लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार

राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

37 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

शूर्पणखा फिर जोर से हंसी, ''प्रेम की परीक्षा लेना चाहते हो? मैं डूब भी मरूंगी, अपनी हठ की बड़ी पक्की हूं।'' वह किसी षोडशी के समान इठलाई, ''आओ मेरे साथ। देख लो, तुम्हारे कहने पर डूब मरती हूं या नहीं।''

आश्रम निकट आ गया था और लक्ष्मण की समझ में नहीं आ रहा था कि उससे मुक्ति कैसे पाएं। जिस ढंग से वह चलती जा रही थी, उससे तो लगता था कि वह आश्रम तक ही नहीं. आश्रम के भीतर भी जाएगी।

''अच्छा ऐसा करो। इस समय चली जाओ।'' लक्ष्मण बोले, ''कल प्रातः गोदावरी-तट पर आ जाना, फिर देखूंगा कि तुम मेरे कहने से डूब मरती हो या नहीं। यदि डूब मरोगी तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगा।''

''डूब मरूंगी तो विवाह कर लोगे?''

''कर लूंगा।''

''पक्की बात।''

''पक्की।''

''तो विवाह कर लो। मैं तुम्हारे प्रेम में डूबकर, तुम पर मर चुकी हूं।''

''ठीक है'' लक्ष्मण मुस्कराए, ''विश्वास हो गया कि तुम मर चुकी हो, अब तुम्हारा क्रिया-कर्म कर लूं फिर जो कन्या पसन्द आएगी, उससे विवाह कर लूंगा। तुम अब जाओ।''

''तुम बहुत रोचक बातें करते हो।'' वह हंसी, ''मैं तुमसे विवाह किए बिना नहीं जाऊंगी।'' वे लोग आश्रम के टीले पर चढ़ते-चढते काफी ऊपर आ गए थे। लक्ष्मण सावधान थे कि जिस मार्ग से वे लोग आ रहे हैं, उसके साथ के दोनों ओर के ढूहों पर जन-सैनिकों के कुटीर हैं, किंतु शूर्पणखा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी। अब उसे टीले से धक्का दे दें, अथवा स्वयं कूद जाएं?

अंत मे तंग आकर बोले, ''देखो देवि! मैं तो भैया राम का अनुचर हूं। दास। उनकी अनुमति के बिना मैं पेड़ के फल तक नहीं तोड़ता। विवाह तो दूर की बात है।''

''फल मत तोड़ना।'' शूर्पणखा धृष्टता से मुस्कराई, ''विवाह कर लो। तुम्हारे भैया से अनुमति मैं ले चुकी हूं। उन्होंने कहा था, सौमित्र स्त्रीविहीन है-उससे विवाह कर लो।''

''स्त्रीविहीन हूं, बुद्धिविहनि तो नहीं कि तुमसे विवाह कर लूं।'' लक्ष्मण झल्लाकर बोले, ''अब तुम जाती हो या सचमुच तुम्हें टीले से नीचे धक्का दे दूं?"

''धक्का-मुक्का प्रेम की प्रौढ़ स्थिति है।" शूर्पणखा ने अपनी भवें नचायी, "अभी तो केवल विवाह कर लो।'' वे आश्रम के भीतर प्रवेश कर चुके थे और लक्ष्मण का रोष चरम सीमा पर था। स्वयं को ऐसा विवश उन्होंने कभी नहीं पाया था। कैसे छुटकारा पाएं...?

सामने अपनी कुटिया के बाहर राम बैठे थे। लक्ष्मण समझ नहीं पा रहे थे-वे भैया के सामने कैसे जाएंगे, और साथ ही भाभी के कटाक्ष...

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai