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विवेकानन्द साहित्य >> स्वामी विवेकानन्द साहित्य संचयन

स्वामी विवेकानन्द साहित्य संचयन

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :404
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5957
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है पुस्तक स्वामी विवेकानन्द संचयन

Swami Vivekanand Sahitya Sanchayan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तावना

प्रथम संस्करण

‘विवेकानन्द साहित्य संचयन’ का यह सस्ता संस्करण युवकों को सौंपते हुए हमें विशेष प्रसन्नता हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को ‘अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष ठहराया गया। इसके महत्त्व का विचार करते हुए भारत सरकार ने घोषणा की कि इस वर्ष से 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती का दिन राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में देशभर में सर्वत्र मनाया जाए। इस सन्दर्भ में भारत सरकार को ‘‘ऐसा अनुभव हुआ कि स्वामी जी का दर्शन एवं स्वामी जी के जीवन तथा कार्य के पश्चात निहित उनका आदर्श—यही भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है।’’

वास्तव में स्वामी विवेकानन्द आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं। विशेषकर भारतीय युवकों के लिए स्वामी विवेकानन्द से बढ़कर दूसरा कोई नेता नहीं हो सकता। हमारे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने बहुत पहले स्वामीजी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा थाः ‘‘मैं नहीं जानता हमारी युवा पीढ़ी में कितने लोग स्वामी विवेकानन्द के भाषणों और लेखों को पढ़ते हैं। परन्तु मैं उन्हें यह निश्चित बता सकता हूँ कि मेरी पीढ़ी के बहुतेरे युवक उनके द्वारा अत्यधिक मात्रा में प्रभावित हुए थे। मेरे विचार में यदि वर्तमान पीढ़ी के लोग स्वामी विवेकानन्द के भाषणों और लेखों को पढ़ें तो उन्हें बहुत बड़ा लाभ होगा और बहुत कुछ सीख पाएँगे।.... यदि तुम स्वामी विवेकानन्द के भाषणों और लेखों को पढ़ो तो तुम्हें यह आश्चर्यकारक बात दिखाई देगी कि वे कभी पुराने नहीं प्रतीत होते।..... उन्होंने हमें कुछ ऐसी वस्तु दी है जो हममें अपनी उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त परम्परा के प्रति एक प्रकार का अभिमान-यदि मैं इस शब्द का व्यवहार कर सकूँ-जगा देती है।

...स्वामी जी ने जो कुछ भी लिखा है वह हमारे लिए हितकर है और होना ही चाहिए तथा वह आने वाले लम्बे समय तक हमें प्रभावित करता रहेगा। ....प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उन्होंने वर्तमान भारत को दृढ़ रूप से प्रभावित किया है। और मेरे विचार में तो हमारी युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानन्द से निःसृत होने वाले ज्ञान, प्रेरणा एवं तेज के स्रोत से लाभ उठाएगी।’’

स्वामी विवेकानन्द वैदिक धर्म के समस्त स्वरूपों के उज्जवल प्रतीक थे। यह उन्हीं की प्रतिभा थी जिससे वेदान्त का प्रतिपादन इस रूप में हुआ कि वह वर्तमान युग के मनुष्य द्वारा हृदयंगम किया जा सके केवल भारत ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व स्वामी जी के स्फूर्तिदायी एवं विधायक विचारों द्वारा प्रचुर मात्रा में लाभान्वित हुआ है; स्वामीजी की वे विचारधाराएं मानव के समस्त कार्यक्षेत्रों में यथार्थतः सहायक हैं। आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्यों के सम्मुख अनेकानेक समस्याएँ उपस्थित हुई हैं- स्वामी जी इन सभी समस्याओं से परिचित थे तथा उन्हें यथार्थ रूप में समझ भी सके थे।

