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बाबरी मस्जिद

हिन्छलाल हंसा

प्रकाशक : जय भारतीय प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5525
आईएसबीएन :81-85957-08-8

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यह पुस्तक बाबरी मस्जिद पर आधारित है.....

Babari Masjid

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बाबरी मस्जिद बाबर के जमाने में बनी जबकि भारतवर्ष में कई राज्य थे जो अक्सर आपस में लड़ते रहते थे जिसका लाभ उठाकर बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था और अपने विजयोल्लास के उपलक्ष्य में बाबरी मस्जिद बनवाया था।
बाबरी मस्जिद मन्दिर तोड़कर बनी अथवा बिना तोड़े बनी, कोई ठोस प्रमाण नहीं है। कुछ विज्ञानी बाबरी मस्जिद के नीचे स्तूप का रहना बताते हैं जो बौद्ध धर्म का प्रतीक है। बौद्ध धर्मी अपना दावा नहीं ठोक पाये मगर हिन्दू धर्मी अपना दावा ठोक दिया कि बाबरी मस्जिद में ही राम ने जन्म लिया था।

विवाद का आधार रामायण अथवा रामचरितमानस हुआ क्योंकि वाल्मीक एवं तुलसीदास ने कथा के माध्यम से यह बतला दिया कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म अयोध्या में हुआ था मगर इन कवियों ने एक निश्चय स्थान नहीं बता पाये थे मगर यही अनुमान स्वरूप राम की जन्मस्थली बाबरी मस्जिद के बीच निकल आयी।
अस्तु बाबरी मस्जिद बनाम रामजन्म भूमि के बारे में इस उपन्यास में बताया गया है जिसे पढ़ पाठक स्वयं न्यायिक कदम उठा सकते हैं।

दो शब्द


बाबरी मस्जिद सोलहवीं शताब्दी की एक मस्जिद थी जो आधुनिक फैजाबाद जिले के अयोध्या नगर में स्थित थी जहाँ सरयू नदी बहती है। अब बाबरी मस्जिद रामभक्तों द्वारा तोड़ दी गयी है जो विश्व स्तरीय विवाद बन गया है जिसके चलते भारत में हड़कम्प मचा है। हिन्दू-मुस्लिम राइट हो जाना आम बात है जबकि मस्जिद में भी ईश्वर रहता और मन्दिर में भी। इसी लपेट में ईसाई धर्म एवं हिन्दू धर्म में कटुता है जिससे हिन्दू ज्ञानी कई चर्चों को नष्ट कर डाला और न जाने कितने पादरियों को मार डाला। हिन्दू कहता है कि बाबरी मस्जिद पहले राम मन्दिर था और मुसलमानों का कहना है कि बाबरी मस्जिद को सम्राट बाबर ने बनवाया था। पहले यहाँ कोई मन्दिर नहीं था अतः बाबरी मस्जिद एक पाक मस्जिद थी जिसे अन्याय वश हिन्दुओं ने तोड़ डाली है। बस यही झगड़ा बढ़ते-बढ़ते आतंक में बदल गया है। कुछ व्यक्ति भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं और कुछ व्यक्ति इसे धर्म निरपेक्ष राष्ट्र रखना चाहते हैं जिसमें कि सभी धर्म अथवा सम्प्रदाय फल फूल सकें।

रामभक्त अयोध्या को राम जन्म स्थली बताया करते हैं और कहा करते हैं कि बस जहाँ बाबरी मस्जिद बनी थी वहीं राम ने जन्म लिया था। ये किस आधार पर कहते हैं राम जानें। सच्चाई चाहे जो हो मगर यही छोटी सी बात लेकर सरकारें बदल गयीं तो माना जा सकता है कि यह बहुत बड़ा झगड़ा है। इसी के चलते मन्दिर, मस्जिद व गिरजाघर टूट व बन रहे हैं। खुदा भक्त व राम भक्त आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं जिसका निदान न तो हाईकोर्ट कर पा रहा है और न ही सुप्रीम कोर्ट। विभिन्न पत्र-पत्रिकायें झगड़ा तो बताया करती हैं मगर समस्या निदान करने की कोशिश नहीं करतीं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए लेखक ने समस्या सुलझाने की कोशिश की है और जहां तक सम्भव हो सका है सच्चाई बतायी गई है जिस पर भारतवासी विचार कर सकते हैं और आग से बच सकते हैं।

