बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
हनुमान को लगा, उनके मस्तिष्क में जैसे प्रश्नों और उनके समाधानों में होड़ मची हुई है।...अशोक वाटिका में यह बालक जाया करता था। अब सम्राट ने निषेधाज्ञा लगा दी है। क्यों? अब वहां ऐसा क्या हो गया है कि स्वयं सम्राट को निषेधाज्ञा लगानी पड़ी है...और कितना भयभीत था वह वृद्ध। एक अबोध बालक के वाक्य से अप्रसन्न होकर सम्राट सारे परिवार को शूलविद्ध करवा देंगे। वाह रे रावण!''
हनुमान पवन-गति से आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ और घट जाए, उससे पहले ही उन्हें अशोक वाटिका में पहुंच जाना चाहिये। यदि सचमुच ही कहीं, वहां सीता बंदिनी हैं, तो उन तक पहुंचकर, हनुमान को उनसे कुछ वार्तालाप कर लेना चाहिए। ऐसा न हो कि वे विलम्ब करते रहें और जानकी को वहां से हटा, रावण कहीं और छिपा दे...
वाटिका खोजने में न तो हनुमान को अधिक समय लगा और न कठिनाई। राजमार्ग से ही अशोक-वाटिका दिखाई पड़ रही थी और मुख्य द्वार पर स्थित सैनिक चौकी दूर से ही देखी जा सकती थी। अशोक-वाटिका के संकेत न मिले होते और सशस्त्र सैनिकों की चौकी दिखाई न पड़ती, तो हनुमान दूर से उसे वाटिका अथवा उद्यान के स्थान पर कोई सघन वन ही-समझते। दूर से, न तो वहां फलों का कोई वृक्ष दिखाई देता था, न फूलों के पौधे अथवा लताएं। जाने क्यों वहां इतने वृहदाकर और सघन वृक्ष लगाये गये थे? हनुमान चलते हुए वाटिका के मुख्य द्वार से आगे निकल गये, फिर एक अन्य मार्ग से पीछे की ओर लौटे। यहां महामहालय प्रासाद की सुरक्षा-व्यवस्था से अधिक सावधानी बरती गई थी। यहां परिखा और प्राचीर नहीं थी, इसीलिए पीछे की ओर भी सैनिक चौकी थी। वाटिका के आस-पास घूमते रहने पर किसी का सन्देह जागने की आशंका, हनुमान के मन में बराबर बनी हुई थी, किन्तु अन्य कोई उपाय भी नहीं था। वाटिका की सुरक्षा-व्यवस्था को अच्छी प्रकार देखने के लिए वाटिका के चारों ओर का एक चक्कर लगाना ही पड़ा। वाटिका के बाहर चार स्थानों पर सैनिक चौकियां थीं, किन्तु सैनिकों द्वारा परिक्रमा की कोई व्यवस्था हनुमान को दिखाई नहीं पड़ी। यह शुभ लक्षण था। यदि चौकियों के बीच सैनिक परिक्रमा की व्यवस्था होती, तो उनकी आंख बचाकर वाटिका में प्रवेश करना कठिन ही होता, पर सैनिक कितने सावधान थे, यह देखने के लिए तो चौकियों के निकट से होकर जाना ही पड़ेगा। फिर चाहे जो हो।
हनुमान ने चौकियों के निकट से एक चक्कर लगाया। प्रत्येक चौकी में पांच-पांच सैनिक थे। उनके पास धनुष, शूल तथा खड्ग थे; अर्थात् वे भली प्रकार शस्त्रबद्ध थे। किन्तु, उनमें से किसी ने भी हनुमान की ओर ध्यान नहीं दिया। वे लोग अपने ही कार्यों में बहुत तल्लीन थे। दो चौकियों में जो चार-चार सैनिक, अपने शस्त्रों को एक ओर रखकर, अपनी द्यूतक्रीड़ा में तल्लीन थे। पांचवा सैनिक खेल तो नहीं रहा था, किन्तु अपने शस्त्र लिये हुए खेल देखने में निमग्न था। एक चौकी में, एक सैनिक किसी घटना का वर्णन कर रहा था और शेष चार उत्सुकता और जिज्ञासा से आंखें फाड़े हुए, उसकी बातें सुन रहे थे। चौथी चौकी में सैनिकों के मध्य में एक स्त्री बैठी हुई थी, और सैनिकों का ध्यान पूरी तरह से उसमें रमा हुआ था। वेशभूषा एवं हाव-भाव से वह स्त्री कोई राह चलती वेश्या लगती थी; उसके प्रति सैनिकों का व्यवहार भी इस अनुमान की पुष्टि कर रहा था।
हनुमान वाटिका की पिछली ओर चले गए। उन्होंने दो चौकियों के मध्य का स्थान चुना। अपना उत्तरीय झाड़कर एक वृक्ष के नीचे बिछाया और उस पर लेटे रहे। वे विश्राम करने का अभिनय कर रहे थे, किन्तु उनकी आंखें और मस्तिष्क दोनों ही अत्यन्त क्रियाशील थे।...उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की; न कोई पूछताछ करने के लिए उनके पास आया और न किसी ने उनकी ओर ध्यान ही दिया। इस ओर से निश्चिंत होकर, हनुमान ने लेटे ही लेटे, वाटिका के भीतर की ओर रेंगना आरम्भ किया। कठिन परिश्रम था...किन्तु खड़े होकर चलने में जोखिम था।...थोड़ी देर तक लगातार रेंगने के पश्चात् उन्होंने पुनः निरीक्षण किया। सब कुछ यथावत् था, कहीं कोई हलचल नहीं थी। तब उन्होंने वाटिका की ओर देखा-वे वृक्षों की दो पंक्तियों के भीतर आ चुके थे और अब बाहर से उनका देखा जाना असंभव ही था। किन्तु, वाटिका के भीतर की सुरक्षा-व्यवस्था का उन्हें तनिक भी ज्ञात नहीं था।...उन्होंने लेटे-लेटे ही दृष्टि उठाकर ऊपर देखा-उनके सम्मुख दूर तक केले के वृक्ष लगे हुए थे, जो अपने फल के बोझ से एक ओर कुछ झुके हुए लग रहे थे।
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