गजलें और शायरी >> रोशनी के घरौंदे रोशनी के घरौंदेबशीर बद्र
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उत्कृष्ट ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसमें आम पाठक को अपनी अनुभूतियों का आइना महसूस होगा।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आधुनिक ग़ज़ल का पर्याय बन चुके बशीर बद्र आज के बेहद लोकप्रिय और
सम्मानित शायर हैं। जब समकालीन ग़ज़ल की बात चलती है तो बशीर बद्र का नाम
अनायास ही होंठों पर आ जाता है। और फिर याद आने लगते हैं उनके कालजयी
शे’र, जो हिन्दी-उर्दू बोलने वाले आम लोगों की बातचीत का हिस्सा
बन
चुके हैं।
बशीर बद्र ने अब तक पाँच सौ से अधिक ग़ज़लों की रचना की है। जिनमें से एक बड़ी संख्या उन ग़ज़लों की है, जो ग़ज़ल के विकास में एक नया अध्याय जोड़ती हैं। ‘उजालों की परियां’, ‘धूप का चेहरा’ के बाद ‘रोशनी के घरौंदे’ उनकी उत्कृष्ट ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसमें आम पाठक को अपनी अनुभूतियों का आइना महसूस होगा।
बशीर बद्र ने अब तक पाँच सौ से अधिक ग़ज़लों की रचना की है। जिनमें से एक बड़ी संख्या उन ग़ज़लों की है, जो ग़ज़ल के विकास में एक नया अध्याय जोड़ती हैं। ‘उजालों की परियां’, ‘धूप का चेहरा’ के बाद ‘रोशनी के घरौंदे’ उनकी उत्कृष्ट ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसमें आम पाठक को अपनी अनुभूतियों का आइना महसूस होगा।
सुरेश कुमार
समकालीन उर्दू शायरी में ग़ज़ल का पर्याय बन चुके बशीर बद्र हमारे दौर के
सर्वाधिक लोकप्रिय शायर हैं। पूरे संसार में जहाँ भी उर्दू और हिन्दी
शायरी के पाठक या श्रोता हैं, वहाँ तक इनकी ख्याति चन्दन की खुशबू की तरह
फैली हुई है।
आम जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को काव्यात्मकता प्रदान करके उन्हें शे’र में ढाल देने की जो कला बशीर बद्र के पास है, वह सदियों में जाकर कहीं किसी को नसीब होती है। आम बोलचाल की सरल और सहज भाषा में अपनी सम्वेदनाओं को मार्मिक अभिव्यक्ति देने वाले बशीर बद्र अपना कोई सानी नहीं रखते।
‘उजालों की परियाँ’ और ‘धूप का चेहरा’ के बाद ‘रोशनी के घरौंदे’ बशीर बद्र का हृदयस्पर्शी ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसके एक-एक शे’र में पाठक को अपने दिल की आवाज़ सुनाई देगी।
आम जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को काव्यात्मकता प्रदान करके उन्हें शे’र में ढाल देने की जो कला बशीर बद्र के पास है, वह सदियों में जाकर कहीं किसी को नसीब होती है। आम बोलचाल की सरल और सहज भाषा में अपनी सम्वेदनाओं को मार्मिक अभिव्यक्ति देने वाले बशीर बद्र अपना कोई सानी नहीं रखते।
‘उजालों की परियाँ’ और ‘धूप का चेहरा’ के बाद ‘रोशनी के घरौंदे’ बशीर बद्र का हृदयस्पर्शी ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसके एक-एक शे’र में पाठक को अपने दिल की आवाज़ सुनाई देगी।
प्राक्कथन
समकालीन उर्दू शायरी में ग़ज़ल का पर्याय बन चुके बशीर बद्र हमारे दौर के
सर्वाधिक लोकप्रिय शायर हैं। पूरे संसार में जहाँ भी उर्दू और हिन्दी
शायरी के पाठक या श्रोता हैं, वहाँ तक इनकी ख्याति चन्दन की खुशबू की तरह
फैली हुई है।
बशीर बद्र के दर्जनों शे’र जनसाधारण की ज़बान पर हैं। उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो..., दुश्मनी जम कर करो ये गुंजाइश रहे..., कोई हाथ भी न मिलायेगा तो मिलोगे तपाक से..., लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में..., न जी भर के देखा न कुछ बात की...जैसे अनेक शे’रे जनसामान्य की धरोहर बन चुके हैं।
आम जीवन की छोटी छोटी अनुभूतियों को काव्यात्मकता प्रदान करके उन्हें शे’र में ढाल देने की कला बशीर बद्र के पास है वह सदियों में जाकर कहीं किसी को नसीब होती है।
बशीर बद्र के दर्जनों शे’र जनसाधारण की ज़बान पर हैं। उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो..., दुश्मनी जम कर करो ये गुंजाइश रहे..., कोई हाथ भी न मिलायेगा तो मिलोगे तपाक से..., लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में..., न जी भर के देखा न कुछ बात की...जैसे अनेक शे’रे जनसामान्य की धरोहर बन चुके हैं।
आम जीवन की छोटी छोटी अनुभूतियों को काव्यात्मकता प्रदान करके उन्हें शे’र में ढाल देने की कला बशीर बद्र के पास है वह सदियों में जाकर कहीं किसी को नसीब होती है।
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यू ही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
तेरी आँखों में ऐसा सँवर जाऊँ मैं
उम्रभर आइनों की ज़रूरत न हो
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
