विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
अध्ययन में नैपुण्य
कुछ दिन हुए, मठ में नया अंग्रेजी विश्वकोष (Encyclopaedia Britannica) खरीदा गया है। नयी चमकीली पुस्तकों को देखकर शिष्य ने स्वामीजी से कहा, "इतनी पुस्तकें एक जीवन में पढ़ना तो कठिन है।" उस समय शिष्य नहीं जानता था कि स्वामीजी ने उन पुस्तकों के दस खण्डों का इसी बीच में अध्ययन समाप्त करके ग्यारहवाँ खण्ड प्रारम्भ कर दिया है।
स्वामीजी - क्या कहता है? इन दस पुस्तकों में से मुझसे जो चाहे पूछ ले ले - सब बता दूँगा।
शिष्य ने विस्मित होकर पूछा, "क्या आपने इन सभी पुस्तकों को पढ़ लिया है?"
स्वामीजी - क्या बिना पढ़े ही कह रहा हूँ?
इसके अनन्तर स्वामीजी का आदेश पाकर शिष्य उन सब पुस्तकों से चुन चुनकर कठिन विषयों को पूछने लगा। आश्चर्य है - स्वामीजी ने उन सब विषयों का मर्म तो कहा ही, पर स्थान स्थान पर पुस्तक की भाषा तक उद्धृत की। शिष्य ने उस विराट् दस खण्ड की पुस्तकों में से प्रत्येक खण्ड से दो-एक विषय पूछे और सभी स्वामीजी की असाधारण बुद्धि तथा स्मरण-शक्ति देख विस्मित होकर पुस्तकों को उठाकर रखते हुए उसने कहा, "यह मनुष्य की शक्ति नहीं।"
स्वामीजी - देखा, एकमात्र ब्रह्मचर्य का ठीक ठीक पालन कर सकने पर सभी विद्याएँ क्षण भर में याद हो जाती हैं - मनुष्य श्रुतिधर, स्मृतिधर बन जाता है। (६.१८९)
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