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विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5917
आईएसबीएन :9789383751914

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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।

वेदान्त के अनुसार ईश्वर की धारणा

वेदान्त का ईश्वर क्या है?

वह व्यक्ति नहीं, विचार है, तत्त्व है। तुम और हम सब सगुण ईश्वर हैं। विश्व का परात्पर ईश्वर, विश्व का स्रष्टा, विधाता और संहर्ता परमेश्वर निर्विशेष तत्त्व है। तुम-हम, चूहे-बिल्ली, भूत-प्रेत आदि सभी उसके रूप हैं - सभी सगुण ईश्वर हैं। तुम्हारी इच्छा है सगुण ईश्वर की उपासना करने की। वह तो अपनी आत्मा की ही उपासना है। यदि तुम मेरी राय मानो तो किसी भी गिरजाघर में कदम न रखो। बाहर निकलो, जाओ, और अपने को प्रक्षालित कर डालो। जब तक कि युग युग के चिपके- जमे तुम्हारे अंधविश्वास बह न जायँ, तब तक अपने को बारंबार प्रक्षालित करते रहो।

मुझसे प्राय: पूछा गया है, "मैं इतना अधिक हँसता और व्यंग्य-विनोद क्यों करता हूँ?” जब कभी पेट दर्द करने लगता है, तो कभी कभी गम्भीर हो जाता हूँ ! ईश्वर केवल आनन्दपूर्ण है। सभी अस्तित्व के मूल में एकमात्र वही है, निखिल विश्व का वही शिव है, सत्य है। तुम उसीके अवतार मात्र हो। यही गौरव की बात है। उसके जितने अधिक निकट तुम होओगे, तुम्हें उतना ही कम चीखना-चिल्लाना पड़ेगा। उससे जितनी दूर हम होते है, उतना ही अधिक हमें अवसाद झेलना पड़ता है। जितना अधिक उसे जानते है, उतना ही संकट मिटता जाता है। (९.८७)

लेकिन ईश्वर तो अनन्त है, निर्वैयक्तिक है - सच्चिदानन्द है, सर्वदा विद्यमान है, निर्विकार है, अमर है, अभय है, और तुम सब उसके अवतार हो, मूर्त रूप हो। वेदान्त का ईश्वर यही है, जिसका स्वर्ग सर्वत्र है। (९.८८)

 

 

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