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सूर्य नमस्कार

राजीव रस्तोगी

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5498
आईएसबीएन :81-7325-653-0

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प्रस्तुत पुस्तक में सूर्य नमस्कार के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है

Surya Namaskar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सूर्य नमस्कार चमत्कारक प्रभावों से युक्त एक दैवी उपहार है। सूर्य संपूर्ण दुनिया के लिए ऊर्जा का एक सार्वभौमिक और अक्षय स्रोत है, इसलिए सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से एक ओर जहाँ शरीर के विभिन्न अंगों की गतिशीलता में वृद्धि होती है, वहीं दूसरी ओर हमारे पूरे शरीर को एक नई उर्जा मिलती है। योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के महत्त्व को दुनिया भर में स्वीकार किया जा चुका है। शरीर को स्वस्थ रखने और विभिन्न प्रकार के विकारों अथवा बीमारियों से बचने के लिए हजारों लोग इसका अभ्यास अपनी दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं। इसमें किये जाने वाले विभिन्न अभ्यास इतने सरल हैं कि उन्हें कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से सीखकर अपना सकता है। इनके निमित अभ्यास से शरीर एवं मन को अप्रत्याशित लाभ मिलते हैं। पुस्तक में सूर्य नमस्कार के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। शोधकर्ताओं, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े लोगों तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से रुचिकर और उपयोगी है। विश्वास है, इसे पढ़कर पाठकगण सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास कर पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर सकेंगे।

य आत्मदा बलदा यस्य विश्व
उपासते प्रशिषं यस्य देवाः।
यस्यच्छायाऽमृतं यस्य मृत्युः
कस्मै देवाय हविषा विधेम।।


—जो संपूर्ण विश्व के लिए प्राण, जीवन और बल का प्रदाता है, जिसकी उपासना (स्वयं) देव भी करते हैं, जिसकी छाया अमृत है (ऐसे आराध्य को छोड़कर), हम हवि से किस अन्य देव की उपासना करें।

हरिण्यगर्भ, सूक्त संख्या 2 (ऋगवेद, 10,121)

उद्यन्सूर्यो नुदतां मृत्युपाशान्।
—उदित होता हुआ सूर्य मृत्यु का नाश करता है।

(अथर्ववेद, 17.1-30)

नोट : प्रकाशित होते समय पुस्तक में दी गई जानकारी को त्रुटिरहित रखने का हरसंभव प्रयास किया गया है, फिर भी कोई कमी होने पर लेखक एवं प्रकाशक इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। पाठकों को सलाह दी जाती है कि पुस्तक में दिए गए अभ्यासों का अनुपालन अपने चिकित्सक की सलाह एवं मार्गदर्शन में करें।

प्राक्कथन


सूर्य नमस्कार चमत्कारिक प्रभावों से युक्त एक दैवीय उपहार है। सूर्य संपूर्ण दुनिया के लिए उर्जा का एक सार्वभौमिक और अक्षय स्रोत है, इसलिए सूर्य नमस्कार नियमित अभ्यास से एक ओर जहाँ शरीर के विभिन्न अंगों की गतिशीलता में वृद्ध होती है, वहीं दूसरी ओर हमारे पूरे शरीर को एक नई ऊर्चा मिलती है।
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के महत्त्व को दुनिया भर में स्वीकार किया जा चुका है शरीर को स्वस्थ रखने और विभिन्न प्रकार के विकारों अथवा बीमारियों से बचने के लिए हजारों लोग इसका अभ्यास अपनी दिनचर्या के एक हिस्से के रूप में कर रहे हैं। इसमें किए जानेवाले विभिन्न अभ्यास इतने सरल हैं कि उन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से सीखकर अपना सकता है। इनके नियमित अभ्यास से शरीर को अप्रत्याशित लाभ मिलते हैं।

सूर्य नमस्कार के प्रति यद्यपि मैं बचपन से ही अत्यधिक आकर्षित रहा हूँ लेकिन शुरू में इसका अभ्यास न नियमित रूप से नहीं करता था। योग और प्राकृतिक चिकित्सा के संपर्क में रहने के दौरान मुझे सूर्य नमस्कार के चमत्कारिक लाभों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। उसी समय से मेरे मन के किसी कोने में सूर्य नमस्कार, जिसमें वास्तव में व्यक्तिगत स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण रहस्य छिपा हुआ है, के लाभों पर एक पुस्तक लिखने का विचार पनपने लगा था। किंतु कुछ अपरिहार्य कारणों से अब तक मूर्त रूप नहीं दे सका था।

बाद में, एक शोध संस्थान में कार्य करने के दौरान मैंने अनुभव किया कि सूर्य नमस्कार पर लिखी जाने वाली पुस्तक शोध पर आधारित होनी चाहिए, साथ ही यह पुस्तक सरल और सुबोध भी होनी चाहिए, ताकि हर स्तर के पाठकों को पुस्तक का लाभ मिल सके। अपने अनुभव के आधार पर ही मैंने पुस्तक में सूर्य नमस्कार के सभी पहलुओं को शामिल करने और उसे शोधकर्ताओं तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से रुचिकर और उपयोगी बनाने का प्रयास किया है।
अंततः अपने अनुज डॉ. संजीव रस्तोगी, जो एक अनुभवी आयुर्वैदिक चिकित्सक हैं तथा आयुर्वैदिक चिकित्सा में अपने नए विचारों और इस विषय पर पुस्तक लेखन के लिए जाने जाते हैं, के साथ विचार-विमर्श और चितन-विश्लेषण के बाद पुस्तक की पांडुलिपि तैयार की गई, जो पुस्तक के रूप में आपके हाथों में है।

