गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
जब कभी आप संकटमें हों, आपके हाथ-पैर जवाब देने लगें, आपदकालमें अपना सब कुछ भगवदर्पण करें-आप देखेंगे कि दैवी नियमोंके अनुसार स्वयं काम होता जायगा, गुत्थियाँ सुलझती जायेंगी और आपकी निष्ठाके अनुसार कार्यसिद्धि होती जायगी।
'भगवदर्पण करना संसारकी सबसे बड़ी शक्तिके साथ सम्बन्ध स्थापित करना है। यह दैवी शक्ति हमारे हृदयमें उदित होकर सर्वत्र प्रकाश फैलाती है। जो लोग इस दुस्तर संसारसागरसे पार जाना चाहते हैं, उन्हें भगवान्का सहारा अवश्य लेना चाहिये। भगवान् को सब कुछ अर्पणकर कार्य करनेसे वह कार्य हमारा स्वार्थमूलक कार्य नहीं रह जाता, वरं उसका दिव्य अभिप्राय हो जाता है; अतः वह स्वतःसिद्ध हो जाता है।
विषम परिस्थितियों और कठिनाइयोंमें हमारी मनःस्थिति धैर्य और शान्तिकी होनी चाहिये। संसारकी गति अपने क्रमके अनुसार चलती जाती है, तो चलती रहे; हम क्यों उससे विक्षुब्ध, अशान्त अथवा दुःखी हों? हम तो भगवान्के हाथमें एक यन्त्रमात्र है, ज्ञानदृष्टिसे एक द्रष्टा है। इन विषमताओं और कठोरताओंसे मुक्तिका रहस्य भगवान् ने स्वयं गीतामें स्पष्ट कर दिया है-
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।
(१८। ६१)
'अर्जुन! ईश्वर सर्वप्राणिमात्रके हृदयमें विराजमान है और जगत्के सब प्राणियोंकी यन्त्रपर चढ़े हुए (पट्टे) के समान इच्छानुसार चलाता है।'
जो कुछ भी मनुष्य करता है, सोचता-विचारता है, वह सब मनुष्य नहीं करता; संसारमें जो कुछ भी हो रहा है, ईश्वरके द्वारा ही हो रहा है। वही मुख्य प्रेरक शक्ति है! मनुष्य तो उसके हाथोंमें एक कठपुतलीके समान है।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
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- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य