[१]


१६ मार्च १९२७ को राणा सांगा के दरबार में गुप्तचर आँफीसर विमला खड़ी होकर महाराज राणा सांगा से कुछ कहना चाहती है जिसे सुनने को सभी दरबारी व्यग्र हैं। विमला पीले सलवार के ऊपर पीला घाघरा पहने है तथा चूड़ीदार समीज जो हाथ के कलाई तक पकड़े है, को पीले ही रंग में पहने ऐसी लग रही है मानो बसन्त ऋतु स्वयं मानव रूप में प्रकट हो गयी है। पाँव में पायल, कमर में लाल चमड़े की पेटी, गले में सोने का हार, कान में स्वर्ण बाले, नाक में सोने की बड़ी नथिया व माथे की स्वर्ण बिन्दी विमला की सुन्दरता चौगुनी बढ़ा दी है। कमर में लाल चमड़े की पेटी व पाँव में लाल चमड़े के जूते यह दर्शा दे रहे थे कि यह लड़की कोई अधिकारी है। हाथ में तलवार धारण किये हुए विमला अपने चेहरे की वीरता साफ दर्शा रही थी जिसे देख सभी दरबारी सहमे हुए थे। वैसे वह बेहद खूबसूरत लड़की थी मगर यह श्रृंगाररस का समय नहीं था बल्कि वीररस का समय था क्योंकि राणा सांगा के राज्य मेवाड़ पर आक्रमण होने वाला था। इस संकट की घड़ी में विमला के विकसित, कसे व गदराये वक्षस्थलों पर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहा था।
आने का कारण बता सकती हो ? राणा सांगा ने पूछा।
हाँ, काबुल का मुगल सम्राट जहीररुद्दीन बाबर मेवाड़ राज्य पर आक्रमण करने वाला है। गुप्तचर विमला ने कहा।
क्यों ? राणा सांगा ने पूछा।

क्योंकि आपने विश्वासघात किया है। विमला ने कहा।
विश्वासघात कैसा ? राणा सांगा ने पूछा।
यही कि उसके विचार से आपने काम नहीं किया। विमला ने कहा।
आखिर हम राजपूत क्षत्रीय हैं तो मुगलों से शादी-ब्याह कैसे कर सकते हैं और उनके साथ बैठकर कैसे खा-पी सकते हैं। राणा सांगा ने कहा।
बाबर किस क्षत्री से कम है कि एक वर्ष पहले दिल्ली के राजा इब्राहिम लोधी को पराजित किया जिससे दिल्ली, आगरा, दोआब व जौनपुर उसके कब्जे में चला गया है। विमला ने सत्य कहा।
फिर भी मेरी जाति से नीचे है। राणा सांगा ने कुछ सन्तोष के साथ कहा।

