कविता संग्रह >> दर्शन दर्शनओ.एन.पी.कुरूप
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श्रेष्ठ कविता संग्रह...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ओ.एन.वी. की कविता भाव-सान्द्रता, अर्थ-गांभीर्य और चित्रगीतों की
त्रिवेणी है। कवि ने अपने सघन अनुभूतियों को सक्षम अभिव्यक्ति प्रदान की
है और उसके लिए सरस कोमल पद-विन्यास, इतिहास-पुराणों पर आश्रित सघन बिम्ब,
भावात्तेजन में सहायक सादृश्य-मूलक अलंकार, नित्य नूतन प्रतीक, संगीतात्मक
एवं गेयता आदि का सहारा लिया है। उनकी प्रयुक्त पदावली अनायास निकली हुई
है। ओ.एन.वी. के प्रतीकों में नयी अर्थवत्ता एवं प्रासंगिकता नयी गरिमा
भरती है। अधिकांश प्रतीक प्राकृतिक परिवेश लिये हुए हैं। पतित, पद्म, कोरे
कागज पर खिले पुष्प, ग्रामीण पोखरे, मृत जड़ें, आग्नेय पंखोंवाले पक्षी,
खिड़की, शार्ङगकपक्षी, किराये का घर, फिनिक्स पक्षी सब के सब जीवन के नाना
रूपों, भावों, विसंगतियों के प्रतीक बनकर आते हैं और इनमें से अधिकांश
प्रतीक दुरूहता के दोष मुक्त भी हैं।
भाव एवं शिल्प की दृष्टि से कुरूप की कविता मलयालम साहित्य के विकास के रूप में एक विशेष उपलब्धि है।
ऐसे कवि का संकलन प्रकाशित करने में भारतीय ज्ञानपीठ को विशेष प्रसन्नता है।
भाव एवं शिल्प की दृष्टि से कुरूप की कविता मलयालम साहित्य के विकास के रूप में एक विशेष उपलब्धि है।
ऐसे कवि का संकलन प्रकाशित करने में भारतीय ज्ञानपीठ को विशेष प्रसन्नता है।
प्रस्तुति
भारतीय ज्ञानपीठ विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य मनीषियों और लेखकों की
कृतियों के हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन में विशेष रूप से सक्रिय है।
प्रत्येक साहित्यिक विद्या के अग्रणी लेखकों की कृतियां या संकलनों को
सुनियोजित ढंग से हिन्दी जगत् को समर्पित करने का कार्य प्रगति पर है। हाल
ही में कविता, कहानी और उपन्यास की इन श्रृंखलाओं का साहित्य जगत् में जो
स्वागत हुआ है उससे हम अभीभूत हैं। इन श्रृंखलाओं के बाद चौथी
श्रृंखला—‘भारतीय व्यंग्यकार’ का भी हम
शीघ्र ही श्रीगणेश करने वाले हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न भाषाओं के नए और
नवोदित लेखकों को उनकी भाषा परिधि के बाहर लाने में हम सक्रिय हैं।
