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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान

अब तक अंगद स्वयं को संयमित करने का प्रयत्न कर रहे थे, किन्तु जाम्बवान् के वाक्य का कुछ वैसा ही प्रभाव हुआ जैसा उचित दिशा में बढ़ते हुए गज पर शूल के आघात का होता है। उसका मन कडुवा गया..." सुरक्षित उपवन। राजा का सुरक्षित उपवन। राजाओं के विलास का प्रतीक। सब कुछ राजाओं के लिए सुरक्षित रहेगा क्या...यदि अच्छी भूमि, अच्छे उपवनों तथा प्राकृतिक भण्डारों पर राजाओं का निजी अधिकार ही रहना है तो बाली और सुग्रीव में क्या भेद हुआ? बाली के वध से व्यवस्था में क्या अन्तर आया...''

राज्य की सारी उपजाऊ भूमि, श्रेष्ठ वनस्पति तथा खनिजगर्भा खानों

पर राजा, सामंत अथवा किसी भी एक व्यक्ति के आधिपत्य के विरुद्ध कितना संघर्ष किया है अंगद ने। और आज वे सुन रहे हैं कि श्रेष्ठ फलों का उत्पादक यह मधुवन, राजा सुग्रीव का सुरक्षित उपवन है। फल ही नहीं, वानरों के प्रिय खाद्य मधु के सैकड़ों छत्ते इस मधुवन में लगे हुए हैं। यह संपत्ति सारे वानर समाज की है। यह राजा के एकांत आधिपत्य में नहीं रह सकती।

...इस प्रवृत्ति का प्रतिरोध होना चाहिए...और आज से अच्छा अवसर फिर कब आएगा। अपनी सफलता के मद में उन्मत्त वानर आज सुग्रीव का भय नहीं मानेंगे

"मामा तार ने ठीक कहा है। हम एक बड़ा काम कर दूर से आए हैं। सबको ही विश्राम, खाद्य पदार्थ तथा पुरस्कार चाहिए।" अंगद धीरे से बोले, "सामने मधुवन है। उसमें जिसकी जहां इच्छा हो विश्राम करे। जिसकी इच्छा, जो फल खाने की हो, खाए। जिसकी इच्छा छत्ते से मधुपान की हो, यह मधुपान करे।"

जाम्बवान् और हनुमान ने अंगद की ओर देखा, "युवराज!''

"हां। युवराज की ओर से सबको अनुमति है!''

"किन्तु यह सुरक्षित उपवन है", जाम्बवान् बोले।

"इसका दायित्व आप मुझ पर छोड़ दें।" जाम्बवान् समझ गए, अंगद के मन में फिर सुग्रीव का विरोध जागा है।

वानर यूथपति साधारण छोकरों के समान मधुवन में घुस गए। फल तोड़े,। यहां तक कि पत्ते और शाखाएं भी तोड़ डालीं। विभिन्न स्थानों पर मधु के छत्तों में हाथ डाला। मधुमक्खियों को भगाया और छत्तों में से कुछ मधु पी गए और कुछ फेंक दिया...

हनुमान एक ओर खड़े-खड़े सब कुछ देख रहे थे : कैसे अनुमति दी है अंगद ने! और ये वानर यूथपति कैसा व्यवहार कर रहे हैं! सहसा उन्हें लगा, दल के सदस्य इस अभियान के आरम्भ से ही बहुत अनुशासन-बद्ध रहे हैं, विभिन्न प्रकार के संकटों से आशंकित रहे हैं और जोखिमों से जूझते रहे हैं। फिर सफलता का मद भी उनके भीतर उद्दाम लहरें उठाता रहा होगा, जिन्हें अब तक अभिव्यक्ति नहीं मिली है। यदि ये लोग यहां उच्छंखलता नहीं करेंगे तो कदाचित् आत्मदमन से इनका दम घुट जाएगा। युवराज ने कदाचित् बहुत उचित निर्णय लिया है कि किष्किंधा पहुंचने से पहले ही इनका सारा मद यहां झर जाने दिया जाए...

वानर यूथपति क्रमशः अधिक से अधिक उच्छृंखल होते गए। पहले तो लगा कि वे अपनी भूख मिटा रहे हैं, फिर लगा, जैसे वे मदांध हो गए हैं; उन्होंने जैसे मधुपान न किया हो, मद्यपान किया हो। वे लोग अपनी चेतना खो बैठे थे और विध्वंस पर उतारू थे।

दण्डधरों से सूचना पाकर मधुवन का रक्षक दधिमुख स्तंभित रह गया। राजा सुग्रीव के मधुवन को उजाड़ने का साहस कौन कर रहा है। क्या राजा का भय किसी को नहीं रह गया है? जब राजा का मधुवन इस प्रकार दिन-दहाड़े उजाड़ा जा सकता है, तो साधारण आदमी की सम्पत्ति का क्या होगा। क्या वानर राज्य में अब कोई विधि-विधान, नियम-व्यवस्था नहीं रह गई है?..."कौन लोग हैं?"दधिमुख ने पूछा।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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