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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान

अंगद ने गवय, वृषभ, मेंद तथा द्विविद की टोली को खाद्य सामग्री का प्रबंध करने का कार्य सौंपा। वे तत्काल उस कार्य के लिए चल दिए। उन्हें निर्देश था कि वे लोग तत्काल खाए जा सकने वाला ताजा फल इतनी ही मात्रा में तोड़े, जो एक दिन के भोजन की आवश्यकता से अधिक न हों। किन्तु, उन स्थानों को खोजें और चिह्नित करें जहां से आवश्यकता पड़ने पर ताजा फल मिल सकें। साफ-सुथरे पेय जल के स्रोतों को भी उन्हें खोजना था। दीर्घ काल तक टिक सकने वाले फल अथवा अन्य खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों, तो उन्हें अधिक मात्रा में भी संचित किया जा सकता था। भोजन की व्यवस्था के लिए उस दल को भेजकर, अंगद शेष साथियों के साथ स्वयं सागर-तट का सर्वेक्षण करने के लिए निकले। आपसी विचार-विमर्श में पहले यह बात उठी थी कि वे लोग अपने लिए कुछ अस्थायी गुफा आवासों का प्रबंध कर लें और उसके पश्चात् सागर-तट पर सर्वेक्षण चौकियों की स्थापना की ओर ध्यान दें। किन्तु, अंगद के मन में राम के जन-सैनिकों से सुना हुआ पंचवटी का युद्ध बार-बार कौंध रहा था। जब पहली बार उन्होंने यह सारा विवरण सुना था, तब ही उन्हें वह अद्भुत लगा था। सैनिकों के घर तथा व्यूह का एकाकार हो जाना उनके लिए युद्ध-कौशल का नया ज्ञान था। और आज अपने लिए आवास और निरीक्षण चौकियों को एकाकार कर देने की बात उसके मन में आई थी। यहां उनके आवास भी गुप्त होने चाहिए और निरीक्षण चौकियां भी। इतनी गोपनीयता यहां सम्भव भी होगी या नहीं-कहना कठिन था। फिर आवास तथा चौकियां अलग-अलग होने से, आवास में विश्राम कर रहे व्यक्ति चौकियों से दूर हो जाएंगे; परिणामतः निरीक्षकों की संख्या भी कम होगी तथा आवश्यकता के समय एक-दूसरे से मिलने में भी बाधा सम्भावित थी। इसलिए आवास तथा निरीक्षण चौकियां एक साथ ही होनी चाहिए थीं। अपनी निरीक्षण चौकियों में ही अपने आवास का प्रबन्ध कर लेना, सैनिक जीवन के लिए कोई बहुत कठिन काम नहीं था।

उन लोगों ने आधा दिन व्यतीत कर सागर तट पर फैली हुई पहाड़ियों पर शिलाखण्डों में कुछ गुफाओं को खोज निकाला, जिनमें बैठकर, स्वयं को गुप्त रखकर भी सागर तट पर दृष्टि रखी जा सकती थी। उन गुफाओं हो कुछ विशेष चिह्नों से चिह्नित किया गया, ताकि अपनी चौकियों को शिलाखण्डों के उस वन में से खोजकर निकाला जा सके। अंगद ने दो-दो की टोलियों में अपने साथियों को एक-एक चौकी में नियुक्त कर दिया। तब उनका निरीक्षण और प्रतीक्षा का समय आरम्भ हुआ। बारी-बारी वे लोग परिक्रमा करने भी जाते थे। अपने साथियों से संपर्क कर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा उनकी सुविधाओं के विषय में जानकारी भी प्राप्त करते थे।

तीसरे दिन संध्या के झुटपुटे में नील को लगा जैसे, दूर, दृष्टि की सीमा पर सागर की प्राकृतिक लहरों के बीच कुछ छोटी-छोटी-सी कृत्रिम लहरें भी उठ रही हैं, जैसे कोई व्यक्ति तैर रहा हो। नील ने अधिक ध्यान देकर देखने का प्रयत्न किया-कोई जलचर है अथवा कोई मनुष्य तैर रहा है? यदि मनुष्य है तो हनुमान ही होना चाहिए। इतने दिनों से तो इस सागर में और किसी मनुष्य को तैरते हुए नहीं देखा है।

नील ने अपने पीछे बैठे, विश्राम कर रहे जाम्बवान् को दिखाया।

"लगता है हनुमान ही लौट रहा है।" जाम्बवान् उठकर खड़े हो गए, "मैं युवराज को सूचित करता हूं। तुम तैरकर हनुमान तक पहुंचने का प्रयत्न करो। मैं कुछ और लोगों को भेजता हूं। हनुमान थक गया होगा। सम्भव है, उसे सहायता की आवश्यकता हो।"

अंगद, नील और गवय, प्रायः एक ही साथ हनुमान के निकट पहुंचे। हनुमान के थके चेहरे पर मुस्कान उभर आई। वे बोले कुछ नहीं। बोलने की स्थिति में नहीं थे। थकान इतनी अधिक थी कि साथियों का आ मिलना उनके लिए सहारा हो गया था। अंगद और नील उनके दायें-बायें-तैरते हुए उनके एकदम निकट आ गए। गवय पीछे-पीछे आ रहा था...

तट पर खड़े साथियों का हाथ पकड़कर हनुमान बाहर आए और निकटतम शिला पर लेट गए। उन्होंने अपनी एक मुस्कान से अपने साथियों के स्वागत और अभिनन्दन का उत्तर दिया और अपनी चढ़ी हुई सांस को नियमित करने का प्रयत्न करते रहे।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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