ऊँची-नीची बात से ही तो भारत विखण्डित हो गया है जिसके कारण ही यहाँ विभिन्न शासक हैं और विभिन्न विचारधारायें रखते हैं। यहाँ तक कि हिन्दुओं में भी ऊँचता-नीचता सता रही है जिसके कारण भारत में सुदृढ़ राज्य की स्थापना न हो सकी और बाबर मनमानी हम लोगों को हराता चला आ रहा है। विमला पछताते हुए कहा।
बाबर मेरे पीछे क्यों पड़ा है ? राणा सांगा ने पूछा।
इसलिए कि मेवाड़ राज्य भारतवर्ष भर में सशक्त राज्य है जिसे पराजित करना ही उसकी सच्ची विजय हो सकती है। विमला ने कहा।
उसको मालूम होना चाहिए कि राणा सांगा का नाम सुनकर बड़े-बड़े वीर मूर्छित हो जाते हैं क्योंकि मेरी एक भुजा व एक आँख गायब है जिसे देख दुश्मन मुझे शैतान समझते हैं अतः वे बिना लड़े ही मैदान से भाग जाते हैं। राणा सांगा म्यान से तलवार निकालते हुए कहा।
इसका मतलब आप मुगल शब्द का रहस्य नहीं जानते। उसके शरीर में भी दो राजवंशों का खून बह रहा है यानी माँ चंगेज खाँ खानदान की थीं और पिता तुर्क थे। मंगोल व तुर्क मिश्रित खून को कम वीर समझना अज्ञानता है।
विमला ने समझाते हुए कहा तभी सेनापति सलादी व सेनापति हसन खाँ आ पहुँचे।
सम्राट बाबर की सेना खानवा नामक स्थान तक आ गयी है। सेनापति सलादी हड़बड़ाते हुए कहा और माथे का पसीना पोंछने लगा।
क्या कहा ! खानवा तक ! सम्राट बाबर ! राणा सांगा हतप्रभ सा होकर पूछा।
महाराज ! उसकी सेना में तोपखाना व बन्दूक भी है। हसन खाँ डर से आँख फैलाते हुए कहा।
तोपखाना व बन्दूक ! बाप रे ! मेरी सेना में तो ये चीजें नहीं है। राणा सांगा पसीने से तर होते हुए कहा।
डरने की बात नहीं है। मैं बाबर के तोपचियों की सच्ची जानकारी कर लूँगी। संख्या में कितने हैं, कहाँ-कहाँ तैनात हैं आदि बातों की जानकारी से मेरे सैनिक उनके कारनामों को निष्फल कर देंगे। विमला बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा।
मगर मुगल तोपचियों की रक्षा मुगल बन्दूकधारी करेंगे जिससे मेरे सिपाही उन तक पहुँच ही नहीं पायेंगे। सेनापति सलादी ने कहा।
तो कैसे सामना किया जाए ? राणा सांगा ने पूछा।

क्या बताऊँ। मेरे तो हाथ पैर काँपे जा रहे है। हसन खाँ ने कहा तो सभी दरबारी खिलखिला कर हँस पड़े क्योंकि वह विदूषक की भाँति झूठे-मूठे पैर हिलाते कहा था जबकि सभी को मालूम था कि हसन खाँ भारत की मानी-जानी हस्ती थे।
तोपचियों का सामना हमारे तीरन्दाज करेंगे क्योंकि बन्दूकधारी इनके सामने टिक न पायेंगे, जब से वे बन्दूक में गोली भरेंगे तब भर में मेवाडी तीरन्दाज दो बाण छोड़ चुकेंगे। यानी हमारा एक तीरन्दाज उसके दो बन्दूकधारियों को मारने में सफल होगा। हसन खाँ गम्भीर होते हुए कहा।
हाँ, ऐसा तो हो सकता है। गुप्तचर ऑफीसर विमला ने कहा।
हो सकता नहीं, होगा ! राणा सांगा दृढ़ता के साथ मूँछ टेवते हुए कहा।
बाहर की सेना में सेनापति शेर खाँ भी है जिसकी तलवार बिजली के समान चलती है, जिसकी गति केवल राणा सांगा की तलवार रोक सकती है। हसन खाँ ने कहा।

