गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
अन्तर्मुखी रहना ही श्रेष्ठ है
सुखका केन्द्र जितना ही बाह्य वस्तुओंमें माना जायगा, उतना ही आत्माको क्लेश होगा। बाह्य वस्तुएँ तो सतत परिवर्तनशील हैं। इनका परिवर्तन आवश्यक है। इस परिवर्तनके आते ही तुम्हारा सुख-स्वप्न विनष्ट हो जायगा। मकान, वस्त्र, भोगकी नाना वस्तुएँ भोजन, वासना-तृप्तिके उपकरण निरन्तर परिवर्तनको प्राप्त हो रहे हैं। उनमें अपने सुखकी केन्द्रित कर देना; या यह मान लेना कि हमारा सुख इन्हींकी उपस्थिति पर निर्भर है, अज्ञान और अन्धकारमय दृष्टिकोण है।
किसी व्यक्ति विशेष में तुम्हारा सुख केन्द्रित नहीं रह सकता। उस व्यक्ति का तुम्हारे प्रति व्यवहार कभी एक-सा नहीं रह सकता। व्यक्ति हाड़-मांसका पुतला है-क्षण-क्षण परिवर्तन होनेवाला, एक पलमें अच्छा, दूसरे पलमें नाराज होनेवाला, हवाके झोंकेके समान अस्थायी। जबतक तुम लोगोंके स्वार्थकी पूर्ति करते हो, उनका लाभ करते हो, उन्हें तुमसे चार पैसे मिलनेकी आशा है, तबतक वे तुम्हें पूछते हैं, हँसते-बोलते हैं, अपने सम्बन्ध रखते हैं। जिस दिन उनके स्वार्थमें धक्का लगेगा, उसी दिन वे तुमसे रुष्ट हो जायँगे, तुम्हारा सुख-स्वप्न नष्ट हो जायगा।
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- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
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- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
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- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
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