया है, जो विविध अनुभवों से परिपूर्ण रहा है। मुझे तीनों प्रमुख लड़ाइयों—सन् 1962, 1965 और 1971 में भाग लेने का मौका मिला था। मैंने भारत की सभी सीमाओं पर दिन गुजारे हैं, जिनकी स्मृतियाँ मेरे मस्तिष्क में हमेशा ताजी रहती हैं।

इस लंबी अवधि में मुझे पढ़ाई-लिखाई के लिए पर्याप्त समय मिला। सेवानिवृत्त होने के बाद समय का अभाव तो होता ही नहीं; आवश्यकता तो इस बात की थी कि मैं अपने अनुभवों को कैसे व्यक्त करूँ और पाठकों तक कैसे पहुँचाऊँ ? मेरा विश्वास है कि एक बार मनुष्य ठान ले और काम पर लग जाए तो सारी कठिनाइयाँ अपने आप दूर होती जाती हैं तथा सफलता के द्वार धीरे-धीरे खुलते जाते हैं।

इससे पहले मेरे दो कहानी-संग्रह अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुके हैं। मेरी पुस्तक ‘Karachi in Flames and other stories’ पाठकों को बहुत पसंद आयी। अनेक उच्च अधिकारियों ने मुझसे कहा कि इन कहानियों को हिंदी में लिखना आवश्यक है, ताकि इन्हें हमारे जवान पढ़ सकें। तभी प्रस्तुत पुस्तक की योजना बनी। मैंने कहानियाँ हिन्दी में अनूदित नहीं कीं; हिंदी पाठकों के लिए इनका पुनर्लेखन किया है। मैं आशा करता हूँ कि मैं इस प्रयास में सफल हुआ हूँ !
हिंदी साहित्य में सेना और युद्ध से संबंधित कहानियों का अभाव है। इसका कारण है कि लेखकों को सशस्त्र बलों के बारे में विशेष ज्ञान नहीं होता। मुझे आशा है कि ये कहानियाँ उस अभाव की पूर्ति करेंगी।
इन कहानियों को लिखने में मुझे पुणे विद्यापीठ के भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ. गजानन चव्हाण और राष्ट्रीय रक्षा आकादेमी, हिंदी विभाग के प्रमुख डॉ. विमल कुमार बोरा ने हर प्रकार से सहायता दी है। मैं उनका हार्दिक आभारी हूँ।


यशवंत मांडे
(लेफ्टिनेंट जनरल)


जाट बलवान् : जय भगवान


कुछ ही समय पहले की जाट रेजीमेंट के कर्नल सबनिस तीस वर्ष की लंबी नौकरी करने के बाद सेनानिवृत्त हुए थे। उन्होंने सालुंके विहार, पुणे में मकान लिया था और उसकी साज-सज्जा में लगे हुए थे। दो दिन पहले उन्हें एक जाट बटालियन के सी.ओ की चिट्ठी मिली थी। उन्होंने लिखा था कि पलटन ने कारगिल के युद्ध में बड़ी बहादुरी से काम किया और बटालियन के इलाके में पॉइंट 4139 पर कब्जा कर नाम कमाया है। इस पत्र में उन्होंने अपने दो जवानों के बारे में लिखा था। जागेराम, जो सुरंग फटने की वजह से अपने दोनों पैर खो चुका है और माँगेराम, गोला फटने से दोनों हाथ, उन दोनों जवानों का आपरेशन श्रीनगर के अस्पताल में हुआ, जहाँ उन्हें दो महीने रहना पड़ा। उन्हें लिंब सेंटर, पुणे भेजा गया है।

सी. ओ. ने लिखा था कि वह बहुत प्रसन्न हैं कि रेजीमेंट का एक अफसर पुणे में है। उन्होंने तकलीफ देने के लिए माफी माँगी थी और लिखा था कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि रेजीमेंट के पुराने अफसरों पर भरोसा रख सकते हैं।

कर्नल सबनिस के पुराने अफसरों पर भरोसा ऱख सकते हैं।
कर्नल सबनिस ने जब चिट्ठी पढ़ी तो उन्हें हँसी आई। उन्होंने मन-ही-मन कहा, ‘‘नालायक मैं तो जाट था, जाट हूँ हमेशा जाट रहूँगा।’
अगले दिन सुबह सबनिस कृतिम अंग क्रेन्द्र (आर्टीशियल लिंब सेंटर) पहुँचे। वह दोनों जवानों से मिले। जागेराम की टाँगें घुटने से नीचे काट दी गयी थीं और माँगेराम के कुहनियों के ऊपर से काट दिए गये थे। उनके बिस्तर पास-पास थे। वे एक सप्ताह पहले पहुँच गए थे, लेकिन तब से सिर्फ पड़े हुए थे। किसी ने उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया था। कर्नल साहब ने एक घंटे तक उनसे बात की।

