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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

"तुम क्या पति-सुख से वंचित रही हो, मंदोदरी?" रावण ने आश्चर्य प्रकट किया।

"सम्राट् समझते हैं कि मैं सुखी हूं?" मंदोदरी तीखे स्वर में बोली, "जिसका पति नित्यप्रति युद्ध, आक्रमण, लूटपाट और बलात्कारों के लिए निरंतर विदेशों में घूमता रहे, लौटकर घर आए तो विजय के चिन्ह के रूप में अपहृत कन्याओं की सेना साथ लाए और विजय-पर्व के नाम पर उन निरीह बालिकाओं के साथ बलात्कार करता रहे-वह पत्नी क्या सुखी कही जा सकती है?"

"तो सम्राज्ञी अपने पति को छोड़ जाने को स्वतंत्र थी..."

"मेरे साथ सम्राट् की बहन के संस्कार पर्याप्त भिन्न हैं, सम्राट्!"

रावण को लगा, क्रोध के मारे उसका मुख तो खुल गया है, किंतु कोई स्वर नहीं निकल रहा। बड़ी कठिनाई से वह कह सका, "मंदोदरी...!"

किंतु मंदोदरी कहती गयी, "और फिर जो पुरुष अन्य स्त्रियों को अपने पतियों के साथ नहीं रहने देता, वह अपनी पत्नी को किसी अन्य पुरुष के साथ देख सकता है!...मैं कहती हूं, अब भी समय है, सम्राट्!"

"किस बात का?"

"सम्राट् अपनी काम-लिप्सा को संयत करें।"

"सम्राज्ञी अपने पति को कामुक कह रही हैं!"

"सम्राट् ने इस विशेषण को सदा गर्वपूर्वक अंगीकार किया है।...किंतु अब हममें से किसी को भी यह विशेषण गौरवमय नहीं लगता। मैं नहीं चाहती कि यह कीर्ति फैले कि सम्राट् किसी भी युवा सुन्दरी को देख, स्वयं को वश में नहीं रख पाते; और परिणामतः सम्राट् की पुत्रवधुएं भी स्वयं को इस राजप्रासाद में असुरक्षित मानें..."

"मंदोदरी!" रावण का क्रोध उफन पड़ा, "तुम साम्राज्य के प्रतिशोध को अत्यन्त कलुषित रूप में प्रस्तुत कर रही हो।"

"सम्राट् के क्रुद्ध होने का मैं कोइ कारण नहीं देखती, "इस बार मंदोदरी ने अपनी आंखों में रोष भरकर रावण को देखा, "यदि यह साम्राज्य का प्रतिशोध ही है तो सम्राट् सीता को महल से हटाकर अशोक वाटिका में बंदिनी बनाकर रखें। और प्रतिशोध के नियम के अनुसार, यदि आप उसके पति का वध करते तो भी उसे पति-शोक को भूलने के लिए एक वर्ष का समय दिया जाता। यद्यपि उसका पति जीवित है, फिर भी उसे एक वर्ष की अवधि दें कि वह अपने पति को भूलने का प्रयास करे। एक वर्ष के पश्चात् उसे पुनर्वरण का अवसर दें। तब यदि वह आपको अपना पति स्वीकार कर ले तो उसे अपनी सपत्नी मानने में मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी?"

"यह नहीं होगा।" रावण उठ खड़ा हुआ।

"यही होगा, सम्राट्!" मंदोदरी के स्वर में आदेश था, "यह न भूलें कि मंदोदरी भी इस साम्राज्य की सम्राज्ञी है।"

रावण के नेत्र क्रोध से आरक्त हो उठे, "अपनी सीमा पहचानो, मंदोदरी। सम्राट् की इच्छा का विरोध दण्डनीय है; और दण्ड का निर्णय मैं करता हूं।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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