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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं

प्रिय पाठक! रुपयेसे सुन्दर स्वादिष्ट पकवान, मिठाई, बढ़िया भोजन खरीद सकते हो पर 'भूख' नहीं। भूख ढेर-कें-ढेर रुपये देनेपर भी बाजारमें नहीं मिलेगी। रुपयेसे शक्तिवर्धक अनेक पदार्थ एक-से-एक चटकीले मानकी दवाइयों मिलेगी, पर 'शक्ति' नहीं। शक्तिके लिये आपको परिश्रमका धन व्यय करना होगा। धनसे आप ऐश्वर्यशाली बन सकेंगे पर सखा आनन्द और 'शान्ति' कदापि न मिल सकेगी। रुपयेसे चश्मा मिलेगा, पर 'दृष्टि' नहीं; कोमल शय्या मिलेगी, पर 'निद्रा' नहीं; निस्तब्धता मिलेगी, पर 'हार्दिक संतोष' नहीं; अलंकार मिल सकेंगे, पर 'सौन्दर्य' नहीं; विद्या मिलेगी, पर 'विवेक' नहीं; नौकर मिल सकते है, पर 'सखी सेवा' नहीं; संगी-साथी अनेक इकट्ठे हो जायेंगे, पर 'सच्चे मित्र' नहीं; ठकुरसुहाती बातें खूब मिलेंगी, पर 'प्रेम' नहीं। संसारकी उत्तम वस्तुएँ प्रायः बिना रुपये-पैसेके ही प्राप्त हुआ करती है। दुनियामें ऐसा कोई माप नहीं कि जिससे आनन्द, स्वास्थ्य, विवेक, प्रेम, निद्रा, शान्ति और शक्ति इत्यादि दैवी तत्त्वोंका मूल्य आँका जा सके।

जिनको स्वास्थ्य और सुखकी आवश्यकता है, उन्हें यह जानना चाहिये कि इनकी प्राप्तिके लिये हमें विशेषरूपसे इन पदार्थोंकी आवश्यकता है-(१) सादा भोजन, (२) स्वच्छ वायु और पर्याप्त प्रकाश, (३) प्रसन्नता, (४) सदाचार, (५) व्यायाम।

भोजनके पदार्थ ताजे और निर्दोष होने चाहिये। उनके बनानेमें पूर्ण रुचि और स्नेह का प्रयोग करना चाहिये। भोजन का उपयोगी होना मिर्च-मसालों पर उतना निर्भर नहीं, जितना बनाने और तैयार करने पर निर्भर है। यदि विधिपूर्वक बनाया जाय तो भोजन उत्तम बनता है और पेटभर खाया जा सकता है। शाकभाजी, हरी तरकारियाँ हमारे स्वास्थ्यको घी-मक्खनसे कहीं अधिक लाभ पहुँचाती है। धनी लोग स्वादिष्ट होनेके कारण इतना खा जाते है कि उनकी पाचन-शक्ति ही खराब हो जाती है। अधिक भोजन रोगोंको बढ़ानेवाला, आयुको घटानेवाला, नरक पहुँचानेवाला और निन्दित कार्य करानेवाला है। गरीब व्यक्ति साधारणतः कम खायगा, धीरे-धीरे खायगा और शान्तिसे खायगा,' जिससे उसकी प्राणशक्ति बढ़ेगी। सच बात तो यह है-

आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ हवा स्मृति। स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः। (छान्दोग्य० ७। २६।२)

अर्थात् आहारकी शुद्धिसे सत्त्वकी शुद्धि होती है, सत्त्व-शुद्धिसे बुद्धि निर्मल और निश्चयात्मिका बन जाती है, फिर पवित्र तथा निश्चयात्मिका बुद्धिसे मुक्ति भी सुलभता से प्राप्त होती है। सुख और स्वास्थके लिये नित्य नियमित समय पर खूब चबा-चबाकर शान्तिपूर्वक सात्त्विक अल्पाहार किया करें तो बिना रुपयेके आपको शक्ति मिलेगी।

हमारे जीवनमें दूसरी आवश्यक वस्तुएँ है-स्वच्छ वायु और पर्याप्त प्रकाश। गंदी वायुसे बीमारियोंके कीटाणु हमारे शरीरमें प्रवेश कर हमारे स्वास्थ्यको बिगाड़ डालते है। शहरोंमें प्रायः नब्बे प्रतिशत व्यक्ति ऐसे अँधेरे घरोंमें रहते है, जहाँ न साफ हवा आती है न रोशनी। आरोग्य, बल तथा उत्तम पाचन-शक्ति चाहनेवाले मनुष्यको घरमें ताजी तथा शुद्ध हवा, जितनी ज्यादा हो सके आने देनी चाहिये, जहाँ तक हो सके जंगलकी खुली हवामें समय बिताना चाहिये। अपने सोने तथा बैठनेके कमरेमें हवाको प्रवेश करनेकी ऐसी व्यवस्था कर देनी चाहिये कि दूषित हवामें साँस न लेना पड़े। प्रकृतिने मनुष्यको हवाका प्राणी बनाया है, न कि घरमें बँधा हुआ दिनोंको धक्के देनेवाला जानवर। याद रखिये-जिस घरमें सूर्यका प्रकाश और धूप नहीं पहुँचती, वहीं डाक्टर और वैद्यराज पधारा करते है। धूपकी किरणें लाखों डाक्टरोंसे अधिक उपयोगी है। गरीबलोग भी इन्हें जितना चाहे ले सकते है। मनुष्यको इस बातका गर्व होना चाहिये कि उसका घर हवादार स्वास्थ्यवर्द्धक है और उसमें पर्याप्त प्रकाश आता है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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