बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
किन्तु हनुमान जैसा योद्धा भी, कदाचित् उन्होंने पहले नहीं देखा था। इतना भारी लौह परिघ हनुमान ऐसे चला रहे थे जैसे वह लकड़ी का साधारण दण्ड-सा हो। परिघ के वेग और प्रकार के सामने, उनके अपने शस्त्र पार नहीं पा रहे थे और परिघ के आघात को झेल जाने का उनके पास कोई उपाय नहीं था...एक ही मार्ग था कि हनुमान को किसी प्रकार आहत कर, उनके विवश हो जाने पर, उनसे वह परिघ छीन लिया जाए...
तभी हनुमान ने प्रघस के सिर पर आघात किया। वह तत्काल धराशायी हो गया। हनुमान का वेग और भी अधिक हो गया। वे शत्रुओं की नीति और दुर्बलता, दोनों ही जान गए थे। हनुमान के रुकते ही वे लोग उन पर आघात करेंगे; और उनसे कुछ दूरी होते ही जंबुमाली बाण मार देगा। हनुमान की इच्छा हुई कि इस बीभत्स युद्ध में अट्टहास कर उठें। जंबुमाली के इन. सहायकों ने आकर, स्वयं जंबुमाली को ही निरस्त कर दिया था। हनुमान को उन योद्धाओं में से किसी के खड्ग का एक घाव लगा और हनुमान ने झल्लाकर विरूपाक्ष को पीस डाला। दो साथियों को गिरते देख, राक्षस योद्धाओं का उत्साह शिथिल पड़ गया। हनुमान का आवेश बढ़ गया। वे किसी शक्तिशाली यंत्र के समान, परिघ घुमाए जा रहे थे। एक-एक कर, उनके विपक्षी गिरते गए और हनुमान ने परिघ को घुमाकर जंबुमाली पर दे मारा। जंबुमाली न तो परिघ का वार बचा पाया, न उसे झेल पाया। वह रथ में ही एक ओर लटक गया और उनका सारथी रथ हटा ले गया।
जंबुमाली, उसके साथी मंत्रिपुत्र तथा सेनापति मारे गए थे; किन्तु परिघ को फेंककर मारने से हनुमान के पास एक मात्र शूल रह गया था। उस युद्ध में शूल बहुत उपयोगी शस्त्र नहीं था। वे एक प्रकार से स्वयं को शस्त्रहीन ही पा रहे थे। इससे पूर्व कि कोई योद्धा आ जाता, उन्हें कोई-न-कोई शस्त्र अवश्य प्राप्त कर लेना था।...वे जानते थे, शस्त्रहीन अवस्था में वे इस घेराबंदी को तोड़कर मुक्त नहीं हो सकते थे और जो व्यवस्था यहां दिखाई पड़ रही थी, उसमें तत्काल ही किसी अन्य योद्धा का आ उपस्थित होना प्रायः निश्चित् था। तभी तपे हुए स्वर्ण की जाली से युक्त, वेगशाली घोड़ों से जुता एक रथ सेना में धंसता चला आया। रथ पर पताका फहरा रही थी और उसका ध्वजदंड रत्नों से विभूषित था। रथ में बाणों से भरे हुए तूणीर रखे थे। अगले भाग में आठ खड्ग बंधे हुए थे। रथ के पिछले भाग में शक्ति, तोमर तथा अन्य शस्त्र रखे हुए थे। योद्धा के पीछे-पीछे विशाल सेना चली आ रही थी।
यह अवश्य ही कोई अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है, हनुमान सोच रहे थे, स्वर्ण और रत्नजटित रथ से तो यह राजपरिवार का ही कोई व्यक्ति होना चाहिए। रथ आकर उनके सामने रुक गया और सेना ने जयकार किया ''महाराजाधिराज-पुत्र महाबली अक्षयकुमार की जय।''
तो यह राजकुमार है। वानर-राज्य में भी कभी-कभी इसका नाम सुना जाता है, किन्तु वीरता के लिए नहीं, विलास के लिए, विशेष रूप से वेश्यागामिता की प्रसिद्धि के कारण। तो यह योद्धा भी है। अक्षयकुमार का शरीर उसके युद्ध-विमुख, विलासी तथा सुविधाजीवी जीवन का प्रमाण दे रहा था। रावण ने इसे क्यों भेज दिया, मरने के लिए? रावण अपने पुत्र की प्रकृति तथा सामर्थ्य को नहीं जानता अथवा वह हनुमान की शक्ति को इतना कम आंक रहा है?
अक्षयकुमार ने कण्ठ में सुवर्ण-निष्क, बांहों में बाजूबंद तथा कानों में कुण्डल धारण कर रखे थे। उसका वेश युद्ध के उपयुक्त नहीं था, युद्ध वेश धारण करने का या तो उसे समय नहीं मिला या फिर उसने वह आवश्यक नहीं समझा था। रथ के रुकते ही उसने स्वर्णमय पंखों से युक्त, सुंदर अग्रभाग वाले तथा पुच्छयुक्त तीन भयंकर बाण हनुमान के मस्तक में दे मारे। तीनों बाण प्रायः एक ही साथ लगे। हनुमान रक्त से नहा उठे और उनका मस्तक घूमने लगा। तो यह उतना कोमल नहीं है, जितना कि हनुमान ने समझा था। शत्रु को कभी दुर्बल नहीं मानना चाहिए, ऐसा न हो कि जिसे वे कोमल और सुकुमार मान रहे थे, वही उनका वध कर, विजयी बना घूमता फिरे।
तभी अक्षयकुमार का एक और बाण हनुमान के वक्ष के मध्य में लगा। यह तो मारे ही जा रहा है, हनुमान का तेज जागा, किन्तु शस्त्र तो उनके पास था ही नहीं। सिवाय उसके रथ पर जा कूदने के और कोई उपाय नहीं था। किन्तु, रथ अभी दूर था। वे फाटक के छज्जे से नीचे कूद आए। तो इस शस्त्रहीन स्थिति में ही सेना के बीच धंसना पड़ेगा। यह कोई उचित युक्ति नहीं थी।
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