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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

शूर्पणखा की बात को सत्य मानना होगा...दंडकारण्य में राम ने तपस्वियों और स्थानीय जातियों का ऐसा व्यूह संगठित किया है, जो राक्षस-सेना का काल है। यदि लंका से अपनी राक्षसी सेना ले जाकर रावण, राम के उस व्यूह से टकराएगा तो उसकी स्थिति भी खर, दूषण तथा त्रिशिरा की-सी होगी। यह कृत्य शशक का सिंह की गुफा में जाकर लड़ने के समान होगा...।

रावण विक्षिप्त हो उठा।...जगद्विजयी रावण की अपनी बहन ने आज यह घोषित कर दिया है कि एक असहाय और निर्वासित राजकुमार ने सर्वथा एकाकी ही दंडकारण्य में ऐसी प्राचीर गढ़ दी है,, जिसे रावण अपनी समस्त सेना, वीर सेनापतियों, योद्धा-पुत्रों और भाइयों के बल की सहायता पाकर भी पार नहीं कर सकता। कीट-पतंगों जैसे नगण्य जीवों के संगठन के आधार पर उसने रावण को दंडकारण्य के इधर-उधर ही बंदी कर दिया है। बाहर से जाकर दंडकारण्य में युद्ध करना किसी के लिए भी संभव नहीं है। वहां की प्रजा सचेत, जागरूक, संगठित तथा सशस्त्र है...।

दंडकारण्य में अब युद्ध नहीं होगा-रावण के मस्तिष्क में कोई चीत्कार कर रहा था-युद्ध होगा तो दंडकारण्य के इधर-उधर ही होगा। ठीक कहती है शूर्पणखा-रावण केवल मदिरापान कर, रमणियों में घिरा संज्ञा-शून्य पड़ा रहा है। नहीं तो जनस्थान में, उसकी नाक के नीचे इतना कुछ घटित होता रहता और उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती? वह तो लंका में पड़ा था, किंतु खर, दूषण और त्रिशिरा तथा स्वयं शूर्पणखा जनस्थान में बैठे क्या कर रहे थे?...उसके मन में कोई अट्टहास कर उठा-शूर्पणखा ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे जनस्थान में वही कर रहे थे, जो स्वयं वह लंका में कर रहा था। ऐसे में किसी को किसी बात की सुध कहां रहती है।

रावण हताश हो उठा। उसके मन में आया कि वह अपना सिर दीवार से दे मारे और उसे चूर-चूर कर दे।...किंतु उसका मन यह भी जानता था कि प्रत्येक दीवार सिर मारने से चूर-चूर नहीं होती...तो क्या वह राम द्वारा निर्मित दीवार पर सिर दे मारता? सहसा उसके चिंतन का प्रवाह थम गया, आखिर वह शूर्पणखा की प्रत्येक बात को ठीक उसी रूप में मानकर क्यों चल रहा है, जिस रूप में शूर्पणखा ने उसे उसके सम्मुख रखा है? वह स्वयं जाकर क्यों नहीं देखता कि जनस्थान में स्थिति क्या है?" उसने बिना युद्ध किए ही क्यों यह मान लिया कि राक्षस सेना जनस्थान में जीत नहीं पाएगी? क्या सत्य ही उसका मन दुर्बल हो गया है?

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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