विविध धर्म गुरु >> शिरडी के साईं बाबा एक अनोखे फकीर शिरडी के साईं बाबा एक अनोखे फकीरवृंदा कुमार
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एक अनोखे फकीर की कहानी.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
श्रद्धेय गुरुजी के आशीर्वचन
सन् 1858 से 1918 तक शिरडी के हजारों परिवारों ने शिरडी के साईं बाबा की
गूढ़ तथा दिव्य लीलाएँ देखीं। उन्हें लोग महानतम संत मानते थे। आज विश्व
भर में उनके उपदेशों को मनानेवाले और उनके दिखाए मार्ग पर चलनेवाले लोग
बड़ी संख्या में हैं। प्रत्येक दिन शिरडी में करीब पैंतीस हजार श्रद्धालु
बाबा की समाधि पर सिर नवाते हैं। इसी से, आज के संदर्भ में, उस फकीर के
दिखाए मार्ग की प्रासंगिकता को समझा जा सकता है।
इसके अलावा भी, श्री साईं महाराज के नाम से अनगिनत जगहों पर संस्थाओं, मंदिरों और दूसरी मानवीय गतिविधियों का जो फैलाव हुआ है, उसकी गिनती करना मुश्किल है। बाबा ने एक बार कहा था, ‘‘मैं मीलों दूर से अपने भक्तों को उसी तरह खींच लाता हूँ जैसे पंजों पर बँधी सुतली से किसी पक्षी को खींच लिया जाता है।’’ अब तो बड़ी संख्या में लोग कभी अकेले तो कभी समूहों में, अपनी शांति, खुशहाली और आत्मोत्थान के लिए लगातार शिरडी जाते रहते हैं। ये सभी लोग बाबा के बारे में ज्यादा-से ज्यादा जानना चाहते हैं और इनमें से तो कुछ ऐसे हैं, जो प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं; क्योंकि उन्होंने अपना जीवन बाबा को समर्पित कर दिया है।
बाबा की अनन्य भक्त श्रीमती वृंदा कुमार बाबा के नाम और उपदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए निस्स्वार्थ भाव से काम करती रही हैं। उन्होंने सिडनी में शिरडी साईं का मन्दिर बनाने में बहुत बड़ा योगदान किया। मॉरीशस में भी वह निरन्तर बाबा को लोगों के दिलों के करीब लाने में लगी रहीं। उनकी इस निष्ठा को देखते हुए, बच्चों के लिए ‘शिरडी के साईं बाबा : एक अनोखे फकीर’ पुस्तक लिखने की उनकी इच्छा पावन कार्य तो है ही, साथ ही सही समय पर किया गया कार्य भी है। बाबा बच्चों को बहुत प्यार करते थे और उनकी देख-रेख किया करते थे; क्योंकि उन्हें बच्चों से आत्मा की पवित्रता नजर आती थी।
राष्ट्रीयता, धर्म, फिरकों, दुनिया की ऊँच-नीच और जाति के नाम पर मानव समाज द्वारा बनाए भेदभाव को बाबा नहीं मानते थे। वह हमेशा प्रेम और भाईचारे का उपदेश देते थे और वैसा ही व्यवहार करते थे। आज की दुनिया ऐसे ही भेदभाव के कारण बँटी हुई है और लगातार बढ़ती जा रही युद्ध, वैर-विरोध, ईर्ष्या और असहिष्णुता की व्याधियों की शिकार हो रही है। कल की दुनिया का निर्माण आज के बच्चों को करना है। अगर उनमें ‘साईं भावना भरी जा सके तो कल की दुनिया, सबके लिए बेहतर जगह हो सकती है।
श्रीमती वृंदा कुमार ने पूरी श्रद्धा और लगन से यह पुस्तक लिखी है। बाबा सदैव अपने भक्तों के माध्यम से ही बोलते हैं। वृंदाजी अंदर की आवाज को सुनकर लिखती हैं। इसीलिए, मुझे कोई संदेह नहीं कि इस पुस्तक को बच्चे-और बड़े-सभी प्रसंग करेंगे। इस पुस्तक से उन्हें बाबा की शरण में जाने की प्रेरणा मिलेगी मैं श्री शिरडी साईं बाबा से प्रार्थना करता हूँ कि वृंदाजी को हमेशा ऐसे पावन काम करने को प्रेरित करें।
