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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

''हम पिता के वचन की रक्षा के लिए चौदह वर्षों का वनवास भोग रहे हैं।'' राम बोले, ''और गुरु अगस्त्य के निर्देश पर पंचवटी में निवास करने आए हैं।''

''अगस्त्य!'' वृद्ध कुछ सोचता हुआ बोला, ''अगस्त्य ने तुम्हें भेजा है, तो अकारण नहीं भेजा होगा। तुम जानते हो, राम! यहां से थोड़ी दूर पर गोदावरी है, और उसके पार जनस्थान है, जहां राक्षसों ने अपना विशाल सैनिक स्कंधावार बना रखा है। वहां एक बड़े राज्य की रक्षा के लिए पर्याप्त सेना है...।''

''हमें इससे क्या प्रयोजन कि वहां क्या-क्या है?'' लक्ष्मण बोले।

''किंतु मुझे है।'' वृद्ध का स्वर पुनः तीखा हो गया, ''तुम दशरथ के पुत्र हो और मैं किसी समय का दशरथ का मित्र हूं-गिद्ध जटायु! मैं और दशरथ शंबर-युद्ध में एक ही पक्ष से लड़े थे। ...तब मेरी स्थिति यह नहीं थी।'' जटायु ने अपने शरीर की ओर इंगित किया।

''ओह! तात जटायु!'' राम बोले, ''यहां क्या कर रहे हैं?"

जटायु आकर उनके पास बैठ गए, ''यह मेरा प्रदेश है। मेरा गोत्र यहीं रहता था। किसी समय हमारा गोत्र भी समृद्ध था। अनेक गांव थे, कुछ आश्रम भी थे, जहाँ हमारे बच्चे शिक्षा पाते थे। किंतु इन राक्षसों के मारे कुछ नहीं बचा। उन्होंने आश्रम नष्ट कर दिए। ग्राम उजाड़ डाले। भूमि छीन ली। कुछ लोग मर-खप गए और कुछ वन में इधर-उधर विलीन हो गए। मैं तब से ही खड्ग बांधे फिरता हूं। सामान्यतः लोग मुझे सनकी बूढ़ा समझकर मेरे पास नहीं फटकते, किंतु जब कहीं राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ जाता है, और दो-चार दिल-जले युवक, प्राण हथेली पर लिए उनका विरोध करने के लिए उठते हैं, तो मेरे पास आ जाते हैं। राक्षसों से निरंतर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष झड़पें होती रहती हैं। तीन दिन पहले, राक्षसों की एक टोली ने हमारे कुटीर जला दिए थे। दो साथी मारे गए, तीन भाग गए, तब से अकेला भटक रहा हूं। तुम लोगों को देख रहा था कि यहां क्यों आए हो? तपस्वी वेश देखकर समझ गया था कि राक्षस नहीं हो। साथ में बहू वैदेही भी थी-इससे मन में बार-बार प्रश्न उठता था कि कौन लोग हो और यहां क्या कर रहे हो?. किंतु ऋषि जानते हैं कि यहां कितना संकट है, फिर उन्होंने तुम्हें यहां क्यों भेजा है?'' 

''क्योंकि यहां संकट है,'' राम मुस्कराए, ''और संकट से लड़ना हमारा काम है।''

जटायु ने राम को मुग्ध दृष्टि से देखा, ''तुम मुझे दशरथ से भी बड़े योद्धा प्रतीत होते हो। तुम लोग यहां रहोगे, तो मैं कुछ दिनों तक टिककर एक स्थान पर रह सकूंगा।''

''तात जटायु!'' राम आश्वस्त स्वर में बोले, ''हम काफी समय तक यहां रहेंगे। आप भी हमारे साथ रहें। अपने पीड़ित संगी-साथियों को भी बुला लें। आप जैसा योद्धा हमारे साथ होगा, तो हमें भी सुविधा रहेगी। अब राक्षसों के भय से भागते फिरने की आवश्यकता नहीं है।...हमें बताइए कि हम अपना आश्रम कहां बनाएं?''

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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