लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार

राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

37 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

रावण को पता चलेगा। वह अपनी सेना लेकर राम पर चढ़ दौड़ेगा। राम अपनी बायीं भुजा में शूर्पणखा को बांधे, दायें हाथ से खड्ग चलाएगा। वह रावण का वध करेगा मंदोदरी भाभी को पैरों से ठुकराएगा, मेघनाद को बंदी करेगा, और सुलोचना को पड़ी रोती रहने देगा ...केवल शूर्पणखा को वह अपनी भुजा में बांधे, वक्ष से चिपकाए रहेगा ...केवल शूर्पणखा को ...शूर्पणखा के मन में तीव्र इच्छा का ज्वार उठा कि वह उच्च स्वर मे अट्टहास करे और चीखकर कहे-रावण ने शूर्पणखा के एक प्रेमी का वध किया तो क्या हुआ, शूर्पणखा के दूसरे प्रेमी ने रावण का वध कर दिया ...हाहा-हा ...शूर्पणखा! वही पुराष तेरा प्रेमी होने योग्य है, जो तेरे भाइयों से पराजित न हो और सम्मुख-युद्ध में उनका वध कर सके, अन्यथा तेरे भाई तेरे प्रेमियों के मूंड काट-काटकर, लंका की प्राचीरों पर सजाते जाएंगे...।

शूर्पणखा की आंखें गीली हो गयीं और कंठ से जोर-जोर से हंसने का स्वर फूटा। उसने अपना मस्तक अपने घुटनों पर टेक दिया।

दूसरे दिन प्रातः ही शूर्पणखा के मन में जल्दी मच गयी। आखिर अपराह्न तक का समय, वह इधर-उधर क्यों नष्ट करती है? राम संध्या के समय ही मिले...यह क्यों आवश्यक है? प्रातः भी तो वह आश्रम से निकलता ही होगा। वह प्रातः ही क्यों नहीं चली जाती? यह सारा समय वह श्रृंगार और कल्पनाओं में ही क्यों लगाए? उसे राम के सम्मुख प्रकट तो होना नहीं है।...आज संध्या नहीं तो रात्रि तक लंका से श्रृंगारवैद्य और श्रृंगारकर्मी कलाकार आ ही जाएंगे। कल वह कामरूपा हो जाएगी। अपना इच्छित रूप बनाकर, राम के सम्मुख प्रकट होगी।

थोड़ा-सा मद्य पीकर उसने स्वयं को संतुलित किया; और तत्काल श्रृंगार का आदेश देकर वह पुनः राम के विषय में सोचने लगी। रात को सोची गयी एक-एक बात पुनः उसके मन मे आने लगी। राम और रावण के मध्य होने वाला संभावित संबंध...और अतीत मे हुआ रावण तथा विद्युज्जिह का संबंध...ऐसा क्यों है कि शूर्पणखा अपने प्रेमी के रूप मे उसी पुरुष को अंगीकार करती है, जो रावण का शत्रु हो...क्या प्रत्येक श्रेष्ठ पुरुष रावण का शत्रु ही हो सकता है...या शूर्पणखा ने ही अपने मन में भाई के प्रति वैर पाल रखा है? भाई का वैरी ही क्यों उसे प्रिय लगता है?...

''स्वामिनी। भोजन।''

''भोजन नहीं। रथ तैयार करने के लिए कहो।''

''स्वामिनी कब लौटेंगी?''

''निश्चित नहीं है।'' शूर्पणखा रूखे स्वर में बोली, ''अपने अधिकार

की सीमा समझो। राक्षसों का सम्राट् भी मुझसे इस प्रकार के प्रश्न पूछने का साहस नहीं करता।"

''भूल हुई स्वामिनी।" परिचारिका अत्यन्त नम्र स्वर मे बोली, "किंतु इधर स्वामिनी का भोजन बहुत कम हो गया है। दासी की पाककला में कोई दूषण..."

"नहीं। भौजन न हीं करने के अन्य कारण हैं।"

शूर्पणखा, राम के आश्रम के सम्मुख, वन मे अपने स्थान पर आ छिपी। किंतु आज स्थिति कुछ भिन्न थी। संध्या के समय तक वन में लोगों का आवागमन कम हो जाता है। प्रकाश क्रमशः क्षीण हो रहा होता है। किंतु इस समय तो सूर्य उत्थान की ओर था। प्रकाश प्रखर होगा और लोगों के आवागवन में बृद्धि होगी...किसी की दृष्टि उस पर पड़ गयी तो स्थिति बिगड़ जाएगी।-उसे अधिक सावधान रहना होगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book