उसके बाद वे नर्स से मिलने गए। वे कटे हुए हाथ और पैर देखकर अजीब-सा महसूस कर रहे थे। दोनों ही जवान बिलकुल युवा थे और एक लंबी उम्र उनके आगे थी। उनकी शादी भी नहीं हुई थी। बहुत कम उम्र में वे अपंग बन गए थे।
‘‘इनके कृत्रिम अंग कब तक फिट किए जाएँगे ?’’ कर्नल साहब ने पूछा।
‘‘सर, उसमें तो समय लगेगा। काटे हुए हिस्सों में अभी तक मजबूती नहीं आई है।’’
‘‘इसमें कितना समय लगेगा ?’’

सिस्टर ने मुस्कराकर कहा, ‘‘देखिए इतना तो मुझे ज्ञान नहीं है। आप कमांडेंट साहब से मिल लीजिए।’’
कर्नल सबनिस ने पूछा, ‘‘वह जवानों की क्या मदद कर सकते हैं ?’’  
सिस्टर ने कहा, ‘‘हम लोग तो देखभाल कर ही रहे हैं, लेकिन अगर आप बीच-बीच में आकर जवानों से मिले तो उनका दिल बहल जाएगा। हाँ देखिए मैं एक बात आपको बताना चाहती हूँ। ये दोनों जवान एक-दूसरे से बात नहीं करते, न जाने इनमें कैसी दुश्मनी है।’’ कर्नल साहब कमांडर साहब से मिलने गए। उन्होंने अपने आने का कारण बताया।
‘‘इसमें घबराने की कोई बात नहीं हैं। मुझे ऐसा लगता है कि आप पहली बार मेरे केंद्र में आए हैं।’’
कर्नल साहब ने सिर हिलाया।

‘‘हमने 15 मिनट की एक फिल्म बनाई है। आप उसे देख लीजिए। उसके बाद अगर आपके कुछ प्रश्न होंगे तो जरूर पूछिएगा।’’
कर्नल साहब को बगलवाले कमरे में ले जाया गया। वहाँ टी.वी. पर उन्होंने वह फिल्म देखी।
‘‘कैसी लगी आपको यह फिल्म ?’’
‘‘अच्छी है। इसमें तमाम जानकीरियाँ दे रखी हैं जो एक आम आदमी को मालूम नहीं होती।

‘‘देखिए मैं यह तो नहीं कहूँगा कि जो हाथ-पैर हम फिट करते हैं, वे पहले जैसे होते हैं लेकिन उनसे काम चल जाता है। लोग अपने जरूरी काम खुद कर पाते हैं और उन्हें किसी पर निर्भर रहकर जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता। वे आराम से चल-फिर सकते हैं और कमाई कर सकते हैं। कुछ ही दिन पहले आदेश आए हैं। कि जो जवान कारगिल के युद्ध में जख्मी हुए हैं, उन्हें नौकरी से बाहर नहीं किया जाएगा। अब आपके पास कोई प्रश्न हो तो अवश्य पूछिए !’’
‘‘ये जो कृत्रिम अंग आप लगाते हैं इनमें मजबूती कितनी होती है ?’’
‘‘बहुत मजबूत हैं, टूटेंगे नहीं।’’

सबनिस कमांडेंट के दफ्तर से बाहर आए। उनकी चिंता काफी हद तक दूर हो गयी थी। लेकिन एक बात उन्हें सता रही थी, जो सिस्टर ने कही थी-ये दोनों एक-दूसरे से बात क्यों नहीं करते ?

जागे और माँगेराम हिसार में 50 मील दूर पड़ोसी ग्रामों के रहने वाले थे। उन दोनों गाँवों की सदियों से दुश्मनी चल रही थी। उन्होंने ने एक-दूसरे से सारे संबंध तोड़ लिए थे। मिलना-जुलना बंद कर दिया था और सीमा पर तार बाँध दिये थे। कहते हैं कि तीन सौ साल पहले निधाना के प्रमुख की लड़की का विवाह मलेना के मुखिया के पुत्र के साथ हुआ था। मलेनावालों ने बहू के साथ दुर्व्यवहार किया और उसे जला दिया। उसके बाद से यह दुश्मनी चलती आ रही है।
इन दोनों ने जाट रेजीमेंट में भरती ली और इन्हें ट्रेनिंग के लिए बरेली भेजा गया। जब ट्रेनिंग खत्म हुई तब इन्होंने निवेदन किया कि उन्हें अलग-अलग बटालियन में भेजा जाए। मगर सेंटर में किसके पास समय होता है और कौन किसकी सुनता है ! उन्हें एक ही पलटन में भेज दिया गया। दोनों के पिता, जो जाट रेजीमेंट के पुराने सिपाही थे, सी.ओ. साहब से मिले और उन्होंने पेशकश की कि उन्हें अलग कंपनी में रखा जाए। यह बात मान ली गयी।

