बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
"तो और कौन इस विषय में आपका साथ देगा। मुझे तो सारी सभा में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई देता, जो रावण के विरुद्ध आपका साथ दे।... हां! राजकुमार कुंभकर्ण को सभा में लाया जा सके और वे अपना सन्तुलन बनाए रख सकें, तो बात और है...''
"कुम्भकर्ण!''
अविंध्य ने मानो विभीषण के मन के किसी पुराने घाव को छील दिया था। अत्याचारी और अनाचारी रावण का विरोध करते हुए भी विभीषण के मन में बार-बार भ्रातृ-प्रेम और कर्त्तव्य का द्वन्द्व जागता है; और कुम्भकर्ण का सम्पूर्ण जीवन नष्ट करके भी रावण कभी एक क्षण के लिए भी संकुचित नहीं हुआ।...रावण ने कुम्भकर्ण को रोका न भी होता; किन्तु उसके मदिरापान के लिए इतनी सुविधाएं उपलब्ध न कराई होतीं, तो क्या कुम्भकर्ण की यह अवस्था होती।...आज कोई भी व्यक्ति किसी भी समय कुम्भकर्ण के पास जाए तो या तो वह मदिरा पीकर धुत-बेहोश पड़ा होता है, अथवा यदि पी-पीकर अचेत न हो गया हो तो मदिरा पी रहा होता है तथा मांस खा रहा होता है। उस समय अपने भोजन और मदिरा पीने की लालसा में वह इतना उग्र होता है कि किसी से सन्तुलित व्यवहार नहीं कर पाता...निरन्तर मदिरापान करने वाला व्यक्ति कितनी देर सन्तुलित व्यवहार करेगा और कितनी देर सचेत रहेगा...आज सारी लंका में प्रसिद्ध है कि कुम्भकर्ण छः मास सोता है और एक दिन वह जगता है, उस दिन केवल भक्षण करता है...
रावण चाहता भी यही है। तभी तो उसने बड़ा भाई होते हुए भी आज तक कभी कुम्भकर्ण का इस अनवरत मदिरापान के लिए तिरस्कार नहीं किया; उल्टे सदा अबाध मदिरा-आपूर्ति का प्रबन्ध किया...रावण ने यही शूर्पणखा के साथ किया। पहले उसके प्रेमी विद्युज्जिह्व से उसके विवाह का निषेध कर, उसके प्रति शूर्पणखा की कामना को उग्र से उग्रतर किया। जब शूर्पणखा ने भाई के अनुशासन से विद्रोह कर उससे विवाह कर लिया तो रावण ने उसका वध स्वयं अपने हाथों किया।...पति से उसका आजीवन विच्छेद करा, शूर्पणखा को अपने महामहालय के वासनामय, विलासी वातावरण में रखकर, उसकी वासना की अग्नि को प्रचण्ड रूप देकर, उन्यूक्त विलास की अनुमति के साथ सर्वसत्तासम्पन्न बनाकर उसे जनस्थान में भेज दिया। जाने कितने युवकों के यौवन तथा जीवन का भक्षण किया है शूर्पणखा ने।...और जब अपनी इच्छा का एक पुरुष-राम-नहीं मिला, तो उसी से वह अमानुषी हो उठी। असन्तुलित, अव्यवस्थित, असहज, विकट अमानुष...पिशाची! क्या अधिकार था राम और लक्ष्मण पर उसका? यदि वे उसे अंगीकार नहीं करना चाहते थे, उनके मन में उसके प्रति प्रेम, वासना अथवा लोलुपता नहीं जागी तो पिशाची-सी बनकर सीता की हत्या कर उन वीर तथा सच्चरित्र पुरुषों के साथ बलात्कार करने को उतावली हो उठी...इस सारे परिवार को नष्ट करने के लिए दोषी कौन है? रावण का स्वार्थ या अहंकार ही तो। उसने अपने विवेक की हत्या की और स्वार्थ प्रेरित होकर अपनें भाई-बहनों के जीवन का नाश किया...और आज उसका अपना पुत्र, उसी के मार्ग पर चलकर, अपने स्वार्थवश अपने पिता को मृत्यु की ओर धकेल रहा है।...सारा वातावरण ऐसा भ्रष्ट हो गया है कि विभीषण की उचित बात भी उनसे संगत नहीं लगती और रावण की अनुचित बातें भी सिर चढ़कर बोल रही हैं...
"नहीं! कुम्भकर्ण से हमें कोई सहायता नहीं मिल सकती। हमें जो कुछ करना है, अपने ही बल पर करना है।" विभीषण का मन स्वयं उदास था।
अविंध्य ने कुछ व्यथित मुद्रा में विभीषण को देखा, "राजकुमार सारी राजपरिषद् में आप अकेले पड़ जाएंगे।"
"हां।" विभीषण ने कुछ चकित भाव से अविंध्य को देखा, "मैं तुम्हारी स्थिति भी समझता हूं।"
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