ठीक है शेर खाँ का सामना मैं करूँगा। राणा सांगा ललकारते हुए कहा।
तब बाबर का सामना कौन करेगा ? विमला ने मुस्कराते हुए पूछा।
बाबर का सामना भगवान राम करेंगे। राणा सांगा दीनता के भाव कहा तो सभी दरबारी पड़पड़ा के हँस पड़े क्योंकि रणक्षेत्र में भगवान राम धनुष बाण लेकर लड़ने को आने वाले नहीं थे।
तुम सब हँस क्यों लिया ? राणा सांगा चिन्तित होते कहा।
इसलिए कि यदि भगवान राम मदद करते तो दिल्ली राज्य में रहने वाली अयोध्या आज गुलाम न रहती जहाँ कि राम जन्मभूमि थी और यहीं से दुनिया पर शासन किया था। विमला ने कहा।

हाँ, बाल्मीक रामायण में ऐसा ही कुछ लिखा है। क्या वाकई में भगवान राम राजपूतों की मदद नहीं कर रहे। राणा सांगा चिन्तित होते कहा तभी कोई हरकारा राणा को एक पत्र दिया जिसे ये पढ़ने लगे। पत्र सन्त रामदीन दूबे का था जो ज्योतिषाचार्य भी थे। पत्र में महाराज से भेंट करने की प्रार्थना की गयी थी। चूँकि संकट का समय था अतः सन्त रामदीन दूबे को आदर के साथ बुलाया गया और सभी दरबारी उन्हें सलाम व पैलगी किये तथा कोई-कोई तो इनके पाँव पर अपना माथ रखकर दण्डवत किया। राणा सांगा इन्हें भगवान समझकर इनके चरण धोकर चरणामृत का पान किया।

भगवान कैसे आना हुआ ? राणा सांगा अत्यंत श्रद्धा के साथ पूछा मगर वे शान्त रहे, कारण कनखियों से सुन्दर फौजी विमला को देख रहे थे जो कि इन्हें सलाम नहीं किया था तो विमला भी दण्डी साधु रामदीन दूबे को गौर से देखने लगी कि ये गेरुवा कपड़े पहने सेमल फूल के समान खिले थे जिनका मुखमण्डल प्रकाशमय था। दाहिने हाथ में एक दण्डी थी जो गेरुवे कपड़े से ढकी थी तथा बायें हाथ में कमण्डल के स्थान पर काला चोंगेदार बर्तन था जैसा कि अक्सर साई लोग लिए रहते हैं। इनके कपड़े बिना सिले थे और पाँव में कोई जूता वगैरह नहीं था। मूँछ व दाढ़ी भी गायब थी। देखने में सुन्दर जवान लग रहे थे।
कल बाबर का आक्रमण हो जायेगा। सन्त रामदीन दूबे पाँच मिनट ध्यान करने के बाद बोले।
मेरी विजय होगी अथवा पराजय ? राणा सांगा ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।

आपकी विजय होगी मगर महिला फौजी आपको धोखा देगी। रामदीन दूबे ने बड़ी दृढ़ता के साथ कहा जिससे अन्य दरबारी पसन्द नहीं किये और शंकित भी हो उठे।
कैसे ? सेनापति हसन खाँ ने पूछा।
मैं बाबर के सेनापतियों से मिलकर बाबर के हार की भविष्यवाणी सुना दिया है जिसे सुनकर उसकी सेना हतोत्साहित हो गयी है जिससे मेवाड़ की विजय सुनिश्चित है। सन्त रामदीन दूबे ने कहा।
उन्हें विश्वास कैसे हुआ ? राणा सांगा ने पूछा।
पहले तो विश्वास नहीं किये मगर जब मैंने बताया कि काबुल से आ रहा हूँ और मुगलों के प्रति चिन्तित भी हूँ तो वे लोग मेरी बात पर विश्वास कर लिए जिससे अब वे निराश हो चुके हैं। सन्त रामदीन दूबे ने कहा।

