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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

राम ने पुनः निरीक्षण की दृष्टि से देखा-आज तक उन्होंने देखा था, जिनके प्राणों पर किंचित् भी संकट होता था, उनके चेहरों का रंग उड़ जाता था, होंठ कांपते थे, कंठ से स्वर नहीं निकलता था। टांगें थरथराती थीं और सांस की धौंकनी चल रही होती थी।...और आज उनके सम्मुख एक विगत-यौवना युवती खड़ी थी...जिसने कदाचित् अपने श्रृंगार में एक सप्ताह लगाया होगा, वह मुस्करा-मुस्कराकर मादक नयनों से देखती हुई अपने प्राणों के संकट की बात कह रही थी। राम के मन में वितृष्णा जागने लगी, ''तुम पर कैसा संकट है, देवि?'' राम ने पुनः पूछा।

''देवी मत कहो, मुझे 'कामवल्ली' कहो।''

''संबोधन चुनने की स्वतंत्रता मुझे दो।'' राम का स्वर कुछ रुक्ष हो गया, ''नाम द्वारा संबोधित किए जाने से तुम्हारा संकट कम नहीं होगा।''

''मुझे बताया गया है कि तुमने असहाय और निर्बल लोगों की अत्याचारों से रक्षा करने का व्रत ले रखा है।'' राम के स्वर की रुक्षता की उपेक्षा करती हुई, शूर्पणखा निकट आती हुई बोली, ''मणि को तुमने संरक्षण दिया है। उसकी स्थिति मुझसे अधिक संकटपूर्ण नहीं है।'' 

''मणि! मणि का संकट मैं जानता हूं।'' राम बोले, ''तुम्हारे संकट से अभी अपरिचित हूं।''

''एक निर्दयी अत्याचारी मेरे पीछे पड़ा है...'' शूर्पणखा का उत्तरीय उसके कंधों से ढलककर, नीचे आ गया, ''वह मुझे कहीं भी शांति से बैठने नहीं देता, सोने नहीं देता, भोजन नहीं करने देता।...''

राम को शूर्पणखा के स्वर में पीड़ा से अधिक क्रीड़ा का आभास मिला, ''जहां जाती हूं, वहीं चला आता है।'' वह कहती जा रही थी, ''आज तक उसे कोई रोक नहीं सका, ऐसा दुर्निवार योद्धा है वह और कितना अत्याचारी! उसका कार्य ही लोगों को सताना है। उसके अस्त्रों की मार से कलेजे छलनी हो जाते हैं, रक्त उफनने लगता है और क्रमशः

प्राण क्षीण होते जाते हैं।''

राम देख रहे थे, अपनी यातना के वर्णन से, कामवल्ली के चेहरे पर कैसी विहलता गहराती जा रही थी। निश्चित रूप से यह स्त्री किसी के द्वारा उत्पीड़ित नहीं थी, फिर यह सब क्या था? राक्षसों की कोई चाल, अथवा स्त्री की दुश्चरित्रता?

''अत्याचारी का नाम लो, देवि!'' राम बोले, ''यदि उसने तुम्हें वस्तुतः सताया है, और राम में तुम्हारी रक्षा की क्षमता है, तो राम पीछे नहीं हटेगा।''

''केवल तुममें ही क्षमता है, राम केवल, तुममें!'' शूर्पणखा बोली, ''भूलना मत। तुमने मुझे वचन दिया है।''

''मैं वचनों को भूलता नहीं।'' राम बोले, ''किंतु मुझे मेरे आदर्शों में बांधने का प्रयत्न मत करो।

भ्रमित संदर्भों में दिया गया वचन कोई वचन नहीं। विलंब मत करो। अत्याचारी का नाम लो।''

शूर्पणखा राम के निकट चली आयी, जैसे उनके कंठ में अपनी भुजाएं डाल देगी। उनकी आंखों में झांकते हुए, मुस्कराकर बोली, ''कामदेव।''

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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