बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
नायक यह देखकर पूर्णतः आश्वस्त था कि उनका पीछा नहीं किया जा रहा था और भागने की उन्हें खुली छूट थी। वे लोग आकर शूर्पणखा के सामने रुके तो उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हुआ। उनमें से एक भी सैनिक ऐसा नहीं था, जो घायल न हुआ हो, और कदाचित् चौदह अंगरक्षकों के शव वे आश्रम में ही छोड़ आए थे।
शूर्पणखा ने बिना एक शब्द कहे स्थान-स्थान से घायल अपने नायक से अभियान का वर्णन सुना, और नायक के मौन होते ही अपना खड्ग उसकी पसलियों में धंसा दिया, "यह लो अपना पुरस्कार!''
''चलो, सारथि।'' नायक के रक्त से सने अपने खड्ग को लहराते हुए उसने आदेश दिया। उसने पलटकर यह भी तो नहीं देखा कि नायक का शव कहां और कैसे गिरा है तथा अन्य सैनिकों की क्या स्थिति है।
इस बार शूर्पणखा ने तनिक भी संकोच नहीं किया। अब संकोच का अवकाश नहीं था। वह सीधी खर के स्कंधावार में पहुंची, और बिना किसी प्रकार की सूचना भिजवाए, चलती हुई स्वयं खर के सामने जा खड़ी हुई।
खर अपने सामने मदिरा के भांडों तथा पात्रों का जमघट लगाए बैठा, उनसे खेल रहा था और उसके चारों ओर प्रायः नग्न दासियों का घेरा था, किंतु शूर्पणखा को देखते ही उसकी चेतना लौट आयी, ''आओ भगिनी भर्तृदारिके!''
"तुम लोग जाओ!'' शूर्पणखा ने दासियों को आदेश दिया।
एकांत हो जाने पर खर ने पूछा, "क्या है, शूर्पणखा? कोई विशेष बात है?'' शूर्पणखा एक मंच घसीटकर उसके सामने बैठ गयी।
''ध्यान से मेरी ओर देखो!'' वह बोली, "मेरी नाक और कानों पर तुम्हें कुछ दिखायी पड़ता है?''
खर ने आंखें झपकाकर देखा, "घाव हुआ है क्या?''
''यह खड्ग का घाव है!'' शूर्पणखा बोली।
लगा, खर की चेतना लौट आयी है। आंखों में समझदारी का भाव झलकने लगा, "यह कैसे हुआ?'' शूर्पणखा ने घटना सुना दी।
''तुम अंगरक्षकों को साथ लेकर क्यो नहीं गयी?''
"व्यर्थ की बातें मत करो।'' शूर्पणखा का स्वर कुछ ऊंचा हो गया, ''आज तक शूर्पणखा अंगरक्षकों को साथ लेकर प्रेम-क्रीड़ाएं करने जाती रही है? अपनी बात क्यों नहीं कहते कि मदिरा में डूबे रहकर तुमने इस क्षेत्र को राक्षसों के लिए असुरक्षित बना दिया है। यदि तुम्हारी सेना का आतंक बना रहता तो कोई विद्रोही यहां पग रखने का साहस नहीं करता, और जो पग रखता वह इस प्रकार मेरा अनादर नहीं कर सकता। क्या तुमने कभी देखा कि यहां की परिस्थितियां कैसे बदल रही हैं? तुम्हें मालूम हुआ कि तुम्हारे सैनिकों और मेरे अंगरक्षकों का कहां-कहां ग्रामीणों तथा तपस्वियों से संघर्ष हुआ...''
''अब रहने भी दो, राजकुमारी!'' खर ने बीच में ही बात काट दी, ''जब मैंने तुम्हें बताया था कि एक संघर्ष में सैनिक घायल हुए हैं और वे मृतप्राय हैं, तो तुमने सैनिक तीव्रगामी रथ लंका से अपने श्रृंगार-शिल्पी मंगाने के लिए छीन लिए, जबकि हमें शल्य-चिकित्सकों की अपरिहार्य आवश्यकता थी। फिर मैं कैसे मान लेता कि सैनिक आवश्यकताओं का तुम्हारी दृष्टि में कोई भी मूल्य था। अब जो कुछ भी तुम कह रही हो-सच कहना यह राजनीतिक आवश्यकताओं से कह रही हो अथवा...''
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