क्या बाबर भी निराश हो चुका है। राणा सांगा अत्यन्त नम्रता के साथ पूछा।
नहीं, वह तो खुदा पर विश्वास रखता है किसी भविष्य वक्ता पर नहीं। सन्त रामदीन दूबे ने कहा।
तब तो आक्रमण रुकने वाला नहीं। राणा सांगा चिन्तित होते कहा।
जब उसकी सारी सेना डरी है तो बाबर अकेले क्या कर सकता है। सन्त रामदीन ने कहा।
तो भगवन आप कहाँ रहते हैं ? हसन खाँ ने पूछा।

सरयू नदी के किनारे अयोध्या में। दण्डी साधु रामदीन दूबे गर्व के साथ बताया।
तो आप दुश्मन को झूठ बताकर कि काबुल का निवासी हूँ, छल किया है जबकि यह दण्डी साधु का काम नहीं। गुप्तचर विमला नाराजगी के साथ बोली।
मैं सच बोला था कि काबुल से आ रहा हूँ। सन्त रामदीन ने कहा।
क्या आप काबुल गये थे ? सलादी ने पूछा।

काबुल नहीं गया था बल्कि अयोध्या में ही था। चूँकि काबुल नरेश बाबर का साम्राज्य तक है सो मेवाड़ आते यह कह दिया कि काबुल से आ रहा हूँ। सन्त रामदीन कुछ शर्माते हुए कहा।
फिर भी झूठ बोल गये। आपको कहना चाहिए था कि काबुल साम्राज्य से आ रहा हूँ। विमला ने छिड़क लगाते कहा।
मेरे हिसाब से काबुल साम्राज्य में कोई फर्क नहीं है। सन्त रामदीन दूबे ने कहा तो न चाहते हुए भी सब चुप रहे और कुछ स्वर्ण मुद्रा दान में पाते अपने को ज्ञानी समझा और जंगल की ओर चलते बने।

दिन के बारह बज उठे तो सभी दरबारी खाना खाने लगे लेकिन गुप्तचर विमला संकेतों से कुछ कहती हुई घोड़े पर चढ़कर खानवा की तरफ जा निकली जहाँ बसन्त ऋतु अपनी चरम सीमा पर थी। आम की अमराई, सेमल के लाल-लाल फूल, टेसू पुष्पों से आच्छादित अन्य जंगली व मैदानी पेड़ों में कपोलें निकलती हुई पूरे वातावरण को मनमोहक बना रखा था जिसके बीच गुप्तचर विमला बकरी चराने का काम कर रही थी और पतले बैंगनी ड्रेस पहने थी जिससे गौर वर्ण व गौर वक्षस्थल साफ झलक रहे थे जिसे देख कर हर कोई रसिक मोहित हो सकता था।
ओ लड़की ! मुगल सेना आ रही है। यहाँ से भाग जाओ अन्यथा...। सलादी ने कहा।
अरे सेनापति सलादी ! तू यहाँ कैसे ? विमला आश्चर्यचकित होते पूछा।

मैं आपके बिना नहीं रह सकता। आपसे प्रेम करता हूँ। जो भी गलती बोल गया उसे माफ करना। हाय ! विमला ! सेनापति सलादी आकर्षित होते कहा।
दुश्मन सर पर आ गया है और तुझे प्यार-मुहब्बत सूझ रही है। विमला झिड़कते हुए बोली।
बाबर से लड़ना व्यर्थ है। सेनापति सलादी ने कहा।
यदि तू लड़ नहीं सकता तो मुझे अपना काम करने दो बस आपकी सारी गलती माफ है। विमला समझाते हुए कहा तो सलादी दरबार चले आये और कुछ क्षण पश्चात् कोई सैनिक आता दिखा जिससे विमला बकरियों को हाँकने लगी।
ये छोरी ! चित्तौड़ यहाँ से कितनी दूर है। शेर खाँ ने पूछा।
हुजूर मैं नहीं बता सकती क्योंकि गांवों में रहने वाली गरीब अनपढ़ लड़की हूँ। विमला हाथ जोड़ते कहा।
राणा सांगा को जानती हो।? शेर खाँ ने पूछा।