‘भारतीय कवि’ श्रृंखला में मलयालम के शीर्षस्थ कवि प्रो. ओ.एन.वी. कुरुप की कविताओं का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है। इस पुस्तक में कुरुप की छोटी-बड़ी 25 कविताओं को समाविष्ट किया गया है। इन कविताओं को हिन्दी पाठकों को उपलब्ध कराने का श्रेय डॉ. एन.वी.कुट्टन पिल्लै को है; उनके अनुवाद के लिए हम अत्यंत आभारी हैं। पुस्तक की प्रस्तुति में श्री जितेन्द्रनाथ ने बड़ी लगन से हमारी सहायता की; उनका मलयालम और हिंदी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार इस पुस्तक को रूप देने में हमारे बहुत काम का सिद्ध हुआ। उनका आभारी हूँ। ज्ञानपीठ के मेरे अपने सहयोगी इन श्रृंखलाओं के प्रकाशन में अथक परिश्रम के अभ्यस्त हो गए हैं : नेमिचन्द जैन, चक्रेश जैन व सुधा पाण्डेय का मुझ पर ऋण बढ़ गया है।
इस पुस्तक की सुरुचिपूर्ण साज-सज्जा व मुद्रण के लिए एक बार फिर शकुन प्रिंटर्स के अम्बुज जैन और कलाकार पुष्पकणा मुखर्जी का आभारी हूँ।
‘भारतीय कवि’ श्रृंखला में मलयालम के शीर्षस्थ कवि प्रो. ओ.एन.वी. कुरुप की कविताओं का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है। इस पुस्तक में कुरुप की छोटी-बड़ी 25 कविताओं को समाविष्ट किया गया है। इन कविताओं को हिन्दी पाठकों को उपलब्ध कराने का श्रेय डॉ. एन.वी.कुट्टन पिल्लै को है; उनके अनुवाद के लिए हम अत्यंत आभारी हैं। पुस्तक की प्रस्तुति में श्री जितेन्द्रनाथ ने बड़ी लगन से हमारी सहायता की; उनका मलयालम और हिंदी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार इस पुस्तक को रूप देने में हमारे बहुत काम का सिद्ध हुआ। उनका आभारी हूँ। ज्ञानपीठ के मेरे अपने सहयोगी इन श्रृंखलाओं के प्रकाशन में अथक परिश्रम के अभ्यस्त हो गए हैं : नेमिचन्द जैन, चक्रेश जैन व सुधा पाण्डेय का मुझ पर ऋण बढ़ गया है।
इस पुस्तक की सुरुचिपूर्ण साज-सज्जा व मुद्रण के लिए एक बार फिर शकुन प्रिंटर्स के अम्बुज जैन और कलाकार पुष्पकणा मुखर्जी का आभारी हूँ।
बिशन टंडन
निदेशक
24 दिसम्बर, 1990
निदेशक
24 दिसम्बर, 1990
दो शब्द
प्रख्यात सिने गीतकार, प्रगतिशील कवि एवं सफल अध्यापक के रूप में प्रोफेसर
ओ.एन.वी. कुरुप का केरल में महत्वपूर्ण स्थान है। चूँकि उनकी
साहित्य-साधना मातृ-भाषा मलयालम में रही, इसलिए वे भारतीय स्तर पर उतने
जाने-पहचाने नहीं गये जितने कि केरल में। केरलीय जनका के जिह्वाग्र पर
उनकी कविता-कामिनी सदा नाचती-थिरकती रहती है।
ओ.एन.वी. कुरुप के काव्य-साहित्य का अपेक्षित मात्रा में अनुवाद कार्य अभी हिन्दी में नहीं हो सका। बात यह है कि उनकी कविता जितनी भाव-सान्द्र अनुभूतियों से बोझिल है, उतनी ही वह अपने पद-लालित्य, संगीतात्मकता एवं गेयता से भी भरपूर है कि उसका सफल भाषान्तरण बड़ा दुष्कर कार्य है। अतः बहुत कम अनुवादकों का ध्यान इस ओर केन्द्रित हुआ।