फलतः उन सब के लिए उन्होंने उपाय तथा मार्ग भी प्रदर्शित किये हैं और ये सारे मार्ग उन चिरन्तन सत्यों पर आधारित हैं जो वेदान्तों तथा अन्य महान धर्मों में निहित हैं। यथार्थ धर्म की शिक्षा देने के अतिरिक्त उन्होंने समग्र विश्व को जानताजनार्धन की सेवा पूजा के भाव से करने का भी पाठ पढ़ाया है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्वामी जी ने हमें मानव-निर्माणकारी धर्म एवं मानवनिर्माणकारी दर्शन की शिक्षा दी जो हमारे राष्ट्रनिर्माण के लिए अनुपम देन है। कहने की आवश्यकता नहीं, इन सब दृष्टिकोणों से स्वामी विवेकानन्द का केवल भारत ही नहीं वरन् विश्व के धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास में बहुत उच्च स्थान है।

स्वामी विवेकानन्द ने विश्व को ज्ञान एवं शिक्षा की जो प्रचुर सामग्री प्रदान की है वह उनके व्याख्यानों तथा प्रवचनों में निहित है जो उन्होंने भारतवर्ष तथा विदेशों में दिये हैं; इसी प्रकार यह अद्वितीय सामग्री उनके द्वारा लिखित पुस्तकों, लेखों तथा पत्रों, उनके सम्भाषणों, उनके वार्तालापों तथा उनकी काव्यरचनाओं में हमें प्राप्त होती है जो सहस्र-सहस्र पृष्ठों में लिपिबद्ध है। यह सारी साहित्य सामग्री अत्यंत अधिक विस्तृत होने के कारण प्रत्येक के लिए इसका अध्ययन करना सम्भवतः कठिन होगा इसी उद्देश्य से हमने स्वामीजी के इस महान् वाङ्मय से उनके कुछ विशिष्ट व्याख्यान, प्रवचन, सम्भाषण, लेख, पत्र, कविताएं आदि चुनकर उन्हें इस प्रातिनिधिक संचयन के रूप में प्रकाशित किया है।

राष्ट्रीय युवा दिन के शुभावसर पर स्वामी विवेकानन्द के साहित्य का यथार्थ दर्शन करानेवाला यह संचयन अत्यन्त अल्प मूल्यों में युवकों के हाथ में रखा जा रहा है। काज विक्रेता, मुद्रत तथा पुस्तक-प्रकाशन क्षेत्र से संबंधित अन्य सभी व्यक्तियों की हार्दिक सहानुभूति एवं सहायता के कारण ही पुण्य कार्य सम्भव हो सका। इस अवसर पर हम उन सभी सुहृद् मित्रों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

वैसे प्रस्तुत ग्रन्थ ‘विवेकानन्द संचयन’ नाम से कई वर्ष पहले ही प्रकाशित हुआ था। किन्तु वर्तमान रूप में यह सरलता से बहुसंख्यक भारतीय युवकों के हाथों तक पहुँच सकेगा।

स्वामीजी के सन्देश का सार मर्म है- ‘स्वयं पूर्ण बनो और दूसरों को भी पूर्ण बनाओ। ‘इस बहुमूल्य सन्देश को जीवन में लाने की विपुल प्रेरणा ग्रन्थ को पढ़ते समय प्राप्त होगी।

इस संचयन द्वारा पाठकों को स्वामीजी के दैवी व्यक्तित्व एवं बहुमुखी प्रतिभा की एक पर्याप्त झलक मिल सकेगी- साथ ही अनेकानेक विशिष्ट विषयों पर उनके विचार भी समझे जा सकेंगे। हमारा विश्वास है कि इस संचयन के अध्ययन से पाठकों के मन में स्वामीजी के सभी ग्रन्थों के अध्ययन की अभिलाषा जागृत होगी और इस प्रकार हमारा प्रयास सफल हो सकेगा जिसके निमित्त हमने प्रस्तुत ग्रन्थ प्रकाशित किया है

