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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान


हनुमान सावधान हो गए। मेघनाद के विषय में उन्होंने बहुत कुछ सुन रखा था। राक्षस  साम्राज्य को इस समय रावण से भी अधिक मेघनाद पर भरोसा था। जब से उसके नाम के साथ इंद्रजीत विशेषण जुड़ा था, तब से वह और भी भयंकर हो उठा था। उसके आने का  समाचार सुनते ही राक्षस सैनिकों में नये प्राण पड़ गए थे।...मेघनाद सामान्य शस्त्रास्त्रों का दक्ष योद्धा तथा दिव्यास्त्रों का निपुण संचालक माना जाता था। ब्रह्मा का तो वह प्रपौत्र ही था, अपनी निष्ठा के बल पर उसने अपने पिता के ही समान महादेव शिव से भी अच्छा सम्पर्क कर लिया था और उनकी कृपा के वरदानस्वरूप उनसे अनेक दिव्यास्त्र प्राप्त कर चुका था...यह किसी निकुंभला देवी का भी विकट भक्त था। देवराज इंद्र की सेना को पराजित कर उसने उससे भी अनेक दिव्यास्त्र छीने थे...

मेघनाद का रथ निकटे आ गया था और हनुमान उसके आत्मविश्वास से पर्याप्त प्रभावित लग रहे थे...वह सर्वथा एकाकी आया था...किन्तु उसका रथ असाधारण था। ऐसा रथ हनुमान ने पहले नहीं देखा था। उसे दैखकर हनुमान के मन में एक ही शब्द उभरा था-कवच-रक्षित रथ। चारों ओर लोहे की सघन जालियां लगी थीं। शत्रु. द्वारा फेंके गये शस्त्र उन्हीं जालियों में उलझकर रह जाएंगे और मेघनाद को खरोंच भी नहीं आएगी। किन्तु स्थान-स्थान पर बने हुए गवाक्षों के माध्यम से, वह अपनी सुविधानुसार शस्त्र-प्रहार कर सकता था। रथ का आकार भी मय रथों से बड़ा था। लगता था, रथ में ही अनेक कक्ष बने हुए हैं, जिनमें विभिन्न शस्त्रास्त्र रखे हुए थे। मेघनाद अपने साथ बृहद् शस्त्रागार लेकर चलता था। मेघनाद के प्रवेश करते ही युद्धक्षेत्र का रूप बदल गया। हनुमान ने अचकचाकर देखा: सारी राक्षस सेना सम्मुख-युद्ध छोड़कर पीछे हट चुकी थी। उन लोगों ने कुछ दूर जाकर वृत्ताकार घेरा डाल दिया था, जैसे वृत्त के भीतर मेघनाद हनुमान का आखेट करने वाला था और वे लोग मात्र दर्शक थे। किन्तु  हनुमान जानते थे कि राक्षस-सैनिक दर्शकमात्र नहीं थे। जब कभी भी हनुमान इंद्रजीत के प्रहारों से बचने के लिए वृत से बाहर निकलना चाहेंगे, दर्शकों का यही वृत उनके लिए लौह प्राचीर बन जाएगा। वस्तुतः उन लोगों ने हनुमान को एक वीर के समान सम्मुख युद्ध में नहीं एक पशु के समान आखेट में मारने का संकल्प किया। चारों ओर दर्शकों का वृत न होकर, आखेट के लिए हांका करने वालों का घेरा था।

