विविध >> शिष्टाचार शिष्टाचारमहेश शर्मा
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प्रस्तुत है पुस्तक शिष्टाचार ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
शिष्ट+आचार= शिष्टाचार- अर्थात विनम्रतापूर्ण एवं शालीनता पूर्ण आचरण
शिष्टाचार्य वह अभूषण है जो मनुष्य को आदर व सम्मान दिलाता है शिष्टाचार्य
ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है अन्यथा अशिष्ट मनुष्य तो पशु की श्रेणी में
गिना जाता है।
शिष्टाचारका हमारे जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है कहने को तो शिष्टाचार्य की बातें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। व्यक्ति अपने शिष्टआचरण से सबका स्नेह और आदर पाता है। मानव होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को शिष्टाचार का आभूषण अवश्य धारण करना चाहिए।
विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में शिष्टाचार के विविध पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डाला है। इसमें घर में शिष्टाचार, मित्रों से शिष्टाचार, आस-पड़ोस में शिष्टाचार, उत्सव-समारोह में शिष्टाचार, खान-पान एवं मेजबानी के समय शिष्टाचार आदि अनेक शीर्षकों के माध्यम से विषय को स्पष्टता के साथ समझाया गया है।
आशा है, पाठकगण इस उपयोगी और प्रेरक पुस्तक का अध्ययन कर शिष्टाचार की आवश्यकता को समझकर, उसका अनुकरण व अनुसरण कर अपने जीवन को सुखमय एवं व्यक्तित्व को सफल-सार्थक बना सकेंगे।
शिष्टाचारका हमारे जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है कहने को तो शिष्टाचार्य की बातें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। व्यक्ति अपने शिष्टआचरण से सबका स्नेह और आदर पाता है। मानव होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को शिष्टाचार का आभूषण अवश्य धारण करना चाहिए।
विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में शिष्टाचार के विविध पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डाला है। इसमें घर में शिष्टाचार, मित्रों से शिष्टाचार, आस-पड़ोस में शिष्टाचार, उत्सव-समारोह में शिष्टाचार, खान-पान एवं मेजबानी के समय शिष्टाचार आदि अनेक शीर्षकों के माध्यम से विषय को स्पष्टता के साथ समझाया गया है।
आशा है, पाठकगण इस उपयोगी और प्रेरक पुस्तक का अध्ययन कर शिष्टाचार की आवश्यकता को समझकर, उसका अनुकरण व अनुसरण कर अपने जीवन को सुखमय एवं व्यक्तित्व को सफल-सार्थक बना सकेंगे।
अपनी बात
शिष्ट+आचार अर्थात् शिष्टाचार अथवा यह कहें कि शिष्ट आचार करना शिष्टाचार
है, जिसमें मनुष्य का व्यक्तित्व छिपा होता है। शिष्टाचार मनुष्य को
मनुष्य कहलाने योग्य बनाता है, अन्यथा अशिष्ट मनुष्य तो
पशु–तुल्य समझा जाता है।
शिष्टाचार वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर्श और प्रेरणास्रोत बनाता है। यदि अशिष्टों की भीड़ में एक भी शिष्टाचारी है तो वह अपना मुंह खोलते ही अलग पहचान में आ जाएगा और वह अकेला ही अन्य को भी शिष्टाचारी बना सकता है।
शिष्टाचार से ही मनुष्य के जीवन में प्रतिष्ठा एवं पहचान मिलती है और वह भीड़ में भी अलग नजर आता है।
शिष्टाचार का जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपका मुंह खोलना ही आपके पूरे व्यक्तित्व की झलक प्रस्तुत कर देता है। सामने वाला समझ जाता है कि आप क्या हैं ? जिस प्रकार ‘मान का पान’ ही महत्त्वपूर्ण होता है, ठीक उसी प्रकार हम सब शिष्टाचार जैसे अनमोल रत्न से दूर क्यों रहें ?
कहने को तो शिष्टाचार की बातें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। जब कोई मनुष्य शिष्टाचार रूपी आभूषण को धारण करता है तब वह एक महान व्यक्ति के रूप में सबके लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है। ये छोटी-छोटी बातें जीवन भर साथ देती हैं।
लोग अमरत्व की ओर भागते हैं और सोचते हैं कि वे नहीं मरेंगे, उन्होंने अमरत्व प्राप्त कर लिया है। क्या धन संपत्ति आदि जोड़ना अमरत्व है ? नहीं, कुछ भी साथ नहीं जाता। उसका शिष्टाचार ही उसके बाद लोगों को याद रहता है और अमर बनाता है।
इस पुस्तक में अनमोल रत्न रूपी शिष्टाचार का खजाना भरा हुआ है। इसका लाभ उठाएँ। इन रत्नों को स्वयं धारण करें और दूसरों को भी करवाएँ, तभी हमारा यह प्रयास सार्थक होगा।
शिष्टाचार वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर्श और प्रेरणास्रोत बनाता है। यदि अशिष्टों की भीड़ में एक भी शिष्टाचारी है तो वह अपना मुंह खोलते ही अलग पहचान में आ जाएगा और वह अकेला ही अन्य को भी शिष्टाचारी बना सकता है।
शिष्टाचार से ही मनुष्य के जीवन में प्रतिष्ठा एवं पहचान मिलती है और वह भीड़ में भी अलग नजर आता है।
शिष्टाचार का जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपका मुंह खोलना ही आपके पूरे व्यक्तित्व की झलक प्रस्तुत कर देता है। सामने वाला समझ जाता है कि आप क्या हैं ? जिस प्रकार ‘मान का पान’ ही महत्त्वपूर्ण होता है, ठीक उसी प्रकार हम सब शिष्टाचार जैसे अनमोल रत्न से दूर क्यों रहें ?