हाँ, कभी-कभार मेरे पिता चर्चा करते हैं कि वे बहुत वीर हैं। उनकी गज भर की तलवार अष्टधातु की बनी है जिसके एक वार से ही युद्ध में घोड़ व घुड़सवार दोनों कट जाते हैं। विमला ने कहा।
निजाम खाँ। क्या राणा सांगा ऐसा वीर है ? शेर खाँ निजाम खाँ से पूछा।
हाँ, है तो मगर आप भी तो शेर खाँ हो और बाबर शेर खाँ का बाप ! निजाम खाँ ने कहा और चलते बने तथा विमला विशाल सेना आती देख बकरियाँ गड़ेरिया को सौंप राणा सांगा के दरबार में द्रुतगति से आ गयी।
क्या खबर लायी हो विमला। राणा सांगा ने पूछा।
महाराज जल्दी कीजिए बाबर राजधानी को जल्द घेरने वाला है। उसकी पूरी की पूरी सेना खानवा तक पहुँच चुकी है और मोर्चेबन्दी कर रही है। विमला ने हकलाते हुए कहा जिससे राणा सांगा व सारी सेना रात भर सो न सकी क्योंकि ये सब खानवा को रवाना होने वाले थे।

17 मार्च 1527 की सुबह से लड़ाई जारी हो गयी। राणा सांगा के पास हिन्दू व मुस्लिम की सम्मिलित सेना थी और बाबर के पास मुगल सेना के अलावा अन्य जीते हुए राज्यों की सेनायें थीं। वैसे मुगल अश्वारोही मात्र 150 ही थे। सेनाशक्ति के मामले में दोनों बराबर थे तथा सैन्य संचालन भी एक दूसरे से कोई कम नहीं था मगर तोप व बन्दूक की मार भयावह थी जिससे न जाने कितने घोड़े, हाथी, घुड़सवार, सिपाही बारूद से चिथड़े हो चुके थे जिससे सेना भाग खड़ी हुई तो मेवाड़ी सेनापति व मनसबदार गुस्सा कर भागती अपनी सेना को सजा देने हेतु मारने काटने लगे जिससे अव्यवस्था फैल गयी। इन्हीं भागने वाले सेना में सेनापति सलादी भी थे जो अब बाबर की तरफ से युद्ध करने लगे जिससे सम्राट बाबर हारते हारते जीत गये। मेवाड़ी सेना खत्म हो जाने की दशा में राणा सांगा भी अपने प्राण बचा जंगे मैदान से भाग पड़े और सन्त रामदीन दूबे के पास पहुँचे जिन्होंने भविष्यवाणी कर रखी थी कि बाबर हार जायेगा। सन्त रामदीन दूबे किसी मन्दिर पर रुके थे जो राजधानी के करीब था।

सम्राट राणा जी जल्द से जल्द यहाँ से दूर भाग चलें अन्यथा हम लोगों को मुस्लिम धर्म कबूलना पड़ेगा। दण्डी सन्त रामदीन दूबे थर-थर काँपते हुए कहा।
तो यह बताइये आगे क्या होगा ? राणा सांगा ने पूछा।

आगे यही होगा कि भगवान राम की पूजा दिल से करनी पड़ेगी। सन्त रामदीन ने कहा तभी विमला हाँफते हुए आ पहुँची।
क्या बात है विमला ? राणा सांगा ने पूछा।
शेर खाँ यहाँ से मात्र 6 किलोमीटर दूर है जो आपको जिन्दा गिरफ्तार करने के लिए इधर ही आ रहा है। विमला ने कहा तभी हसन खाँ आ गये।
क्यों हसन ! सलादी कहाँ गया ? राणा साँगा ने पूछा।

