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			 गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
Amrit Ke Ghoont a hindi book by Ramcharan Mahendra - अमृत के घूँट - रामचरण महेन्द्र
अमृत के घूँट
हमारा सुधार क्यों नहीं होता? हम क्यों मोहनिद्रा में पड़े रहते है? वास्तवमें हमें अपनी त्रुटियों और कमजोरियों का ज्ञान ही नहीं होता। जो व्यक्ति किसी भी प्रकारकी नैतिक भूल करता है, उस अल्पज्ञ को यह ज्ञान नहीं होता कि वह गलत राहपर है। अन्धकार में वह गलत राहपर आगे बढ़ता ही चला जाता है। अन्तमें किसी कठोर शिलासे टकराने पर उसे अपनी गलती या दुर्बलता का ज्ञान होता है और तब ज्ञान के चक्षु एकाएक खुल जाते है। यहीं से उन्नतिका प्रभात प्रारम्भ हो जाता है।
जो अपनी दुर्बलता का दर्शन करता है, उसके लिये सच्चा पश्चात्ताप कर उसे दूर करने की इच्छा से सतत उद्योग प्रारम्भ करता है, उसका आधा काम तो बन गया।
दुर्बलता के दर्शन, सच्ची आत्मग्लानि, फिर उस दुर्बलता को हटाने की साधना-यही हमारी उन्नति के तत्त्व है। जिसका मन गलत राह से हटकर सन्मार्ग पर आरूढ़ हो जाता है, उसी को आध्यात्मिक सिद्धियाँ मिलनी प्रारम्भ हो जाती है। हमारे वेदों में ऐसे अनेक अमूल्य ज्ञान-कण बिखरे पड़े है, जिनमें मन को कल्याणकारी मार्ग पर चलने के लिये प्रार्थनाएँ की गयी है-
भद्रं नो अपि वातय मनः। (ऋ० १०। २०। १)
 अर्थात् हे परमात्मन्! मेरे मनको कल्याणकी ओर ले चलो।
 
 असंतापं मे हृदयभुर्वी।  (अथर्व० १६। ३। ६)
 हे परमात्मन्! मेरा हृदय सन्ताप से हीन होता चले अर्थात् अपनी दुर्बलताके दर्शन कर मेरे मन में जो ग्लानि उत्पन्न हो, वह सत्कर्म और शुभ विचारके द्वारा दूर होती चले।
 
 वि नो राये दुरोवृधि। 
 (ऋ० ९। ४५। ३)
हे प्रभो! ऐश्वर्य के लिये हमारे आन्तरिक मन के द्वार खोल दो। (हमें निकृष्ट विचारोंसे शक्ति दो और दैवी एकता, विपुलता, आत्मकल्याण के विचारों से परिपूर्ण कर दो।)
स्वामी दयानन्दजीने 'सत्यार्थप्रकाश' में एक स्थान पर दुर्बलता के दर्शन कर उसे निवारण के सम्बन्धमें कहा है-'सज्जनों और उन्नति करनेवालों की यह रीति है कि वे गुणोंको ग्रहणकर दोषोंका परित्याग सदा करते रहते है।'
शील हि शरणं सौम्मः। (अश्वघोष)
वास्तवमें सत्-स्वभाव ही मनुष्यका रक्षक है। वही हमें सदा आशाप्रद कल्याणकारी मार्गपर आरूढ़ रखता है। सबसे बढ़कर कल्याण करनेवाला वह मन है जो सत्यके मार्गपर चलता है। जिस बुद्धि और विवेक के कारण मनुष्य बुद्धिमान् कहे जाते है, वही बुद्धि जब दुर्बलताके निवारणमें सच्चाई से लग जाती है तो आधा काम बना समझिये। फिर हम निराश क्यों हों?
						
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 - हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
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 - भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
 - सात्त्विक आहार क्या है?
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 - सन्तोषामृत पिया करें
 - प्राप्त का आदर करना सीखिये
 - ज्ञान के नेत्र
 - शान्ति की गोद में
 - शान्ति आन्तरिक है
 - सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
 - आत्मनिर्माण कैसे हो?
 - परमार्थ के पथपर
 - सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
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 - पाप से छूटने के उपाय
 - पापसे कैसे बचें?
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 - वैराग्यपूर्ण स्थिति
 - अपने-आपको आत्मा मानिये
 - ईश्वरत्व बोलता है
 - सुखद भविष्य में विश्वास करें
 - मृत्यु का सौन्दर्य
 

 
		 






			 

