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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मनुष्यकी मानसिक परेशानियोंका कारण ये ही गुप्त जिम्मेदारियाँ है। वही मनुष्य उन्मुक्त है, जो इन सभ्यताके बन्धनोंसे दूर रहता है। सांसारिक मोह, तृष्णा, इच्छा, व्यर्थकी जिम्मेदारियोंका त्याग करना ही दीर्घ जीवन तथा आन्तरिक प्रसन्नताका चिह्न है।

प्रो० लालजीराम शुक्लने एक बड़ा रोचक वृतान्त लिखा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जिम्मेदारियों और चिन्ताओंसे मुक्त होनेसे जीवनकाल बढ़ जाता है। आप लिखते हैं-

'कुछ दिन पूर्व डा. भगवानदास बीमार पड़े। आस-पासके लोग तथा वे स्वयं सोचने लगे कि अब उन्हें परलोक जाना है। इसके कारण उन्होंन अपनी जिम्मेदारियोंको अपने पुत्रों और अन्य सम्बन्धियोंमें बाँट दिया। अपनी पुस्तकों की तथा अपने अन्य द्रव्यकी भी व्यवस्था कर दी। इस प्रकार जब अपनी जिम्मेदारियोंसे उनका मन मुक्त हो गया तो वे स्वस्थ हो गये। उनका जीवनकाल बढ़ गया। धीर-धीर उन्होंनं स्वास्थ्य लाभ कर लिया और अब वे मृत्युके लिए सदैव तैयार बैठे है; पर मृत्यु-स्वयं उनसे सहम गयी और उनसे अपना मुँह मोड़ लिया। वास्तव में जो व्यक्ति मृत्युको भी अपना कल्याणकारी मानता है और उससे नहीं डरता, उसे अकाल मृत्यु नहीं आती। जब उसका काम पूर्ण हो जाता है, तभी उसकी इच्छासे पास आती है।'

आप अपनी जिम्मेदारियोंको कम करते जाइये। बच्चोंको स्वयं उनके पाँवोंपर खड़े होनेकी आदत डालिये। घरके खर्च दूसरोंके हाथमें दे दीजिये। अन्य काम भी दूसरे ही करते रहें, आपको किसी प्रकारकी चिन्ता न रहे अर्थात् घरको ऐसा कर दीजिये कि यदि आपको अपना हाथ खींच लेना पड़े, तब भी कुछ असुविधा उपस्थित न हो।

चिन्ताएँ तीन प्रकारकी होती हैं-शारीरिक, मानसिक और आर्थिक। इनमें आर्थिक चिन्ताएँ बड़ी विषैली है; क्योंकि इन्हींसे शरीर भी जीर्ण-शीर्ण हो जाता है। कर्ज किसीसे न छीजिये। अपनी आयके भीतर ही आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहिये। वृद्धावस्थाके निमित्त कुछ संग्रह अवश्य कीजिये। अन्यथा बुढ़ापेके साथ चिन्ता मिलकर मृत्यु समीप ले आयेगी।

व्यर्थके लेन-देन, सामाजिक ऊँच-नीच मिथ्या दिखावा, दूसरोंको प्रसन्न करनेकी चेष्टा, जानवर पालना, अपनी आवश्यकताएँ बढ़ाते चलना, मुकदमेबाजी, अधिक संतान उत्पन्न करना, पुनः विवाह करना, दूसरोंके बच्चोंको अपने पास रखना, जायदाद या रुपया इकट्ठा करनेकी धुन-आन्तरिक मनपर व्यर्थका बोझ लादकर मनुष्यकी असामयिक मृत्युका करण बनती है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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