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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

''राक्षसों के चार-पांच सैनिक हों तो कभी-कभी, जटायु के प्रशिक्षित युवक उन्हें घेर-घारकर पीट देते हैं। बहुत न सही, ''जटायु मुस्कराए, ''इक्का-दुक्का राक्षस सैनिक इस क्षेत्र में जटायु का आतंक मानता है।'' 

''अर्थात् भूमिका तैयार है।'' मुखर हंसा।

''इसका अर्थ यह भी हुआ कि रात को आप लोग पूरी नींद सो सकेंगे।'' लक्ष्मण बोले, ''विशेषकर ब्रह्मचारी बंधु।''

''हां!'' राम कुछ सोच रहे थे, ''हमें रात को जल्दी सो जाना चाहिए। प्रातः ब्रह्मचारी मित्र विदा होंगे। और भूलना मत, मित्रो!'' राम ब्रह्मचारियों से संबोधित हुए, ''गुरु अगस्त्य से कहना कि वे सुतीक्ष्ण, शरभंग, आनन्द सागर, धर्मभृत्य, अग्निजिह्वा-सभी आश्रमों में हमारे स्थान की सूचना, तुम्हारे पहुंचते ही भिजवा दें। संपर्क शीघ्र स्थापित होना चाहिए...और हमारे शेष शस्त्र भी वे क्रमशः भिजवाते रहें...।''

''अच्छा, राम!'' जटायु बोले, ''एक प्रश्न मुझे पूछना है। संकोच मत करना, अपना स्पष्ट मत देना।''

राम ने जटायु की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

''एक युवक है, जो योद्धा नहीं है, शस्त्रों का शान भी उसे नहीं

है, किंतु शरीर से हृष्ट-पुष्ट है। वह जनस्थान में शूर्पणखा के प्रासाद में माली का काम करता था। कुछ कारणों से शूर्पणखा ने उसे यातना देनी आरंभ कर दी। वह वहां से भाग आया है। लौटकर वह प्रासाद में जा नहीं सकता। शूर्पणखा के भय से कोई व्यक्ति उसे आश्रय देने को तैयार नहीं है। हिंस्र पशुओं द्वारा खदेड़े गए मेमने के समान, वह वन में इधर-से-उधर छिपता फिर रहा है। बताओ, उसका उद्धार कैसे होगा?''

''प्रश्न यह है कि वह चाहता क्या है?'' राम बोले।

''क्या चाहेगा? सुरक्षा, ईमानदारी की आजीविका और सम्मानपूर्ण जीवन।''

''उससे कहिए कि वह हमारे पास आ जाए।'' राम बोले, ''राक्षसों से बहुत भयभीत हो तो, हमारे आश्रम मे कुटीर बना ले, अन्यथा किसी भी दूह पर कुटिया बना ले। यह सारा क्षेत्र अब सुरक्षित है।'' राम मुस्कराए, ''कोई गृहस्थ उसे अपने साथ रखना चाहता हो, किंतु राक्षसों के भय से रख न पाता हो, तो उससे कहिए, वह उस युवक को आश्रय दे दे। भय का अब कोई कारण नहीं है।''

जटायु आश्चर्य से राम को देख रहे थे। राम के चेहरे पर न अहंकार था, न गर्व। वहां एक दायित्वपूर्ण, गंभीर आत्मविश्वास था।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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