इसके अलावा भी, श्री साईं महाराज के नाम से अनगिनत जगहों पर संस्थाओं, मंदिरों और दूसरी मानवीय गतिविधियों का जो फैलाव हुआ है, उसकी गिनती करना मुश्किल है। बाबा ने एक बार कहा था, ‘‘मैं मीलों दूर से अपने भक्तों को उसी तरह खींच लाता हूँ जैसे पंजों पर बँधी सुतली से किसी पक्षी को खींच लिया जाता है।’’ अब तो बड़ी संख्या में लोग कभी अकेले तो कभी समूहों में, अपनी शांति, खुशहाली और आत्मोत्थान के लिए लगातार शिरडी जाते रहते हैं। ये सभी लोग बाबा के बारे में ज्यादा-से ज्यादा जानना चाहते हैं और इनमें से तो कुछ ऐसे हैं, जो प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं; क्योंकि उन्होंने अपना जीवन बाबा को समर्पित कर दिया है।
बाबा की अनन्य भक्त श्रीमती वृंदा कुमार बाबा के नाम और उपदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए निस्स्वार्थ भाव से काम करती रही हैं। उन्होंने सिडनी में शिरडी साईं का मन्दिर बनाने में बहुत बड़ा योगदान किया। मॉरीशस में भी वह निरन्तर बाबा को लोगों के दिलों के करीब लाने में लगी रहीं। उनकी इस निष्ठा को देखते हुए, बच्चों के लिए ‘शिरडी के साईं बाबा : एक अनोखे फकीर’ पुस्तक लिखने की उनकी इच्छा पावन कार्य तो है ही, साथ ही सही समय पर किया गया कार्य भी है। बाबा बच्चों को बहुत प्यार करते थे और उनकी देख-रेख किया करते थे; क्योंकि उन्हें बच्चों से आत्मा की पवित्रता नजर आती थी।
राष्ट्रीयता, धर्म, फिरकों, दुनिया की ऊँच-नीच और जाति के नाम पर मानव समाज द्वारा बनाए भेदभाव को बाबा नहीं मानते थे। वह हमेशा प्रेम और भाईचारे का उपदेश देते थे और वैसा ही व्यवहार करते थे। आज की दुनिया ऐसे ही भेदभाव के कारण बँटी हुई है और लगातार बढ़ती जा रही युद्ध, वैर-विरोध, ईर्ष्या और असहिष्णुता की व्याधियों की शिकार हो रही है। कल की दुनिया का निर्माण आज के बच्चों को करना है। अगर उनमें ‘साईं भावना भरी जा सके तो कल की दुनिया, सबके लिए बेहतर जगह हो सकती है।
श्रीमती वृंदा कुमार ने पूरी श्रद्धा और लगन से यह पुस्तक लिखी है। बाबा सदैव अपने भक्तों के माध्यम से ही बोलते हैं। वृंदाजी अंदर की आवाज को सुनकर लिखती हैं। इसीलिए, मुझे कोई संदेह नहीं कि इस पुस्तक को बच्चे-और बड़े-सभी प्रसंग करेंगे। इस पुस्तक से उन्हें बाबा की शरण में जाने की प्रेरणा मिलेगी मैं श्री शिरडी साईं बाबा से प्रार्थना करता हूँ कि वृंदाजी को हमेशा ऐसे पावन काम करने को प्रेरित करें।
सी.बी. सत्पथी
लेखिका का निवेदन
इस कलियुग में किसी भी कीमत पर भौतिक सफलता और ऐशो-आराम की प्राप्ति को ही
उन्नति का सूचक समझा जाता है। ऐसे वातावरण में, विशेषकर, आज की युवा पीढ़ी
को आध्यात्मिक सिद्धांतों का महत्त्व सिखाना अति आवश्यक है। इसी विचार ने
मुझे यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी।
अपने बच्चों के साथ जो मेरा अनुभव रहा है, उसके आधार पर मैंने सीखा कि आध्यात्मिक सिद्धांतों पर चलना बच्चों के आत्म-विकास के लिए अति आवश्यक है। आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करना, उनकी तरफ से एक स्वस्थ समाज की ओर सकरात्मक अंशदान होगा। यह शिक्षा जितनी जल्दी शुरू हो, उतना ही अच्छा है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि आध्यात्मिकता के बीज जितनी छोटी आयु में ही बो दिए जाएँ, उतना लाभदायक सिद्ध होगा, जिससे