गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
प्रिय पाठक! रुपयेसे सुन्दर स्वादिष्ट पकवान, मिठाई, बढ़िया भोजन खरीद सकते हो पर 'भूख' नहीं। भूख ढेर-कें-ढेर रुपये देनेपर भी बाजारमें नहीं मिलेगी। रुपयेसे शक्तिवर्धक अनेक पदार्थ एक-से-एक चटकीले मानकी दवाइयों मिलेगी, पर 'शक्ति' नहीं। शक्तिके लिये आपको परिश्रमका धन व्यय करना होगा। धनसे आप ऐश्वर्यशाली बन सकेंगे पर सखा आनन्द और 'शान्ति' कदापि न मिल सकेगी। रुपयेसे चश्मा मिलेगा, पर 'दृष्टि' नहीं; कोमल शय्या मिलेगी, पर 'निद्रा' नहीं; निस्तब्धता मिलेगी, पर 'हार्दिक संतोष' नहीं; अलंकार मिल सकेंगे, पर 'सौन्दर्य' नहीं; विद्या मिलेगी, पर 'विवेक' नहीं; नौकर मिल सकते है, पर 'सखी सेवा' नहीं; संगी-साथी अनेक इकट्ठे हो जायेंगे, पर 'सच्चे मित्र' नहीं; ठकुरसुहाती बातें खूब मिलेंगी, पर 'प्रेम' नहीं। संसारकी उत्तम वस्तुएँ प्रायः बिना रुपये-पैसेके ही प्राप्त हुआ करती है। दुनियामें ऐसा कोई माप नहीं कि जिससे आनन्द, स्वास्थ्य, विवेक, प्रेम, निद्रा, शान्ति और शक्ति इत्यादि दैवी तत्त्वोंका मूल्य आँका जा सके।
जिनको स्वास्थ्य और सुखकी आवश्यकता है, उन्हें यह जानना चाहिये कि इनकी प्राप्तिके लिये हमें विशेषरूपसे इन पदार्थोंकी आवश्यकता है-(१) सादा भोजन, (२) स्वच्छ वायु और पर्याप्त प्रकाश, (३) प्रसन्नता, (४) सदाचार, (५) व्यायाम।
भोजनके पदार्थ ताजे और निर्दोष होने चाहिये। उनके बनानेमें पूर्ण रुचि और स्नेह का प्रयोग करना चाहिये। भोजन का उपयोगी होना मिर्च-मसालों पर उतना निर्भर नहीं, जितना बनाने और तैयार करने पर निर्भर है। यदि विधिपूर्वक बनाया जाय तो भोजन उत्तम बनता है और पेटभर खाया जा सकता है। शाकभाजी, हरी तरकारियाँ हमारे स्वास्थ्यको घी-मक्खनसे कहीं अधिक लाभ पहुँचाती है। धनी लोग स्वादिष्ट होनेके कारण इतना खा जाते है कि उनकी पाचन-शक्ति ही खराब हो जाती है। अधिक भोजन रोगोंको बढ़ानेवाला, आयुको घटानेवाला, नरक पहुँचानेवाला और निन्दित कार्य करानेवाला है। गरीब व्यक्ति साधारणतः कम खायगा, धीरे-धीरे खायगा और शान्तिसे खायगा,' जिससे उसकी प्राणशक्ति बढ़ेगी। सच बात तो यह है-
आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ हवा स्मृति। स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः। (छान्दोग्य० ७। २६।२)
अर्थात् आहारकी शुद्धिसे सत्त्वकी शुद्धि होती है, सत्त्व-शुद्धिसे बुद्धि निर्मल और निश्चयात्मिका बन जाती है, फिर पवित्र तथा निश्चयात्मिका बुद्धिसे मुक्ति भी सुलभता से प्राप्त होती है। सुख और स्वास्थके लिये नित्य नियमित समय पर खूब चबा-चबाकर शान्तिपूर्वक सात्त्विक अल्पाहार किया करें तो बिना रुपयेके आपको शक्ति मिलेगी।
हमारे जीवनमें दूसरी आवश्यक वस्तुएँ है-स्वच्छ वायु और पर्याप्त प्रकाश। गंदी वायुसे बीमारियोंके कीटाणु हमारे शरीरमें प्रवेश कर हमारे स्वास्थ्यको बिगाड़ डालते है। शहरोंमें प्रायः नब्बे प्रतिशत व्यक्ति ऐसे अँधेरे घरोंमें रहते है, जहाँ न साफ हवा आती है न रोशनी। आरोग्य, बल तथा उत्तम पाचन-शक्ति चाहनेवाले मनुष्यको घरमें ताजी तथा शुद्ध हवा, जितनी ज्यादा हो सके आने देनी चाहिये, जहाँ तक हो सके जंगलकी खुली हवामें समय बिताना चाहिये। अपने सोने तथा बैठनेके कमरेमें हवाको प्रवेश करनेकी ऐसी व्यवस्था कर देनी चाहिये कि दूषित हवामें साँस न लेना पड़े। प्रकृतिने मनुष्यको हवाका प्राणी बनाया है, न कि घरमें बँधा हुआ दिनोंको धक्के देनेवाला जानवर। याद रखिये-जिस घरमें सूर्यका प्रकाश और धूप नहीं पहुँचती, वहीं डाक्टर और वैद्यराज पधारा करते है। धूपकी किरणें लाखों डाक्टरोंसे अधिक उपयोगी है। गरीबलोग भी इन्हें जितना चाहे ले सकते है। मनुष्यको इस बातका गर्व होना चाहिये कि उसका घर हवादार स्वास्थ्यवर्द्धक है और उसमें पर्याप्त प्रकाश आता है।
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