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फेंग शुई

पवन के.गोयल

प्रकाशक : ग्रंथ अकादमी प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5166
आईएसबीएन :81-88267-53-8

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फेंग शुई के नियमों व सिद्धांतों की संक्षिप्त व रोचक जानकारी एवं मनुष्य के सामान्य जीवन,रहन-सहन एवं दिशाओं व कोणों का वैज्ञानिक विश्लेषण

Feng Shui

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आज फेंग शुई विश्व भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। सदियों पूर्व ऋषि-मुनियों ने मानव समाज की भलाई के लिए चुंबकीय प्रवाहों, वायु तथा सूर्य की ऊर्जा को ध्यान में रखकर वास्तुशास्त्र एवं फेंग शुई की रचना की। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी एकमत से यह स्वीकार किया है कि प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाकर कोई भी मानव समाज अथवा देश स्वस्थ, सुखमय व वैभवपूर्ण जीवन नहीं जी सकता।
फेंग शुई के सिद्धांत और नियम जनसाधारण के जीवन में उपयोगी बनकर उनके जीवन को प्रगतिशील, समृद्धिशाली व शांतिमय बनाते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में फेंग शुई के नियमों व सिद्धांतों की संक्षिप्त व रोचक जानकारी देने के साथ ही मनुष्य के सामान्य जीवन, रहन-सहन एवं दिशाओं व कोणों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। पुस्तक में दिए गए अनेक चित्र विषय की रोचकता को बढ़ाते हैं तथा उसे और भी सुग्राह्य व पठनीय बनाते हैं।

फेंग शुई

वास्तुशास्त्र के साथ-साथ एक नया नाम उभरकर आया ‘फेंग शुई’। फेंग शुई चीनी विद्वानों के आध्यात्मिक जीवन जीने की एक कला है। वास्तुशास्त्र फेंग शुई व पिरामिड-तीनों ही किसी भवन या भूमि के आकार-प्रकार, अनुपात, दिशा ऊर्जा एवं वातावरण में पर्यावरण के साथ अनुकूलता बनाए रखना भारत, चीन व मिस्र की प्राचीन कला व संस्कृति में शामिल रहे हैं।
ज्ञान का भार ढोते रहने का कोई महत्त्व नहीं है, महत्त्व है ज्ञान के प्रायोगिक निरुपण का, क्योंकि जानने और मानने में अंतर होता है। अतएव यही श्रेयस्कर है कि हम पहले जानें और बाद में प्रयोग में लाएँ। पिछले दस वर्षों में वास्तुशास्त्र ने विश्व स्तर पर अपना परचम लहरा दिया है।

आज फेंग शुई, वास्तु एवं पिरामिड विश्व भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। सदियों पूर्व ऋषि मुनियों ने मानव समाज की भलाई के लिए चुंबकीय प्रवाहों, वायु तथा सूर्य की ऊर्जा को ध्यान में रखकर वास्तुशास्त्र एवं फेंग शुई का निर्माण किया। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी एकमत से यह स्वीकार किया है कि प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाकर कोई भी मानव समाज अथवा देश स्वस्थ, सुखमय व वैभवपूर्ण जीवन नहीं जी सकता।
वेद विधा के वैज्ञानिक प्रो. महर्षि महेश योगी के अनुसार भवन निर्माण आदि में वेद शास्त्रों के समान ही स्थापत्य वेद का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।


फेंग शुई का परिचय


फेंग शुई (Feng Shui) चीनी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है वायु और पानी; अर्थात् जल तत्त्व और वायु तत्त्व का सम्मिश्रण जिसकी सहायता से प्राकृतिक शक्ति ‘ची’ (Chi) को अनुकूल बनाया जा सके। किसी भी भवन के अंदर जल तथा वायु तत्त्व के संतुलन से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, जिससे उसमें निवास करनेवाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखमय एवं वैभवशाली जीवन व्यतीत करता है।
भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य कई देशों में लोगों की यह जिज्ञासा रहती है कि क्या वास्तुशास्त्र या फेंग शुई से भाग्य बदला जा सकता है-