तेरी आँखों में ऐसा सँवर जाऊँ मैं
उम्रभर आइनों की ज़रूरत न हो
प्रेम और सौंदर्य बशीर बद्र के प्रिय विषय हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि आज
की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विसंगतियों से वे निरपेक्ष हैं। वर्तमान
व्यवस्था के प्रति उनका असंतोष जगह-जगह व्यक्त होता है, लेकिन अदब और
शालीनता के साथ।
मैं तमाम तारे उठा-उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
कभी एक रात वो आस्माँ का निज़ाम दें मेरे हाथ में
कभी एक रात वो आस्माँ का निज़ाम दें मेरे हाथ में
आम बोलचाल की सरल और सहज भाषा में अपनी सम्वेदनाओं को मार्मिक अभिव्यक्ति
देने वाले बशीर बद्र अपना कोई सानी नहीं रखते। उनके शे’रों में
प्रायः ऐसे शब्दों का इस्तेमाल मिलता है, जिन्हें साधारणजन भी समझ सकें।
सादगी में पुरकारी पैदा करने का कमाल और उसमें अर्थ की गम्भीरता उत्पन्न
करने का कौशल बशीर बद्र की अपनी निजी पहचान है।
सोये कहाँ थे आँखों ने तकिये भिगोये थे
हम भी कभी किसी के लिए खूब रोये थे
देने वाले ने दिया सब कुछ अलग अन्दाज़ से
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं
यहाँ लिबास की कीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम करे दे
हम भी कभी किसी के लिए खूब रोये थे
देने वाले ने दिया सब कुछ अलग अन्दाज़ से
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं
यहाँ लिबास की कीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम करे दे
पिछले चार दशकों से बशीर बद्र ग़ज़लगो शायर के रूप में उर्दू अदब की
दुनिया में छाये हुए हैं, आज हिन्दी के पाठकों और श्रोताओं के बीच भी वे
बेहद लोकप्रिय और प्रतिष्ठित हैं। प्रख्यात उर्दू आलोचक और शायर डॉ. वज़ीर
आग़ा ने कभी कहा था—‘बशीर वद्र की ग़ज़ल में वो कसक
पैदा हो
गई है, जिसके वग़ैर आला शायरी का तसव्वुर मुहाल है।’ यही नहीं
समकालीन ग़ज़ल के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर मोहम्मद अलवी ने तो यहाँ तक कह
दिया—‘मैं ग़ज़ल में फ़िराक़ गोरखपुरी और नासिर
काज़मी के बाद
बशीर बद्र को ही मानता हूँ।’ बशीर बद्र ने अपनी ग़ज़लों से जहाँ
जनसाधारण को मंत्रमुग्ध किया है वहीं उर्दू साहित्य के मर्मज्ञों को भी
प्रभावित किया है।
अस्तु, देवनागरी में उजालों की परियाँ, धूप का चेहरा के बाद रोशनी के घरौंदे बशीर बद्र की हृदयस्पर्शी ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसके एक-एक शे’र में पाठक को अपने दिल की आवाज़ सुनाई देगी।
अस्तु, देवनागरी में उजालों की परियाँ, धूप का चेहरा के बाद रोशनी के घरौंदे बशीर बद्र की हृदयस्पर्शी ग़ज़लों का ऐसा संकलन है, जिसके एक-एक शे’र में पाठक को अपने दिल की आवाज़ सुनाई देगी।
सुरेश कुमार
मैं तमाम तारे उठा-उठा के
ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
कभी एक रात वो आसमाँ
का निज़ाम दें मिरे हाथ में
ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
कभी एक रात वो आसमाँ
का निज़ाम दें मिरे हाथ में
-बशीर बद्र
(1)
ख़ानदानी रिश्तों में अक़्सर रक़ाबत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत
अपने कालेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है
दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहता है बहुत
उनके चेहरे चाँद-तारों की तरह रोशन हुए
जिन ग़रीबों के यहाँ हुस्न-ए-क़िफ़ायत1 है बहुत
हमसे हो नहीं सकती दुनिया की दुनियादारियाँ
इश्क़ की दीवार के साये में राहत है बहुत
धूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे
गुर्वतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत2 है बहुत
उन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मी
रात से तनहा लड़ा, जुगनू में हिम्मत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत
अपने कालेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है
दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहता है बहुत
उनके चेहरे चाँद-तारों की तरह रोशन हुए
जिन ग़रीबों के यहाँ हुस्न-ए-क़िफ़ायत1 है बहुत
हमसे हो नहीं सकती दुनिया की दुनियादारियाँ
इश्क़ की दीवार के साये में राहत है बहुत
धूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे
गुर्वतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत2 है बहुत
उन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मी
रात से तनहा लड़ा, जुगनू में हिम्मत है बहुत
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1. पर्याप्त सौंदर्य 2. कष्ट
1. पर्याप्त सौंदर्य 2. कष्ट
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