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उपासना एवं आरती >> भजनामृत

भजनामृत

सुनील जोगी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6005
आईएसबीएन :81-288-1736-1

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प्रस्तुत है भजनामृत....

Jogi Bhajnamrit

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


रे मन ! हरि का सुमिरन कर ले।
पाप-गठरिया हल्की कर के
पुण्य-गगरिया भर ले।
लोभ-मोह, छल, दंभ भुलाकर
जीवन बीच सुधर ले।
दुष्कर्मों की धूल झाड़कर
मूरख जरा संवर ले।
गहरी नदिया भंवर भरी है
सत के घाट उतर ले।
हरि सुमिरन में ध्यान लगे ले
‘जोगी’ भव से तर ले।


भजनामृत में सिर्फ काव्य पंक्तियां नहीं वरन् आत्मा की असीम शांति निहित है।


शारदे, माँ शारदे !



शारदे, माँ शारदे !
भाव दे, नव छन्द दे, नव ताल दे
अर्चना के, वन्दना के थाल दे
कल्पना को नित श्रृंगार दे।
शारदे, माँ शारदे !

फूल महकाएँ चमन में प्रीति के
सुर झलक जाए, सभी संगीत के
घुंघरुओं को प्यास से झंकार दे।
शारदे, माँ शारदे !

दूर कर दे तिमिर को, अज्ञान को
प्रबल कर दे साधना को, ध्यान को
काट दे क्लेश, वो तलवार दे।
शारदे, माँ शारदे !


भजन-साहित्य की अनुपम उपलब्धि



‘एक तारा बोले’ की श्रृंखला की अगली कड़ी ‘जोगी-भजनामृत’ भजन साहित्य की एक अनुपम उपलब्धि है। साहित्य जगत् के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र श्री जोगी की पैठ एवं पैनी दृष्टि न केवल व्यंग्य-विधा में है, वरन् अध्यात्म की भजन-गंगा में भी उतनी ही गहराई से वे सुधी-पाठकों को गोते लगाने को विवश कर देते हैं।

उनकी भावांजलि उनके भजनों में भक्ति की उस चरम सीमा को लांघती परिलक्षित होती है, जिसके आगे राह नहीं।

‘जिन खोजा तिन पाइयां’ की परंपरा में संवेदना की, श्रद्धा की अभिव्यक्तियों का पर्याय है। भावप्रवण हृदय स्पर्शी शैली में रचनाकार की सूक्ष्मातिसूक्ष्म, अनिर्वचनीय भावाभीत भावनाओं की काव्यांजलि एक अमृत कलश के रूप में है। जिज्ञासुओं के लिए वह संजीवनी स्वरूप है। तरुण कवि ने अपने तरुण भावों को जिस विशिष्ट शैली में पिरोया है, वह अपने आप में अनूठी है तथा मील का पत्थर है।

हमारी अशेष मंगलकामनाएँ इनकी काव्य-यात्रा में चिरंतन सत्य की उपलब्धि कराने में सहायक होंगी, तो उसे मैं उपलब्धि मानूंगा।

मीरा, सूरदास और कबीर की परपंरा के वाहक के रूप में उस अनन्त सत्ता के प्रति आत्म-निवेदन जोगी जी की कलम में प्रभु की अहेसु की कृपा के रूप में पल्लवित, पुष्पित और फलित हो, यही कामना है।


जगद्गुरु स्वामी प्रज्ञानंदजी महाराज


वर दे, ऐसा वर दे !



हंस वाहिनी, मातु शारदे
वर दे ! ऐसा वर दे !!
कलम करे कल्याण जगत का
ऐसी बुद्धि प्रखर दे।
वर दे, ऐसा वर दे ।।

शब्द-साधना ना हो विचलित
सृजन करें हम पल-पल नित-नित
जीवन का हर क्षण हो पुलकित
वो आभा भर दे।
वर दे, ऐसा वर दे ।।

भाव जगे मन में नवनूतन
जगमग हो जाए अन्तर्मन
वाणी पर वारूं तन, मन, धन
मधुरिम स्वर कर दे।
वर दे, ऐसा वर दे ।।

वाणी को निर्बन्ध बना दे
टूटे ना वो छन्द बना दे
मन ऐसा स्वच्छन्द बना दे
विहगों से पर दे।
वर दे, ऐसा वर दे ।।


राम-वन्दना



राम-चरण की शरण



भज ले मूरख राम का नाम
राम-चरण की शरण गये बिन
बने न तेरा काम
भज ले............।।

जपति निरन्तर नर, मुनि, ध्यानी
प्रभु-स्तुति सुखकर, कल्यानी
बिन आराधे प्रभु पद-पंकज
मिल न सके विश्राम।
भज ले............।।

पद-रज परस अहिल्या तारे
ध्यावत प्रभु गजराज उबारे
शबरी, ध्रुव, प्रह्लाद सभी ने
पाया प्रभु का धाम।
भज ले............।।

भजन बिना भव-बन्ध न टूटे
राम बिना कलि-फन्द न छूटे
घट-घट वाली अविनाशी को
‘जोगी’ कर परनाम।
भज ले............।।


श्रीराम का नाम



श्रीराम का नाम भजे रहना।
निरबल के सहायक, स्वामी सखा
रघुनाथ का नाम जपे रहना।
श्रीराम का नाम............।।

किरपा करिहैं करुणा निधान
जग के सब ताप सहे रहना।।
पाहुन ते नारी करि डारी।।
शबरी के बेर बने रहना।।
सब बिगरे काज बनावत हैं।
तुम उनके काज किए रहना।

रघुनन्दन, दशरथ नन्दन को
सियजू को प्रणाम किए रहना।।
भवसागर पार लगावत हैं।
‘जोगी’ दोउ चरन गहे रहना।।
श्रीराम का नाम जपे रहना।।



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