यह सब अकस्मात् ही नहीं हो गया था। या तो यह पूर्व निश्चित व्यवस्था थी, या फिर मेघनाद ने कोई गुप्त आदेश दिया था। अब हनुमान और मेघनाद आमने-सामने थे। मेघनाद का विशाल रथ उन पर झपट रहा था और आकार में-साधारण बाणों से बड़े तथा भारी बाण हनुमान का पीछा कर रहे थे। उन्हें कुछ सोचने-समझने का भी अवसर नहीं मिल रहा था। युद्ध-विद्या में सर्वथा अनभिज्ञ व्यक्ति के समान वे उन बाणों की मार से भागे-भागे फिर रहे थे। सहसा,  उन्होंने अपने हाथ का शस्त्र मेघनाद के रथ पर उछाल दिया-किन्तु वह पूर्वचिंतित परिणाम के अनुसार ही रथ के कवच से टकराकर भूमि पर आ गिरा। हनुमान बिना किसी योजना के ही एक स्थान पर वृत्त को तोड़ने के लिए सैनिकों की भीड़ में जा धंसे। किन्तु यह पग भी उन्हें मंहगा पड़ा। उनके शरीर में तीन-चार स्थानों पर राक्षसों के नुकीले शस्त्र घाव कर गए थे...

हनुमान का मस्तिष्क अब अपनी जड़ता तोड़कर, कुछ सहज हुआ था। अपने झपटने की प्रक्रिया में उन्हें कुछ घाव तो लगे थे, किन्तु इस बीच उन्होंने उन राक्षसों से एक खड्ग तथा एक शूल छीन लिया था। उन्होंने यह भी देखा था कि भीड़ में धंस जाने के कारण मेघनाद के चलाए हुए बाण कुछ राक्षस सैनिकों को ही हताहत कर गए थे। उस भाग-दौड़ में ही हनुमान का मन कुछ अन्य निष्कर्षों पर भी जा पहुंचा था...उनकी गति ही उनका रक्षा-कवच थी। उपयुक्त शस्त्रों के अभाव में रण-दक्ष मेघनाद से सम्मुख-युद्ध का प्रश्न नहीं उठता था। पर यदि वे अपना स्थान और दिशा इस स्फूर्ति से बदलते रहें कि मेघनाद उन पर शस्त्र-संधान न कर पाए तो वे मेघनाद को थका सकेंगे। उनका इस प्रकार राक्षस-सैनिकों की भीड़ में जा धंसना भी व्यर्थ नहीं गया था।

अपने खड्ग और शूल के साथ वे जिस किसी स्थान पर धावा बोलेंगे...राक्षस कितने भी दृढ़संकल्प क्यों न हों-मार्ग दे ही देंगे। और राक्षसों की भीड़ में घिरे हनुमान पर मेघनाद प्रहार नहीं कर पाएगा...

किन्तु तभी आश्चर्यचकित हनुमान ने देखा कि मेघनाद ने न केवल अपना धनुष-बाण समेट लिया, वरन् वह अपने रथ समेत उस घेरे से बाहर निकल गया...वह रथ छोड़कर भाग रहा हो, या उसने हनुमान को बंदी करने का विचार त्याग दिया हो-यह संभव ही नहीं हो सकता। निश्चित रूप से उसने इस बीच कोई भयंकर योजना बना ली थी...

हनुमान का यह सोचना गलत नहीं था। अगले ही क्षण जैसे किसी पूर्व निश्चित योजना के अनुसार उस वृत्त की परिधि के विभिन्न बिंदुओं पर अनेक मल्ल प्रकट हो गए, जिनके हाथों में मोटी-मोटी रस्सियां थीं। हनुमान चकित-से उन्हें देखते रहे-क्या वे कोई कौतुक करने जा रहे हैं?...उनका कौतुक हनुमान के लिए बहुत भयंकर था...उन मल्लों ने एक साथ ही वे रस्सियां हनुमान की ओर उछाल दीं; और तब हनुमान ने देखा, वे रस्सियां मात्र नहीं थीं-वे फंदे थे। उनके मस्तिष्क में सारी योजना बिजली के समान कौंधी!...यह तो ब्रह्मास्त्र था...

बहुत बचाने पर भी, दो-तीन फंदे हनुमान के कण्ठ से नीचे उतर ही गए। जब तक उनसे मुक्त होने का प्रयत्न करते फंदों की दूसरी खेप आ गई। बीसियों फंदों ने उनके शरीर को जकड़ रखा था, जो क्रमशः और भी कसते जा रहे थे। हनुमान समझ गए। वे बंदी हो चुके थे।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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