प्रस्तुत संग्रह में ओ.एन.वी. की छोटी-बड़ी पच्चीस कविताओं का अनुवाद समाविष्ट है। किसी भी कविता का अनुवाद, वह भी कविता में, करके विजय पाना सहज सरल कार्य नहीं। प्रकृत्या कवि न होने के कारण काव्यानुवाद में मेरी कठिनाई और भी बढ़ जाती है। अपनी सीमा से पूर्णतया अवगत होने के कारण मैंने अपने अनुवाद में कवि के भावों की यथासंभव रक्षा करने की ओर विशेष ध्यान दिया है, फलतः उनके काव्य में अनायास प्राप्त प्रसाद गुण, पद-मैत्री एवं स्वर-मैत्री यहाँ सर्वथा उपेक्षित रह गयी।
ओ.एन.वी. की काव्य-साधना तथा उसकी मौलिक विशेषताओं का एक परिचयात्मक लेख भूमिका के रूप में जोड़ दिया गया है, जिसके सहारे केरलेतर साहित्य-जिज्ञासू पाठक उनके काव्य की एक झाँकी प्राप्त कर सकेंगे।
मलयालम के यशस्वी कवि ओ.एन.वी. कुरुप को समझने-परखने में यह अनुवाद कुछ सीमा तक अगर सहायक हुआ, तो मैं अपने विनम्र प्रयास को चरितार्थ मानूँगा।
ओ.एन.वी. कुरुप के काव्य-साहित्य का अपेक्षित मात्रा में अनुवाद कार्य अभी हिन्दी में नहीं हो सका। बात यह है कि उनकी कविता जितनी भाव-सान्द्र अनुभूतियों से बोझिल है, उतनी ही वह अपने पद-लालित्य, संगीतात्मकता एवं गेयता से भी भरपूर है कि उसका सफल भाषान्तरण बड़ा दुष्कर कार्य है। अतः बहुत कम अनुवादकों का ध्यान इस ओर केन्द्रित हुआ।
प्रस्तुत संग्रह में ओ.एन.वी. की छोटी-बड़ी पच्चीस कविताओं का अनुवाद समाविष्ट है। किसी भी कविता का अनुवाद, वह भी कविता में, करके विजय पाना सहज सरल कार्य नहीं। प्रकृत्या कवि न होने के कारण काव्यानुवाद में मेरी कठिनाई और भी बढ़ जाती है। अपनी सीमा से पूर्णतया अवगत होने के कारण मैंने अपने अनुवाद में कवि के भावों की यथासंभव रक्षा करने की ओर विशेष ध्यान दिया है, फलतः उनके काव्य में अनायास प्राप्त प्रसाद गुण, पद-मैत्री एवं स्वर-मैत्री यहाँ सर्वथा उपेक्षित रह गयी।
ओ.एन.वी. की काव्य-साधना तथा उसकी मौलिक विशेषताओं का एक परिचयात्मक लेख भूमिका के रूप में जोड़ दिया गया है, जिसके सहारे केरलेतर साहित्य-जिज्ञासू पाठक उनके काव्य की एक झाँकी प्राप्त कर सकेंगे।
मलयालम के यशस्वी कवि ओ.एन.वी. कुरुप को समझने-परखने में यह अनुवाद कुछ सीमा तक अगर सहायक हुआ, तो मैं अपने विनम्र प्रयास को चरितार्थ मानूँगा।
एन.पी.
कुट्टन पिल्लै
दर्शनं
ओरु चिप्पियिल् मुत्ता-
योरु पुष्पत्तिल् स्वर्ण्ण
त्तरियाय् सुगन्धमा,-
योरु कन्य तन् हृत्ति-
लनुरागमा, योरु
मेघत्तिनुळि्ळल् बाष्प-
कणमा, योरु वीण-
क्कम्पियिल् संगीतमाय्,
ओरु कण्णकियुटे
चिलम्पिल् नवरत्न-
च्चिरिया, यवळुटे-
यात्मविल् स्फुलिंगमांय्
योरु पुष्पत्तिल् स्वर्ण्ण
त्तरियाय् सुगन्धमा,-
योरु कन्य तन् हृत्ति-
