उपन्यास >> हरियल की लकड़ी हरियल की लकड़ीरामनाथ शिवेन्द्र
|
1 पाठकों को प्रिय 117 पाठक हैं |
जहाँ वैश्विक धरातल पर अमरीकी दादागीरी सर चढ़कर बोल रही है वहीं भारतीय समाज की तलछट में रह रहे लोगों की जिन्दगी भ्रष्ट नौकरशाही और सरकारी प्रपंचों में फँसकर और भी दूभर होती जा रही है।
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: 10page.css
Filename: books/book_info.php
Line Number: 553
|
लोगों की राय
No reviews for this book