वह बाबर से मिल गया है जो आपको पकड़वाने के लिए इधर ही आ रहा है। हसन खाँ ने कहा तो राणा सांगा अत्यन्त घबड़ा गये और झटपट बिहार एवं बंगाल की ओर भाग पड़े तथा भागते-भागते आधुनिक जिला फैजाबाद तक आ गये तभी बाबर के वजीर मीरबाकी सैन्य दल के साथ इनसे मिल गये।
रुको ! तुम कौन हो ? मीरबाकी ने पूछा।
हम लोग तीर्थस्थान अयोध्या जा रहे हैं क्योंकि भगवान राम का दर्शन करना है। सन्त रामदीन दूबे घोड़े से उतरते हुए बोले।
भगवान तथा ईश्वर तो एक है जिसे हम लोग खुदा कहते हैं तो भगवान राम कैसे। मीरबाकी धार्मिक विश्लेषण करते हुए कहा।

हाँ, ईश्वर तो एक है मगर यह कुछ व्यक्तियों को अपनी शक्ति देता है जिसे आम भाषा में अवतारी कहा जाता है। बस, राम भी अवतारी थे जैसे मुहम्मद साहब थे। सन्त रामदीन ने कहा।
आप लोगों को अवतारी छोड़ खुदा का पूजा करनी चाहिए क्योंकि बुत पूजने वालों से सम्राट अत्यन्त नाराज होते हैं। मीरबाकी ने सुझाया।
हम लोग भगवान राम की पूजा छोड़ नहीं सकते चाहे प्राण चला जाए। सन्त रामदीन दूबे ने कहा।
तो जजिया कर देना पड़ेगा जैसा कि बुत पूजने वाले मठाधीश दिया करते हैं। मीरबाकी ने कहा।
चुंगी व जजिया कर देंगे और हम लोगों का नाम नोट कर लो। विमला हाथ जोड़ते कहा।

अब ये लोग अपना नाम क्रमशः रामदीन, विमला व राणा सांगा लिखा दिये और पता के तौर पर अयोध्या बता दिया और सरयू किनारे आ कुटी में भेष बदलकर डेरा जमा दिया। विमला व राणा सांगा दण्डी साधु बन गये और रामदीन दूबे तो पहले से ही दण्डी साधु थे ही। एक घण्टे के बाद सलादी व शेर खाँ वजीर मीरबाकी के सामने आते दिखे जो घोड़ दौड़ाते-दौड़ाते हैरान थे।
क्यों शेर खाँ कहाँ जा रहे हो ? मीरबाकी ने पूछा।
क्या इधर कोई घुड़सवार जाते दिखायी दिये ? शेर खाँ ने पूछा।
हां,सन्त रामदीन, विमला व संग्राम सिंह गये हैं। मीरबाकी ने बताया।

यानी राणा सांगा न जाने किधर गया ! शेर खाँ निराश होते कहा तो सलादी जोर का ठहाका लगाया।
हँसने का कारण ? शेर खाँ ने पूछा।
संग्राम सिंह ही राणा सांगा है। राणा सांगा का विश्वासघाती सेनापति सलादी ने बताया।
कहाँ तक गया होगा ? शेर खाँ ने पूछा।
हिन्दू तीर्थस्थान अयोध्या गया होगा। मीरबाकी ने बताया।

अब क्या था ! सलादी की मदद से शेर खाँ राणा सांगा, विमला व ज्योतिषी रामदीन दूबे के कुटी के पास पहुँच गये जहाँ तीनों व्यक्ति खाना बनाने में जुटे थे कारण दो दिन से खाना नहीं खाये थे।
राणा सांगा मरने के लिए तैयार हो जाओ। शेर खाँ दहाड़ते हुए कहा।
भूखे को मारना कोई धर्म नहीं है। विमला हाथ जोड़ते कहा।
यानी तुम सबने भूखों को नहीं मारा है ? सलादी ने पूछा।

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