लनुरागमा, योरु
मेघत्तिनुळि्ळल् बाष्प-
कणमा, योरु वीण-
क्कम्पियिल् संगीतमाय्,
ओरु कण्णकियुटे
चिलम्पिल् नवरत्न-
च्चिरिया, यवळुटे-
यात्मविल् स्फुलिंगमांय्
दर्शन
सीपी में मुक्ता-सा,
सुमन में स्वर्णिम
पराग-सा, सुगंध-सा,
कन्या के हृदय में-
अनुराग-सा, एक
मेघ बीच बाष्पबिन्दु-सा,
वीणा के तारों में
संगीत-सा;
एक कण्णकि1 के
नूपुर के नवरत्न
हास्य-सा, उसकी
आत्मा के स्फुलिंग-सा,
सुमन में स्वर्णिम
पराग-सा, सुगंध-सा,
कन्या के हृदय में-
अनुराग-सा, एक
मेघ बीच बाष्पबिन्दु-सा,
वीणा के तारों में
संगीत-सा;
एक कण्णकि1 के
नूपुर के नवरत्न
हास्य-सा, उसकी
आत्मा के स्फुलिंग-सा,
1. तमिल प्रदेश में पत्नी-देवी के रूप में
आराध्य एक नारी, जो वास्तव में तमिल प्रबंधम्
‘शिलप्पदिकारम्’ की नायिका है।
ओरु रात्रियिलेतो
वषियम्पलत्तिल् वी-
णुरड्डुं पथिकन्टे
स्वप्नत्तिल् प्रभातमाय्
वेटियेट्टोरु भटन्
वीण कोक्कयिल् मातृ-
हृदयत्तिल् निन्निड्ट-
वीण नोवुपोल ञेट्टि-
विरयक्कुं पूवाय्, पिन्ने,
सूरनेक्काळुं, मिन्नि—
ज्ज्वलिक्कुं तारङ्ङळे-
क्काळुमेतिनेक्काळुं,
पावमामी भूमिये—
स्नेहिच्च कवियुटे
जीव तन्तुविल् कण्णीर्—
मुत्तायुं कण्टेन् निन्ने।
वषियम्पलत्तिल् वी-
णुरड्डुं पथिकन्टे
स्वप्नत्तिल् प्रभातमाय्
वेटियेट्टोरु भटन्
वीण कोक्कयिल् मातृ-
हृदयत्तिल् निन्निड्ट-
वीण नोवुपोल ञेट्टि-
विरयक्कुं पूवाय्, पिन्ने,
सूरनेक्काळुं, मिन्नि—
ज्ज्वलिक्कुं तारङ्ङळे-
क्काळुमेतिनेक्काळुं,
पावमामी भूमिये—
स्नेहिच्च कवियुटे
जीव तन्तुविल् कण्णीर्—
मुत्तायुं कण्टेन् निन्ने।
(‘अक्षरम्’ से)
रात में किसी
सराय में पड़े
सोते पथिक के
स्वप्नमय प्रभात-सा;
गोली खा कर
भूमि पर गिरे
सैनिक पर निःसृत
मातृ-हृदय पीड़ा-सा;
थरथराते पुष्प-सा;
सूरज से, जगमगाते
तारों से या
किसी से भी अधिक—
बेचारी इस भूमि को
प्यार उँड़ेलते कवि के
जीवतंतु के अश्रुमुक्ता-सा
मैंने दर्शन किया तेरा।
सराय में पड़े
सोते पथिक के
स्वप्नमय प्रभात-सा;
गोली खा कर
भूमि पर गिरे
सैनिक पर निःसृत
मातृ-हृदय पीड़ा-सा;
थरथराते पुष्प-सा;
सूरज से, जगमगाते
तारों से या
किसी से भी अधिक—
बेचारी इस भूमि को
प्यार उँड़ेलते कवि के
जीवतंतु के अश्रुमुक्ता-सा
मैंने दर्शन किया तेरा।
कोच्चु दुःखं
कुट्टि तन् कैयिले
चोट्ड पात्रं नटु—
रोट्टिल् वी; णुळ्ळिल् नि—
न्नेल्लां निलत्तु पोय् !
विद्यालयप्पटि—
वातिलक्कल् बस्सु व—
न्नेत्तवे, तिक्कि—
त्तिरक्कियिरङ्ङवे,
अक्षर भाण्डते
भद्रमाय् पेरुमा—
प्पेट्टि तन् भारं
तळर्त्तिय कैयिल् नि
चोट्ड पात्रं नटु—
रोट्टिल् वी; णुळ्ळिल् नि—
न्नेल्लां निलत्तु पोय् !
