बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
किंतु क्यों बाध्य है रावण? वह सम्राट् है-लंका का अधिपति! राक्षसों का अधीश्वर! उसके मुख से निकला शब्द विधान है, उसकी इच्छा विश्व-भर के लिए आदेश है। वह मंदोदरी के सम्मुख बाध्य क्यों है?...जो कुछ आज मंदोदरी-ने रावण से कहा है, यदि वह इंद्रजित से भी कह देगी, तो पुत्र का हृदय मां की पीड़ा जानकर पिघल नहीं जाएगा? तब क्या इंद्रजित अपने पिता का विरोध नहीं करेगा?...इंद्रजित! रावण के साम्राज्य का सबसे समर्थ और विश्वसनीय योद्धा!...रावण उसका विरोध नहीं चाहता...ओह! पुत्रों के वयस्क हो जाने पर मां कितनी समर्थ हो जाती है! कैसा मूर्ख है पिता भी! स्वयं अपने विरोधियों को जन्म देता है, उनका पालन-पोषण करता है; और जब वे वयस्क हो जाते हैं, तो उनके सम्मुख आत्म-समर्पण कर देता है। विभीषण का नाम भी लिया है मंदोदरी ने! विभीषण से रावण तनिक भी नहीं डरता; किंतु लंका में विभीषण के भी अनेक अनुयायी हैं। लंका में भी कुछ लोग अब रावण की पद्धति का विरोध करने लगे हैं। विभीषण उनका अगुवा बन बैठा है।...विभीषण से रावण नहीं डरता, किंतु वह नहीं चाहता कि विभीषण और इंद्रजित मिलकर उसके विरुद्ध एकजुट हो जाएं...
पता नहीं, शत्रु का वध कर उसकी पत्नी के हरण की पद्धति की चर्चा मंदोदरी ने जान-बूझकर की है, या असावधानी में ही उसके मुख से बात निकल गयी है...यदि कहीं वह सीता को लौटा देने की हठ पकड़ लेती, तो रावण की स्थिति क्या होती?...सीता को रावण लौटा नहीं सकता और मंदोदरी का दमन अब संभव नहीं है।...मंदोदरी ने उसे सीता को एक वर्ष की अवधि देने को कहा है और उसके पश्चात् पुनर्वरण की स्वतंत्रता।...सीता को पुनर्वरण की स्वतंत्रता दी जाएगी तो क्या वह स्वेच्छा से रावण का वरण करेगी?...नहीं! शायद नहीं! यदि वह पुनर्वरण के लिए मान भी गयी तो क्या उसकी दृष्टि अन्य युवा राक्षसों पर नहीं पड़ेगी-इंद्रजित पर या रावण के किसी अन्य पुत्र पर...?
रावण का मस्तक झनझना उठा-नहीं! सीता किसी और का वरण नहीं कर सकती। वह या तो स्वेच्छा से रावण का वरण करेगी या रावण स्वयं अपने चन्द्रहास खड्ग से उसके टुकड़े-टुकड़े कर देगा...किंतु मंदोदरी द्वारा लगाया गया एक वर्ष का प्रतिबंध! रावण क्या जानता था कि मंदोदरी नागिन बनकर उसे इस प्रकार मर्म पर डंसेगी!
मंदोदरी आकर अपने पलंग पर लेटी, तो उसे लगा, जैसे उसके पेट की गहराई में रह-रहकर पीड़ा की लहर उठ रही है।...विवाह के आरंभिक कुछ वर्षों को छोड़कर, रावण कभी भी पूर्णतः मंदोदरी का नहीं रहा। मंदोदरी ने सदा इस पीड़ा को झेला है और प्रतिवाद किया है।
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