जाटों को कुश्ती का बड़ा शौक होता है और हर पलटन में इसे प्राथमिकता दी जाती है। इंटर-कंपनी मुकाबले में दोनों जवानों का सामना एक-दूसरे के साथ हुआ। इनकी कुश्ती मजेदार थी; दोनों में जोश था एक-दूसरे को चित करने के लिए; लेकिन इन्हें दाँव-पेंच का ज्ञान कम था। वे एक-दूसरे को मारने लग गए। उन्हें अखाड़े से बाहर निकाल दिया गया। दोनों ने सपथ ली कि वे अगले साल फिर लड़ेंगे; लेकिन अगला मौका उन्हें मिला नहीं। कारगिल युद्ध में उनके हाथ-पाँव कट गए थे।
कृत्रिम अंग केंद्र के कमांडेंट साहब हर हफ्ते सोमवार के दिन अस्पताल का दौरा किया करते थे। उस दिन उन्होंने जागे और माँगेराम को जबरदस्त झाड़ लगाई।

‘‘मेरे स्टाफ ने रिपोर्ट की है कि तुम दोनों हर छोटी-छोटी बात पर उन्हें बुलाया करते हो। मैंने जान-बूझकर तुम दोनों को पास रखा है; तुम दोनों एक ही पलटन के हो, एक के पास हाथ है दूसरे के पास पाँव। तुम–दोनों एक-दूसरे की मदद कर सकते हो। मैंने अपने स्टाफ को बता दिया है कि वह तुम्हारे घंटी बजाने पर अमल नहीं करेंगे। वार्ड में अनेक मरीज हैं। यहाँ लाटसाहबी नहीं चलेगी।’’

कमांडेंट साहब ने अक्ल की बात कही थी, उनके फायदे के लिए, लेकिन जाटों को समझ नहीं आई। मन-ही-मन वे गुर्रा रहे थे—‘नसीहत दे गया।’ कहते हैं कि भैंस का दूध पीने से जाटों का दिमाग मोटा हो जाता है।
दौरा खत्म होने के बाद उन्हें बीड़ी पीने की तलब लगी। मगर पीते तो कैसे ? राउंड से पहले वार्ड मास्टर ने उनके तकिए के नीचे से बीड़ी-माचिस हटा ली थी और अपने ऑफिस ले गए थे। उन्होंने घंटा का बटन दबाया; कोई नहीं आया। कुछ देर बाद घंटी बाजाई, वही मुसीबत !

दोनों से बीड़ी के बिना रहा नहीं जा रहा था। जागेराम ने धीरे से, ‘‘बीड़ी पीना है के ?’’
माँगेराम अपना सिर ऊपर-नीचे हिलाया, लेकिन कुछ कहा नहीं। थोड़ी देर बाद माँगेराम अपने बिस्तर से उठा, वार्ड मास्टर के दफ्तर गया और अपनी जेब में बीड़ी-माचिस भराकर वापस आया। जागेराम विस्तर के किनारे बैठ गया। उसने माँगेराम की जेब से बीड़ी-माचिस निकाली, दो बीड़ियाँ जलाईं और माँगेराम को पीने में मदद दी।

बीड़ी की तलब समय-समय पर आती रही। माँगेराम बीड़ी सुलगा नहीं पाता था और जागेराम बीड़ी ला नहीं सकता था। विवशता ने उन्हें दोस्त बना दिया था। वे एक-दूसरे के साथ बातें और हँसी-मजाक करने लगे। यहाँ तक कि जागेराम अपने दोस्त को खाना खिलाया करता था और माँगेराम वह सभी काम करता था, जिसके लिए चलना पड़े।

‘‘हम गाँव जाने के बाद क्या करेंगे ?’’
‘‘तब की बात तब देखी जाएगी।’’
कर्नल सबनिस लड़कों के बारे में सोच रहे थे, कि किस तरह उनमें मैत्री कराई जाए ? वह पहले सिस्टर के ऑफिस में गए। उन्हें उसकी मुस्कान बड़ी पसंद थी, हँसना उसकी आदत थी।
‘‘दोनों लड़के कैसे हैं ?’’

‘‘बिलकुल ठीक। अब वे दोस्त बन गए हैं। पहले वे घंटी बजा-बजाकर हमें परेशान करते थे, अब नहीं करते।’’
‘‘मगर, यह हुआ कैसे ?’’
‘‘कमांडेंट साहब ने उन्हें अच्छी-खासी झाड़ दी थी, लगता है, वह काम कर गई।’’
सबनिस अचरज में थे। जाट इतनी आसानी से नहीं मानते। उन्हें अचंभा तब हुआ जब उन्होंने दोनों लड़कों को हँसते हुए बातें करते देखा।



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