बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
'बोल! बोल! दे उत्तर।' प्रतिरावण पुनः जाग उठा था।' वध करना है, तो उनका कर, जिन्होंने इसे भेजा है-।'
पर इस बार रावण तनिक भी व्यग्र नहीं हुआ। वह मन-ही-मन मंद-मंद मुस्कान पीता रहा और विभीषण तथा प्रतिरावण को इस भाव से देखता रहा, जैसे वे अबोध बच्चे हों और समझ नहीं पा रहे हों कि वे किसे चेतावनी दे रहे हैं, उसे जो उनसे कहीं अधिक क्षमतावान् है।
"तुम्हारी ही बात रही विभीषण!" रावण के मुख पर एक धूर्त मुस्कान उभरी, "मैं तुम्हारे भतीजे के हत्यारे को प्राणदण्ड नहीं दे रहा, क्योंकि वह किसी का दूत है। अपने बेटे तथा सैनिकों के हत्यारे को मैं प्राणदण्ड नहीं दे रहा, ताकि राक्षसराज को कोई नीतिविहीन न कहे-पर मैं उसे दण्डित अवश्य करूंगा-।" विभीषण ने उत्कंठित रावण की ओर देखा, कौन-सा दण्ड प्रस्तावित होगा?
रावण के अधरों पर विषैली मुस्कान थी, "तुमने कहा है कि दोषी पाए जाने पर दूत को कारावास का दण्ड दिया जा सकता है। मैं उसे कारावास का दण्ड नहीं दे रहा-।" विभीषण समझ रहे थे कि उदारता की आड़ में रावण कोई निहित दुष्टता करने जा रहा है...
"तुमने अंग-भंग को नीति-युक्त कहा है, पर मैं उसका वास्तविक अंग-भंग भी नहीं कर रहा...। "रावण रुका, "उसे केवल प्रतीकात्मक दण्ड दिया जाएगा, जैसा कि उस कंगले राजकुमार के छोटे भाई ने शूर्पणखा को दिया था-।"
विभीषण रावण की ओर देख न सके। उन्होंने हनुमान की ओर देखा, किस धैर्य से खड़ा है यह वानर, जैसे यह दण्ड किसी और के लिए प्रस्तावित हो रहा हो।
"यह वानर है तो इसकी एक पूंछ भी होनी चाहिए।" विभीषण को देखकर रावण दुष्टतापूर्वक मुस्कराया, "इसलिए, वस्त्रों तथा अन्य ज्वलनशील पदार्थों से इसकी एक पूंछ बनाकर, इसे पहले वास्तविक वानर का रूप दिया जाए; और जब यह वास्तविक वानर बन जाए तो इसे लंका के गली-मुहल्लों, चतुष्पथों-बाजारों में घुमाकर लंका की जनता को इसके दर्शन कराए जाएं और जब सब लोग इसका वास्तविक वानर रूप भली-भांति देख लें तो इसकी पूंछ पर अच्छी प्रकार तेल छिड़ककर उसे आग लगा दी जाए।" रावण ने थमकर विभीषण की ओर देखा, "कोई बात नीति विरुद्ध तो नहीं हुई धर्मात्मा विभीषण?''
विभीषण ने रावण की ओर देखा, कैसा धूर्त है यह रावण। कह रहा है कि मैं केवल प्रतीकात्मक दण्ड दे रहा हूं और इसने हनुमान की मृत्यु का पूरा प्रबन्ध कर दिया है। पूंछ के बहाने हनुमान के शरीर को घी-तेल-सने वस्त्रों से लपेटकर उसे आग लगा दी जाएगी ताकि या तो वह उस अग्नि में जल मरे अथवा उसका शरीर इतना झुलस जाए कि वह पूर्णतः पंगु होकर मृत्यु से भी भयंकर यातना सहे-पर अब रावण का विरोध नहीं हो सकता था। उसने विभीषण को उन्हीं के वचनों में बांध दिया था..."लंकेश्वर का निर्णय नीतियुक्त है-।"
"ले जाओ इसे।" रावण का स्वर अब भी आक्रोश-शून्य नहीं था, "लंका की कोई गली न छूटे, जहां के निवासी इसका वास्तविक वानर रूप न देख लें।-और पूंछ भी लम्बी बनाना, जिसमें अग्नि धधककर जले-।"
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