बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
सीता ने बाण चला दिया। किंतु पता ही नहीं चला कि वह आक्रमणकारी को लगा अथवा नहीं, क्योंकि उसके शरीर पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। अब तक मुखर भी स्थिति समझ चुका था। उसने अपना खड्ग खींच लिया था और प्रहार करने जा रहा था। किंतु आक्रमणकारी उससे कहीं अधिक फुर्तीला और दक्ष था। उसका खड्ग पहले घूमा। मुखर के हाश से उसका खड्ग निकल गया। वह निशस्त्र था। आक्रमणकारी का खड्ग भयंकर गति से ऊपर उठकर नीचे गिरा। मुखर धराशायी हो गया...उसका शरीर निस्पंद था।
सीता ने कांपते हाथों से दूसरा बाण चलाया, किंतु आक्रमणकारी इस बार बाणों की ओर से भी सावधान था। उसने खड्ग के वार से बाण काट डाला। वह उसी स्फूर्ति से कुटिया की ओर बढ़ा।...
सीता के प्राण उनके बाणों में समा गए। राम-लक्ष्मण वन में थे, मुखर कदाचित् मारा जा चुका था, अथवा गंभीर रूप से आहत था। आर्य जटायु को कोई सूचना नहीं दी थी। वैसे भी वे वृद्ध थे और इन दिनों घायल भी। कानों से भी ऊंचा सुनते थे, ऐसी संभावना कम ही थी कि चीत्कार सुनकर वे स्वयं ही सहायता को आ जाएंगे।...राम से विचार-विर्मश करने अथवा लक्ष्मण से शस्त्र-विद्या सीखने वाले ग्रामीण युवक भी जा चुके थे-अब तो सीता का यह धनुष था और वह आक्रमणकारी था। सीता को स्वयं ही निर्णय करना था। सीता ने पूरी शक्ति से तीसरा बाण छोड़ा।
आक्रमणकारी फुर्ती से एक ओर हटकर बाण को बचा गया। उसने क्षणभर रुककर, बाण की दिशा और स्थान को भांपा और दूसरे ही क्षण सारी स्थिति का विश्लेषण कर अपनी नीति निर्धारित कर ली।...इससे पहले कि सीता अगला बाण छोड़तीं, आक्रमणकारी लक्ष्मण की कुटिया की दिशा में भागा। सीता का हृदय धक् रह गया-यदि यह लक्ष्मण की कुटिया में घुस गया, तो वह सुरक्षित हो जाएगा; और सीता तथा शस्त्रागार दोनों असुरक्षित हो जाएंगे। उसे लक्ष्मण की कुटिया में घुसने से रोकना होगा-किंतु वह इस गवाक्ष से संभव नहीं था।...लक्ष्मण ने आड़ छोड़, खुले में आकर युद्ध करने से मना किया था, किंतु अब आक्रमणकारी को रोकने के लिए कुटिया से बाहर आना ही होगा।
सीता ने कुटिया का द्वार खोल दिया, और ईषत् कोण में खींचकर बाण मारा। इस बाण को आक्रमणकारी बचा नहीं पाया। वह उसकी बायीं भुजा में जा घुसा था। किंतु उसने बड़ी लापरवाही से बाण खींचकर फेंक दिया और अपने भागने की दिशा बदल दी। वह सीधा सीता की ओर आ रहा था। सीता का हाथ कांप गया-वह व्यक्ति साधारण योद्धा नहीं था। अब तक का उसका प्रत्येक कृत्य, उच्च कोटि के दक्ष योद्धा का था...किंतु साहस छोड़ने से बात नहीं बनेगी...सीता ने धनुष खींचा... झन्न की ध्वनि के साथ सीता के धनुष की प्रत्यंचा कट गयी। आक्रमणकारी का वार सधा हुआ था। उसने सीता के हाथ का धनुष खींचकर फेंक दिया...और पहली बार उसने रुककर सीता को निहारा... भयभीत सीता की आंखों ने देखा-उस भयंकर पुरुष के चेहरे परे भी कोमल भाव आए। वह मुस्कराया।
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