प्रकाशक

स्वामी विवेकानन्द


कभी कभी समय की दीर्घ अवधि के बाद एक ऐसा मनुष्य हमारे इस ग्रह में आ पहुँचता है, जो असंदिग्ध रूप से दूसरे किसी मंडल से आया हुआ एक पर्यटक होता है; जो उस अति दूरवर्ती क्षेत्र की, जहाँ से वह आया हुआ है, महिमा, शक्ति और दीप्ति का कुछ अंश इस दुःखपूर्ण संसार में लाता है। वह मनुष्यों के बीच विचरता है, लेकिन वह इस मर्त्यभूमि का नहीं है। वह है एक तीर्थयात्री, एक अजनबी-एक केवल एक ही रात के लिए यहाँ ठहरता है।

वह अपने चारों ओर के मनुष्यों के जीवन से अपने को सम्बद्ध पाता है; उनके हर्ष-विषाद का साथी बनता है; उनके साथ सुखी होता है, उनके साथ दुखी भी होता है; लेकिन इन सबों के बीच, वह यह कभी नहीं भूलता कि वह कौन है, कहाँ से आया है और उसके यहाँ आने का क्या उद्देश्य है। वह कभी अपने दिव्यता को नहीं भूलता। वह सदैव याद रखता है कि वह महान्, तेजस्वी एवं महामहिमान्वित आत्मा है। वह जानता है कि वह उस वर्णनातीत स्वर्गीय क्षेत्र से आया है, जहाँ सूर्य अथवा चन्द्र की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि वह क्षेत्र आलोकों के आलोक से आलोकित है। वह जानता है कि जब‘ ईश्वर की सभी सन्तानें एक साथ आनन्द के लिए गान कर रहीं थी, उस समय से बहुत पूर्व ही उसका अस्तित्व था।

ऐसे एक मनुष्य को मैंने देखा, उनकी वाणी सुनी और उसके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित की। उसी के चरणों में मैंने अपनी आत्मा की अनुरक्ति निवेदित की।

इस प्रकार का मनुष्य सभी तुलना के परे है, क्योंकि वह समस्त साधारण मापदण्डों और आदर्शों के अतीत है। अन्य लोग तेजस्वी हो सकते हैं, लेकिन उसका मन प्रकाशमय है, क्योंकि वह समस्त ज्ञान के स्रोत के साथ अपना संयोग स्थापित करने में समर्थ है। साधारण मनुष्यों की भाँति वह ज्ञानार्जन की मंथरप्रक्रियाओं द्वारा सीमित नहीं है। अन्य लोग शायद महान् हो सकते हैं। लेकिन यह महत्त्व उनके अपने वर्ग के दूसरे लोगों की तुलना में ही सम्भव है।

अन्य मनुष्य अपने साथियों की तुलना में साधु, तेजस्वी, प्रतिभावान् हो सकते हैं। पर यह सब केवल तुलना की बात है। एक सन्त साधारण मनुष्य से अधिक पवित्र, अधिक पुण्यवान, अधिक एकनिष्ठ है। किन्तु स्वामी विवेकानन्द के सम्बन्ध में कोई तुलना नहीं हो सकती। वे स्वयं ही अपने वर्ग के हैं। वे एक दूसरे स्तर के हैं, न कि सांसारिक स्तर के। वे एक भास्वर सत्ता हैं, जो एक सुनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए दूसरे एक उच्चतर मंडल से मर्त्यभूमि पर अवतरित हुए हैं। कोई शायद जान सकता था कि यहाँ पर दीर्घकाल तक नहीं ठहरेंगे।

इसमें क्या आश्चर्य है कि प्रकृति स्वयं ऐसे मनुष्य के जन्म पर आनन्द मनाती है, स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं और देवदूत कीर्ति-गान करते हैं ?
धन्य है वह देश, जिसने उनको जन्म दिया है; धन्य हैं वे मनुष्य, जो उस समय इस पृथ्वी पर जीवित थे; और धन्य हैं वे कुछ लोग-धन्य, धन्य, धन्य-जिन्हें उनके पादपद्मों में बैठने का सौभाग्य मिला था।

भगिनी क्रिस्तिन

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