1. प्रकृति प्रदत्त-वह भाग्य जो व्यक्ति को पिछले जन्म के कर्म अथवा उसकी जन्मकुंडली के अनुसार प्राप्त होता है। इसमें ग्रह-दोषों को विभिन्न अनुष्ठान आदि के द्वारा दूर किया जा सकता है।
2. पृथ्वी प्रदत्त भाग्य-यह वह भाग्य होता है जो व्यक्ति के भवन का आकार, दिशा, ढलान/ऊँचाई आस-पास का वातावरण आदि से प्राप्त होता है। चीनी विद्वानों के अनुसार प्रकृति में सकारात्मक एवं नकारात्मक शक्तियों को यिन (Yin) एवं यांग (Yang) नामक दो ऊर्जाओं से जाना जाता है। जिनका संयोजन कर फेंग शुई के अनुसार अधिक से अधिक सुखमय, सौभाग्यशाली ऐश्वर्यपूर्ण जीवन प्राप्त कर सकें।
3. व्यक्ति अर्जित भाग्य-कर्म अर्थात वह भाग्य जो व्यक्ति अपनी लगन एवं कठिन परिश्रम से प्राप्त करता है। जीवन के हर पल में इसका महत्त्व है ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ में भी कहा गया है कि कर्म ही मुख्य धर्म है। कर्म करना ही व्यक्ति का धर्म है, फल देना ईश्वर का काम है। मनुष्य कर्म करे, फल की चिंता न करे।
मनुष्य अपने जीवन में भाग्य व वास्तु दोनों से प्रभावित होता है। वह वास्तु द्वारा भाग्य को नहीं बदल सकता, परंतु जीवन में वास्तु (फेंग शुई) के सिद्धातों का पालन कर समस्याओं का समाधान कर सकता है।

व्यक्ति सफर में गंतव्य स्थान के लिए निर्धारित सड़क की स्थिति नहीं बदल सकता। वाहन चालक की स्थिति कार्य अनुसार सही या गलत हो सकती है। वाहन की स्थिति भी वास्तु के अनुसार होती है। जिस तरह बिना वाहन को बदले चालक दोष-युक्त वाहन का दोष दूर करके यात्रा कर सकता है। उसी तरह व्यक्ति भवन के दोष को फेंग शुई व वास्तु के द्वारा दूर करके सुख शांति से रह सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि फेंग शुई या वास्तु एक समस्या निवारक विधि है तथा यह व्यक्ति के भाग्य को बदलने में सहायक है।
जिस प्रकार रुग्ण व्यक्ति को भाग्य के सहारे न छोड़कर योग्य चिकित्सक से उसकी चिकित्सा करा के रोग का निवारण किया जाता है, उसी प्रकार दिशा से व्यक्ति दशा नहीं बदल सकता, परंतु खराब दशा में दिशा ठीक करके राहत अवश्य प्राप्त कर सकता है। जैसा कि आमतौर पर व्यक्ति कहता है कि जो भाग्य में है सो मिल जाएगा; किंतु यहाँ यह बात ध्यान रखने की है कि खराब भाग्य के समय वास्तु/फेंग शुई द्वारा सुखमय जीवन बनाना व्यक्ति के हाथ में है।


भारतीय वायुशास्त्र तथा फेंग शुई



समाज में हर व्यक्ति सुख चैन व धन की इच्छा रखता है। वास्तु शब्द वस्तु से बना है, जिसका अर्थ है अस्तित्व युक्त स्थिति। निवास हेतु प्रयुक्त विज्ञान ही वास्तुशास्त्र है। इसके अंतर्गत निम्नांकित बातों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है-

1. आवश्यकता,
2. सुविधा,
3. साज-सज्जा,
4. तकनीकी उपादेयता।
अर्थात् ब्रह्मांड में हर वस्तु का निर्माण पाँच तत्त्वों के संयोजन (अग्नि, जल, वायु, आकाश तथा पृथ्वी) से हुआ है। प्रकृति से इन पाँच तत्त्वों को प्राप्त करने की विधा ही ‘वास्तुशास्त्र’ है। पाँच मूल तत्त्वों के सही सम्मिश्रण से ही बायो-इलेक्ट्रिक ऊर्जा की प्राप्त होती है, जो व्यक्ति को सुखमय व स्वस्थ जीवन प्रदान करती है।
भारतीय वास्तुशास्त्र पाँच महाभूतों तत्त्वों और दिशाओं का विज्ञान है, जबकि फेंग शुई जल तत्त्व, वायु तत्त्व एवं दिशाओं का विज्ञान है। फेंग शुई प्राचीन चीनी विद्वानों द्वारा खोजी गई आध्यात्मिक जीवन जीने की एक कला है।
भारतीय वास्तुशास्त्र व फेंग शुई दोनों में ही मानव जीवन के कल्याण के लिए भवन निर्माण योजना में चिंतन व विचार किया गया है, ताकि विभिन्न उपायों से प्राकृतिक ऊर्जा को अनुकूल बनाकर मानव अपना जीवन नीरोगी और सुखमय बना सके।
चीन में एक कहावत है-‘प्रथम भाग्य, द्वितीय कर्म, तृतीय फेंग शुई चतुर्थ सद्गुण (भावना), पंचम शिक्षा (ज्ञान)।’ इसमें संदेह नहीं कि फेंग शुई भाग्य-परिवर्तन में विशेष रूप से सहायक है।