विद्यालयप्पटि—
वातिलक्कल् बस्सु व—
न्नेत्तवे, तिक्कि—
त्तिरक्कियिरङ्ङवे,
अक्षर भाण्डते
भद्रमाय् पेरुमा—
प्पेट्टि तन् भारं
तळर्त्तिय कैयिल् नि
शिशु दुःख
शिशु के हाथ का
टिफिन बॉक्स बीच
सड़क पर गिर गया; भीतर का
भोजन नीचे बिखर गया।
विद्यालय के फाटक पर
बस के आ रुकते
समय, भीड़ चीर कर
नीचे उतरते हुए,
अक्षर भण्डार को
भद्रता से संभाले
उस पेटी के बोझ से
कुछ शिथिल हुए हाथ से
टिफिन बॉक्स बीच
सड़क पर गिर गया; भीतर का
भोजन नीचे बिखर गया।
विद्यालय के फाटक पर
बस के आ रुकते
समय, भीड़ चीर कर
नीचे उतरते हुए,
अक्षर भण्डार को
भद्रता से संभाले
उस पेटी के बोझ से
कुछ शिथिल हुए हाथ से
न्नित्तिरिप्पोन्नोरु
चोट्ड पात्रं नटु—
रोट्टिल वी, ण्ळिळल् नि—
न्नेल्लां निलत्तु पोय्।
तार मषियिट्ट
निरत्तिलुटे, यिण
वेर् पेट्डरुण्टु पों
पात्रवुं मूटियुं
पिन्नाले चेन्नटु—
त्तारो तिरिकेया—
क्कुञ्ञि क्करङ्ङळि—
लेल्पिच्चु पोकवे,
कुट्टि तन् कण्णु
निरञ्ञु पोय्। उच्चयक्कु
पट्टिणियाकुमे—
न्नोर्त्तल्ल !—तन् चोट्ड
पात्रत्तिल् निन्नूर्न्नु—
वीणतु नालञ्चु
कप्पक्कषणमा ;-
णाळुकळ् कण्टु पोय् !
चोट्ड पात्रं नटु—
रोट्टिल वी, ण्ळिळल् नि—
न्नेल्लां निलत्तु पोय्।
तार मषियिट्ट
निरत्तिलुटे, यिण
वेर् पेट्डरुण्टु पों
पात्रवुं मूटियुं
पिन्नाले चेन्नटु—
त्तारो तिरिकेया—
क्कुञ्ञि क्करङ्ङळि—
लेल्पिच्चु पोकवे,
कुट्टि तन् कण्णु
निरञ्ञु पोय्। उच्चयक्कु
पट्टिणियाकुमे—
न्नोर्त्तल्ल !—तन् चोट्ड
पात्रत्तिल् निन्नूर्न्नु—
वीणतु नालञ्चु
कप्पक्कषणमा ;-
णाळुकळ् कण्टु पोय् !
(‘अक्षरम्’ से)
वह छोटा-सा टिफिन
बॉक्स बीच
सड़क पर गिर गया, भीतर का
भोजन नीचे बिखर गया।
तार मषि से आच्छादित
सड़क पर से मित्रता
तोड़ लोटते
बर्तन औ’’ ढकन
पीछे से आ पहुँच
किसी के उन्हें उठा
शिशु करों में रख
कर राह चलते समय
शिशु के नयन
भर उठे ! दोपहर भूख
सताने की बात से नहीं।
बरतन से टपक पड़े
जो बिखरे तीन चार
कप्पा के टुकड़े थे;
जिन्हें पथिकों ने
देख तो लिया है।
बॉक्स बीच
सड़क पर गिर गया, भीतर का
भोजन नीचे बिखर गया।
तार मषि से आच्छादित
सड़क पर से मित्रता
तोड़ लोटते
बर्तन औ’’ ढकन
पीछे से आ पहुँच
किसी के उन्हें उठा
शिशु करों में रख
कर राह चलते समय
शिशु के नयन
भर उठे ! दोपहर भूख
सताने की बात से नहीं।
बरतन से टपक पड़े
जो बिखरे तीन चार
कप्पा के टुकड़े थे;
जिन्हें पथिकों ने
देख तो लिया है।
टपियोका जो निर्धनों का भोजन है।
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