यद्यपि पुस्तक को प्रामाणिक, सर्वोपयोगी तथा सुग्राह्य बनाने के लिए हमने अपने स्तर पर पूरा प्रयास किया है, तथापि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पुस्तक का वास्तविक मूल्यांकन करने वाले तो पाठक ही होते हैं। आशा है, प्रस्तुत पुस्तक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी और इससे पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए आम जन में सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने के प्रति रुचि जाग्रत होगी।

लेखकद्वय

परिचय


भौतिक विश्व में सर्वाधिक सशक्त और चिन्ताकर्षक विषय के रूप में सूर्य स्वाभाविक रूप से लगातार लोगों का ध्यान आकर्षित करता रहा है। इतना ही नहीं, वैदिक काल से लेकर अब तक कई मानव जातियाँ अपने आराध्य देव के रूप में सूर्य की पूजा भी करती आ रही हैं। पारसी, यूनानी और रोम की सभ्यताओं तथा वैदिक आर्यों में सूर्य की पूजा प्रमुख रूप से प्रचलित थी। सभ्यताएँ अपने समय की सर्वाधिक विकसित सभ्यताएँ थीं तथा इन सभ्यताओं के लोगों ने सूर्य की उपासना से संबंधित कई परंपराएँ एवं रीति-रिवाज विकसित किए थे, जो वास्तव में भौतिक जीवन को बनाए रखने में सूर्य द्वारा प्रदान किए जानेवाले उपहारों के लिए उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के उद्देश्य से तैयार किए गए थे। वैस सूर्य की उपासना से जुड़े विभिन्न संस्कारों के दौरान लोगों को कई अप्रत्यक्ष लाभ देखने को मिले। संभवतः इसी कारण सूर्य की उपासना को विभिन्न धार्मिक विचारों तथा संस्कारों से जोड़ दिया गया, ताकि लोग किसी-न-किसी रूप में सूर्य की पूजा करके प्रकृति के अमूल्य उपहार का लाभ उठा सकें। सूर्य को सर्वोत्तम प्रदाता और संपोषण माने जाने से संबंधित बहुत सी दंतकथाएँ प्रचलित हैं, साथ ही इतिहास में किस प्रकार विश्वासों से जुड़े कई स्मारकों अथवा मंदिरों का उल्लेख है। कोणार्क और मोधेरा का सूर्य मंदिर तथा चीन के बीजिंग शहर में स्थित ‘री थान (Ri Tan)’—री=सूर्य, थान—मंदिर—इसके कुछ प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।

कोणार्क का सूर्य मंदिर उड़ीसा के तटीय क्षेत्र में स्थित है, जिसके ऊपर से बंगाल की खाड़ी दिखाई देती है। शताब्दियों तक इसकी ऊँची इमारत का उपयोग तट की ओर आनेवाले नाविकों द्वारा किया जाता रहा। ‘व्हाइट पैगोडा’ अर्थात् प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर से इसे अलग करने के लिए वे उसको ‘ब्लैक पैगोडा’ कहा करते थे। यहाँ सूर्य मंदिर का निर्माण कराए जाने के पीछे क्या कारण रहा होगा, अब तक किसी को इसकी वास्तविक जानकारी नहीं हो सकी है; हाँ, इसके प्रकट होने के संबंध में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। सबसे लोकप्रिय किंवदंती सांब (भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र) से संबंधित है। सांब को अपनी सुंदरती पर बहुत गर्व था—इतना कि एक बार तो उसने महर्षि नारद की भी हँसी उड़ाने की चेष्टा कर दी थी। नारदजी कहाँ चुप रहने वाले थे। उन्होंने उस घमंडी बालक (सांब) को सीधा करने की ठान ली। वह सांब को किसी तरह एक तालाब के पास ले गए, जिसमें उसकी सौतेली माताएँ अर्थात् श्रीकृष्ण की रानियाँ बड़े आनंद के साथ जल-विहार कर रही थीं। जब श्रीकृष्ण को पता चला कि सांब अपनी सौतेली माताओं को नहाते हुए देख रहा था तो उन्हें बहुत क्रोध आया और क्रोध में ही उन्हेंने सांब को कोढ़ी हो जाने का शाप दे दिया।

बाद में उन्हें पता चला कि सांब को नारद ने चालाकी से ऐसा करने के लिए उकसाया था तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। किंतु वह अपना शाप वापस नहीं ले सकते थे, इसलिए उन्होंने सांब से कहा कि वह सूर्य की पूजा करे, जो सभी रोगों से मुक्ति दिलाने वाला है। बारह वर्ष की पूजा और तपस्या के बाद सूर्य देव प्रकट हुए और उन्होंने सांब को कोणार्क में समुद्र के जल में स्नान करने को कहा।




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