फेंग शुई का इतिहास



फेंग शुई का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। यह एक रहस्यमयी चीनी कला है जो ताओ सिद्धांत पर आधारित है। इसमें यह भावना रहती है कि वातावरण के साथ समरसता स्थापित करके व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाया जा सकता है। प्राचीन चीनी ग्रंथों के अनुसार यह माना जाता है कि वायु ऊर्जा का विस्तार व फैलाव करती है, जबकि जल उसे संग्रह करता है। चीन के अधिकांश महत्त्वपूर्ण भवनों का निर्माण फेंग शुई के अनुसार किया गया है। मान्यता यह भी है कि इससे पूर्वज इनसे अलग नहीं होते। फेंग शुई का मुख्य उपयोग पूर्वजों की समाधि के लिए किया जाता है, क्योंकि उनकी धारणा है कि उनका भाग्य उनके पूर्वजों की समाधि की सही स्थिति से प्रभावित होता है। पूर्वजों की समाधि यदि खुले मैदान या अंधकारमय निचाई में होगी तो वे दुर्भाग्य भोगेंगे।

चीनी सभ्यता में वर्ष में एक बार भारतीय श्राद्ध पक्ष की भाँति ‘चिंग मिंग’ (Ching-Ming) उत्सव मनाया जाता है, जिसमें ये लोग अपने पूर्वजों के कब्र पर भोजन चढ़ाते हैं तथा पूरा परिवार उस भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है। चीन में ज्यादातर कब्रिस्तान पहाड़ के पास दक्षिणमुखी पाए जाते हैं। जो उत्तरी हवा से बचाव करते हैं। इनमें प्रवेश करते समय मुख उत्तर दिशा में रखे गए हैं। इमारत का डिजाइन फेंग शुई विशेषज्ञ के निर्देशानुसार प्रकाश, धूप, छाया के आधार पर तैयार होता है, ताकि भवन में सकारात्मक शक्ति ‘ची’ का प्रवेश बहुतायात से हो।
चीन में फेंग शुई के प्रशिक्षक को Hsien-sheng के नाम से जाना जाता है, जो श्रद्धा व सम्मानजनक होता है।
फेंग शुई के अनुसार-एक वातावरण से दूसरे वातावरण में जाने से व्यक्ति के जीवन में अंतर आता है। चीन में फेंग शुई में ची शब्द का आमतौर पर प्रयोग होता है, जिसका अर्थ है-ऊर्जा की अंतरिक्षीय तरंगें, जो भाग्य का निर्माण करती हैं। जिस प्रकार व्यक्ति के जीवन में ऑक्सीजन का होना अनिवार्य है, उसी तरह सुखमय व वैभवशाली जीवन के लिए घर, दुकान, कार्यालय व उद्योग में ‘ची’ का होना अनिवार्य है।


विश्व में वास्तु/फेंग शुई


जापान का क्षेत्र विस्तार काफी कम है, फिर भी इसने काफी प्रगति की है। इसके उत्तर-पूर्वी कोण क्षेत्र में प्रशांत महासागर है। जापान की राजधानी टोकियो पूर्व क्षेत्र में स्थित है तथा इसके पूर्व में भी प्रशांत महासागर है, जो वास्तुशास्त्र के नियमानुसार स्थिति है।

अटलांटिक महासागर के पूर्व तट पर स्थित इंग्लैंड के उत्तर पूर्वी कोण क्षेत्र में नॉर्थ सागर है। उत्तर-पूर्व (ईशान) कोण बढ़ा हुआ है। दक्षिणी सीमा की लंबाई पूर्वी सीमा से कम है, जिसके कारण इंग्लैंड एक छोटा सा देश होते हुए भी इसके निवासियों ने विश्व स्तर पर शासन किया। यहाँ भाषा, राजनीति, व्यापार एवं रहन-सहन का प्रभाव प्रशंसनीय है।
इंग्लैंड का चुंबकीय वृत्त भी दक्षिणोत्तर है। लंदन शहर दक्षिण पूर्व कोण क्षेत्र में स्थित है। थेम्स नदी पूर्व की ओर बहती है। लंदन के उत्तर पूर्व (ईशान) में द यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन, उत्तर पश्चिम में बी.बी.सी. ऑफ लंदन, वायव्य क्षेत्र में रीजंट्स पार्क, द किंग्ज सर्कल एवं अर्ल्स कोर्ट दक्षिणी पश्चिम कोण क्षेत्र में हैं। ये सभी वास्तुशास्त्र के अनुसार हैं।
न्यूयॉर्क शहर में मुख्य मार्ग व सड़के समानांतर और समकोण पर हैं। ये वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार हैं।
उत्तरी अमेरिका के बारे में वास्तु विचार करने पर पाया गया कि उत्तरी-पूर्वी कोण क्षेत्र बढ़ा हुआ है तथा पूर्व दिशा में अटलांटिक महासागर है।




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