बच्चे सदाचारी बनें और उन्हें भले-बुरे का ज्ञान हो। सही और गलत का अन्तर जानने के लिए आध्यात्मिक बोध अनिवार्य है। इस भौतिकवादी युग में यह परम आवश्यक है कि बच्चों को एहसास हो जाए कि विषय-सुख और सुविधा से जो खुशी मिलती है वह क्षणिक होती है। स्थायी खुशी के लिए इनसान को दूसरों की मदद करनी चाहिए, विशेषकर गरीब और ज़रूरतमंदों की, और सभी जीवों के प्रति प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण बरताव करना चाहिए।
शिरडी के संत एक अनोखे ईश्वरीय पुरुष थे, जो भिन्न-भिन्न धर्म, जाति और वर्ग के लोगों में, शान्ति और समता लाने के लिए ही इस पृथ्वी पर प्रकट हुए। बाबा के उपदेशों में, आपको बहुत ही आसान तरीके से, गीत और अन्य भारतीय ग्रन्थों के मूल सिद्धांतों को सार की झलक मिलेगी। बाबा को बच्चों से बहुत स्नेह था। इस पुस्तक में मैंने बाबा के जीवन और लीलाओं के साधारण और व्याख्यात्मक शैली में दरशाने की कोशिश की है। मुझे उम्मीद है कि यह बच्चों के मन को भाएगी।
मैंने उन कथाओं और अनुभवों का वर्णन किया है, जिनका बाबा के जीवन से संबंध है, जैसे-बाबा कहाँ से आए और उन्होंने किस प्रकार, अनगिनत सांकेतिक कहानियों द्वारा, सैकड़ों लोगों का कुशलता से मार्ग-दर्शन किया। मैंने बाबा की सादगी और सरल जीवन का महत्व समझाने की कोशिश की है। किस प्रकार वे एक साधारण भिखारी की तरह शिरडी के ग्रामवासियों के साथ रहते थे। उन्होंने सदा प्रयत्न किया कि लोगों के जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं व मुसीबतों में सहायता करके, वे उनके मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करें। इस उद्देश्य के लिए उन्हें कभी-कभी अपनी दिव्य या चमत्कारी शक्ति का भी प्रयोग करना पड़ा।
मैंने सरल हिन्दी भाषा का प्रयोग इसलिए किया है, ताकि बच्चे पुस्तक को स्वयं पढ़ने की कोशिश करें। मैं समझती हूँ कि प्रेरणा देनेवाली ये कथाएँ बच्चों को आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति की राह पर आगे बढ़ाएँगी। बच्चे आपस में बिना भेद-भाव के, प्रेम से मिलकर रहना सीखेंगे, एक ही ईश्वर के बच्चे बनकर। मैं आशा करती हूँ कि बच्चे इन कहानियों को बार-बार पढ़ेंगे और धर्म-पथ पर चलना सीखेंगे।
मेरी श्री साईंनाथ महाराज से विनम्र प्रार्थना है कि वे अपनी कृपा और आशीर्वाद सदा हमारी युवा पीढ़ी पर बनाए रखें, जो इस कष्टमय दुनिया में आशा का संदेश देनेवाली मशाल है।
बाबा ! हम सब पर अपनी सजग प्रेममय दृष्टि सदा बनाए रखना।
अपने बच्चों के साथ जो मेरा अनुभव रहा है, उसके आधार पर मैंने सीखा कि आध्यात्मिक सिद्धांतों पर चलना बच्चों के आत्म-विकास के लिए अति आवश्यक है। आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करना, उनकी तरफ से एक स्वस्थ समाज की ओर सकरात्मक अंशदान होगा। यह शिक्षा जितनी जल्दी शुरू हो, उतना ही अच्छा है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि आध्यात्मिकता के बीज जितनी छोटी आयु में ही बो दिए जाएँ, उतना लाभदायक सिद्ध होगा, जिससे बच्चे सदाचारी बनें और उन्हें भले-बुरे का ज्ञान हो। सही और गलत का अन्तर जानने के लिए आध्यात्मिक बोध अनिवार्य है। इस भौतिकवादी युग में यह परम आवश्यक है कि बच्चों को एहसास हो जाए कि विषय-सुख और सुविधा से जो खुशी मिलती है वह क्षणिक होती है। स्थायी खुशी के लिए इनसान को दूसरों की मदद करनी चाहिए, विशेषकर गरीब और ज़रूरतमंदों की, और सभी जीवों के प्रति प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण बरताव करना चाहिए।
