बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
रक्षक सैनिकों में पुनः हलचल मच गई थी और वे सावधान तथा सन्नद्ध दिखाई पड़ रहे थे। कदाचित् उन्हें फिर से कोई नया आदेश मिला था। अगले ही क्षण मेघनाद भी वहां आ उपस्थित हुआ। सैनिकों की सन्नद्धता का कारण हनुमान की समझ में आ गया था।
मेघनाद के आदेश से, उसी की संरक्षता में, हनुमान को बांधकर, पैदल चलाकर, तथा स्थान-स्थान पर धकेले और घसीटे जाते हुए, राजसभा में लाया गया। राजसभागार अधिक दूर नहीं था। कदाचित् पहले से ही हनुमान को निकट के भवन में लाकर रखा गया था।-दिन काफी चढ़ आया था; किन्तु मार्गों पर अभी भीड़भाड़ अधिक नहीं थी।...हनुमान के मन में रात गए देर तक की चहल-पहल घूम गई। निशाचर लोग उषाकाल में ही कैसे उठ पाएंगे।
किन्तु राजसभा के भीतर की स्थिति कुछ और ही थी। सभागार में प्रवेश करते ही हनुमान का ध्यान भवन के उत्कृष्ट स्थापत्य, उसके भव्य अलंकरण तथा सभासदों की भीड़ की ओर एक साथ आकृष्ट हुआ।...वानरों के सीमित साधनों की मर्यादा के होते हुए भी हनुमान ने कुछ एक राजप्रासाद तथा राजसभागार देखे थे; किन्तु लंका का यह सभागार तो अद्भुत था। ऐसा कोई भवन तो हनुमान ने देखा ही नहीं था। उसकी शोभा वानरों जैसे अविकसित राज्य के प्रतिनिधि के लिए अविश्वसनीय थी। निश्चित रूप से विश्व-भर का धन लंका की ओर प्रवाहित हो रहा था। अन्य देशों को वंचित करके ही किसी देश का राजसभागार इस प्रकार सुशोभित हो सकता था-सभासदों का तो एक विशाल वन ही था। प्रतिदिन इतने सभासद् एकत्रित होते हैं-या इतनी प्रातः इतने सभासद् एकत्रित करने के लिए रात-भर कोई कार्यालय कार्य करता रहा होगा-या फिर उनकी कार्य-पद्धति ही भिन्न होगी-अधिक कार्य-कुशल, सक्षम।
सभा के भीतर आकर, बंदी की रक्षा का भार सैनिकों पर छोड़, मेघनाद ने स्वयं युवराज पद के अनुकूल आसन ग्रहण कर लिया था।
रावण ने एक बार दृष्टि उठाकर हनुमान को देखा : यह व्यक्ति तनिक भी सुदर्शन नहीं था। मैला-कुचैला, भूखा और हताश। चेहरे पर न ऊर्जा, न तेजस्विता। जाने कहां-कहां का धूल- धक्कड़ उसके मुख पर जमा था। शरीर पर आभूषण तो दूर, वस्त्र तक नहीं थे। घुटनों से ऊपर तक की एक मैली-मटमैली धोती, जैसी निर्धन वानर पहना करते थे। इच्छा होती थी।
कि ऐसे गन्दे व्यक्ति को राजसभा में लाने के अपराध में सैनिकों को दण्ड दिया जाए। किन्तु इसे बन्दी कर मेघनाद राजसभा में लाया था। पता नहीं युवराज ने इसे नहलाने-धुलाने का आदेश क्यों नहीं दिया? किन्तु इसका शरीर आकर्षक था। ऐसे हृष्ट-पुष्ट तथा कठोर मांसलता वाले शरीर कभी-कभी देखने को मिलते हैं। लगता था, इस व्यक्ति ने आवश्यकता से अधिक कभी नहीं खाया तथा शरीर से सदा परिश्रम कर उसे ठोस बनाए रखता है...किन्तु चेहरा कहता था कि वह भूखा है और थका हुआ है-सम्भव है कि कुछ खाने-पीने की इच्छा से अशोक वाटिका में जा घुसा हो।-रावण को बताया गया था कि केले खाने के उपक्रम में उसने कुछ वृक्ष भी नष्ट किए थे-
भूखा आदमी चिड़चिड़ा और झगड़ालू हो ही जाता है; किन्तु यह व्यक्ति हिंस्र तथा भयंकर था। उसने अनेक सैनिकों तथा राजकुमार अक्षय का वध किया था-हत्यारा-रावण की आंखों में रक्त-लालिमा तथा रक्त-तृष्णा दोनों की एक साथ उतर आईं। यह रावण के पुत्र का हत्यारा था। इसके इस सुन्दर शरीर के तत्काल टुकड़े कर घृणित जीवों के सम्मुख डाल दिए जाने चाहिए। इस सभा में अपना पक्ष उपस्थित करने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। यह ऐसा जीव नहीं है, जिसे राजसभा में प्रवेश अथवा राजाधिराज से सम्बोधित होने का अवसर दिया जाए। इसे तो बन्दी करते ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए था-
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