बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
किंतु खर की घोषणाओं से राम के बाण अधिक प्रभावी सिद्ध हो रहे थे। सैनिकों में कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई। बहुत थोड़े-से सैनिक पलटे, शेष गोदावरी की ओर भागते ही चले गए। खर क्रोध में जलता हुआ आगे बढ़ा। उसके अंगरक्षक बारह महारथी-र्श्यनगामी, पृथुग्रीव, यशशत्रु विहंगम. दुर्जय, करवीराक्ष परुष, कालकार्मुक हेमभाली महामाली सर्पास्य रुधिराशन-अब भी उसके रथ को घेरे हुए थे। उसके पक्ष में लड़ने वाले दो-ढाई सौ से अधिक सैनिक शेष नहीं थे।
राम ने मुसकराकर देखा-खर सामने था। जनस्थान की राक्षसी शक्ति का मेरुदंड! इस व्यक्ति ने स्वयं तो जो अत्याचार किए थे, वे किए ही थे-इस सम्पूर्ण क्षेत्र मे रावण की शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में समस्त अत्याचारों को प्रश्रय देने का कार्य इसने किया था। इसने मुखर के परिवार जैसे असंख्य परितारों को नष्ट किया था। जटायु के साथियों की निरन्तर हत्याएं की थी, आसपास के सैकड़ों ग्रामों के अबोध बालक इसके आतंक के कारण अपने खेतों का अन्न नहीं खा सके, अपनी वाटिकाओं के फल नहीं खा सके और अपने ही पशुओं का दूध नहीं पी सके। शूर्पणखा जैसी चुड़ैल इसकी सैनिक शक्ति के बल पर मणि जैसी अनेक स्त्रियों के अबोध बच्चों को खाती गयी, आदित्य जैसे युवकों के यौबन का शोषण करती रही ...और आज वह राम के सम्मुख खड़ा था...
खर ने अपना धनुष उठाया और राम पर बाण छोड़ा। बाण राम की जंघा में लगा। राम ने भी प्रत्यंचा खींची और बाण छोड़ा ...बाण खर के अंगरक्षकों में उलझकर रह गया। जब तक खर का दूसरा बाण राम के धनुष की प्रत्यंचा काट गया। जब तक राम दूसरे धनुष की ओर झुके, खर ने अपनी अद्मुत क्षमता का परिचय देते हुए एक के पश्चात् एक, सात बाण राम को मारे; और राम का कवच काट-कर पृथ्वी पर फेंक दिया...
कवच और धनुष से विहीन राम, एकाकी, बिना किसी ओट के भूमि पर खड़े थे और सामने बारह महारथियों से रक्षित, सैकड़ों शस्त्रास्त्रों से भरे, अपने मूल्यवान रथ में आरूढ़ खर धनुष ताने खड़ा था...
राम की सेना में हलचल हुई। अगले ही क्षण मुखर, जटायु मूलर, धर्मभृत्य आनन्द सागर, भीखन, कृतसंकल्प, शुमबुद्धि तथा अनेक छोटे-बड़े नायक सघन प्राचीर की भांति बीच में धंस आप। उनके धनुषों की स्फूर्तिपूर्ण आकस्मिक टंकार ने खर की गति अवरुद्ध कर दी।
राम अपने साथियों का कौशल देखकर मुस्कराए। इस बीच उन्हें पर्याप्त समय मिल गया था। वे अगस्त्य ऋषि द्वारा दिए गए वैष्णवी धनुष से सज्जित हो उठे थे। कंधे के तूणीर परिवर्तित कर लिए थे; और अब राम का धनुर्विद्या-प्रदर्शन का समय आया था। राम ने पहले बाणों से खर के रथ का जुआ काट डाला। अगले झटके में उन्होंने उसके चारों चितकबरे घोड़े मार डाले। खर, अपने डोलते हुए रथ पर जब तक संभलता, उन्होंने उसका सारथी मार डाला और तीन तीक्ष्ण बाणों से रथ का त्रिवेणु काट अगले क्षुरबाण से खर के धनुष के टुकड़े कर दिए....
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