शिरडी के संत एक अनोखे ईश्वरीय पुरुष थे, जो भिन्न-भिन्न धर्म, जाति और वर्ग के लोगों में, शान्ति और समता लाने के लिए ही इस पृथ्वी पर प्रकट हुए। बाबा के उपदेशों में, आपको बहुत ही आसान तरीके से, गीत और अन्य भारतीय ग्रन्थों के मूल सिद्धांतों को सार की झलक मिलेगी। बाबा को बच्चों से बहुत स्नेह था। इस पुस्तक में मैंने बाबा के जीवन और लीलाओं के साधारण और व्याख्यात्मक शैली में दरशाने की कोशिश की है। मुझे उम्मीद है कि यह बच्चों के मन को भाएगी।
मैंने उन कथाओं और अनुभवों का वर्णन किया है, जिनका बाबा के जीवन से संबंध है, जैसे-बाबा कहाँ से आए और उन्होंने किस प्रकार, अनगिनत सांकेतिक कहानियों द्वारा, सैकड़ों लोगों का कुशलता से मार्ग-दर्शन किया। मैंने बाबा की सादगी और सरल जीवन का महत्व समझाने की कोशिश की है। किस प्रकार वे एक साधारण भिखारी की तरह शिरडी के ग्रामवासियों के साथ रहते थे। उन्होंने सदा प्रयत्न किया कि लोगों के जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं व मुसीबतों में सहायता करके, वे उनके मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करें। इस उद्देश्य के लिए उन्हें कभी-कभी अपनी दिव्य या चमत्कारी शक्ति का भी प्रयोग करना पड़ा।
मैंने सरल हिन्दी भाषा का प्रयोग इसलिए किया है, ताकि बच्चे पुस्तक को स्वयं पढ़ने की कोशिश करें। मैं समझती हूँ कि प्रेरणा देनेवाली ये कथाएँ बच्चों को आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति की राह पर आगे बढ़ाएँगी। बच्चे आपस में बिना भेद-भाव के, प्रेम से मिलकर रहना सीखेंगे, एक ही ईश्वर के बच्चे बनकर। मैं आशा करती हूँ कि बच्चे इन कहानियों को बार-बार पढ़ेंगे और धर्म-पथ पर चलना सीखेंगे।
मेरी श्री साईंनाथ महाराज से विनम्र प्रार्थना है कि वे अपनी कृपा और आशीर्वाद सदा हमारी युवा पीढ़ी पर बनाए रखें, जो इस कष्टमय दुनिया में आशा का संदेश देनेवाली मशाल है।
बाबा ! हम सब पर अपनी सजग प्रेममय दृष्टि सदा बनाए रखना।
ॐ साईं, श्री साईं, जय जय साईं !
शिरडी के साईं बाबा : एक अनोखे फकीर
शिरडी के साईं बाबा कौन थे ?
आप में से कुछ बच्चों ने यह फोटो या मूर्ति घरों में और मंदिरों में अवश्य
देखी होगी। ये हैं एक महान फकीर संत। कई वर्ष पहले एक अनाम युवक
महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव शिरडी में अचानक प्रकट हुआ। वह कहाँ से
आया, यह कोई नहीं जानता। वह युवक कोई साधारण पुरुष नहीं था। उसकी प्रेममय
कृपा-दृष्टि सबसे पहले सीधे-सादे ग्रामवासियों को प्राप्त हुई। साईं बाबा
के नाम से प्रसिद्ध हुए वह युवक संत फिर जीवन भर वहीं रहे। उनका कर्म स्थल
शिरडी आज एक प्रमुख तीर्थस्थान बन गया है।
बाबा का जन्म और प्रारंभिक जीवन
यह कोई नहीं जानता कि बाबा का नाम जन्म कब और कहाँ हुआ ? उनके माता-पिता
कौन थे और उनका असली नाम क्या था ? इस विषय में काफी पूछताछ और खोजबीन भी
की गई है, परन्तु कोई संतोषजनक परिणाम न मिला। आज भी यह दिव्य रहस्य ही है।
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