कहने को तो शिष्टाचार की बातें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। जब कोई मनुष्य शिष्टाचार रूपी आभूषण को धारण करता है तब वह एक महान व्यक्ति के रूप में सबके लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है। ये छोटी-छोटी बातें जीवन भर साथ देती हैं।
लोग अमरत्व की ओर भागते हैं और सोचते हैं कि वे नहीं मरेंगे, उन्होंने अमरत्व प्राप्त कर लिया है। क्या धन संपत्ति आदि जोड़ना अमरत्व है ? नहीं, कुछ भी साथ नहीं जाता। उसका शिष्टाचार ही उसके बाद लोगों को याद रहता है और अमर बनाता है।
इस पुस्तक में अनमोल रत्न रूपी शिष्टाचार का खजाना भरा हुआ है। इसका लाभ उठाएँ। इन रत्नों को स्वयं धारण करें और दूसरों को भी करवाएँ, तभी हमारा यह प्रयास सार्थक होगा।
महेश शर्मा
1 शिष्टाचारः एक परिचय
‘शिष्टाचार दर्पण के समान है, जिसमें मनुष्य अपना प्रतिबिंब
देखता है।’
गेटे
शिष्टाचार मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। शिष्टाचार ही मनुष्य की
एक अलग पहचान करवाता है। जिस मनुष्य में शिष्टाचार नहीं है, वह भीड़
में जन्म लेता है और उसी में कहीं खो जाता है। लेकिन एक
शिष्टाचारी
मनुष्य भीड़ में भी अलग दिखाई देता है जैसे पत्थरों में हीरा।
शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है- चाहे वह गुरुजन के समक्ष हो, परिवार में हो, समाज में हो, व्यवसाय में हो अथवा अपनी मित्र-मण्डली में।
अगर कोई शिक्षित हो, लेकिन उसमें शिष्टाचार नहीं है तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है। क्योंकि जब तक वह समाज में लोगों का सम्मान नहीं करेगा, उसके समक्ष शिष्टता का व्यवहार नहीं करेगा तो लोग उसे पढ़ा-लिखा मूर्ख ही समझेंगे; जबकि एक अनपढ़ व्यक्ति- यदि उसमें शिष्टाचार का गुण है तो- उस पढ़े-लिखे व्यक्ति से अच्छा होगा, जो पढ़ा-लिखा होकर भी शिष्टाचारी नहीं है।
शिक्षा मनुष्य को यथेष्ट मार्ग पर अग्रसर करती है, लेकिन यदि मनुष्य पढ़ ले और शिक्षा के अर्थ को न समझे तो व्यर्थ है।
एक अनजान व्यक्ति एक परिवार में अपने शिष्ट व्यवहार से वह स्थान पा लेता है, जो परिवार के घनिष्ठ संबंधी भी नहीं पा सकते हैं। परिवार के सदस्य का अशिष्ट आचरण उसे अपने परिवार से तो दूर करता ही है, साथ ही वह समाज से भी दूर होता जाता है। जबकि एक अनजान अधिक करीबी बन जाता है।
शिष्ट व्यवहार मनुष्य को ऊँचाइयों तक ले जाता है। शिष्ट व्यवहार के कारण मनुष्य का कठिन-से-कठिन कार्य भी आसान हो जाता है। शिष्टाचारी चाहे कार्यालय में हो अथवा अन्यत्र कहीं, शीघ्र ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाता हैं। लोग भी उससे बात करने तथा मित्रता करने आदि में रुचि दिखाते हैं। एक शिष्टाचारी मनुष्य अपने साथ के अनेक लोगों को अपने शिष्टाचार से शिष्टाचारी बना देता शिष्टाचार वह ब्रह्मास्त्र है, जो अँधेरे में भी अचूक वार करता है- अर्थात् शिष्टाचार अँधेरे में भी आशा की किरण दिखाने वाला मार्ग है।
किस समय, कहाँ पर, किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए- उसके अपने-अपने ढंग होते हैं। हम जिस समाज में रहते हैं हमें अपने शिष्टाचार को उसी समाज में अपनाना पड़ता है, क्योंकि इस समाज में हम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य आपस में जुड़ होते हैं ठीक इसी प्रकार पूरे समाज में, देश में- हम जहाँ भी रहते हैं, एक विस्तृत परिवार का रूप होता है और वहाँ भी हम एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। एक बालक के लिए शिष्टाचार की शुरूआत उसी समय हो जाती है जब उसकी माँ उसे उचित कार्य करने के लिये प्रेरित करती है। जब वह बड़ा होकर समाज में अपने कदम रखता है तो उसकी शिक्षा प्रारंभ होती है। यहाँ से उसे शिष्टाचार का उचित ज्ञान प्राप्त होता है और यही शिष्टाचार जीवन के अंतिम क्षणों तक उसके साथ रहता है। यहीं से एक बालक के कोमल मन पर अच्छे-बुरे का प्रभाव आरंभ होता है। अब वह किस प्रकार का वातावरण प्राप्त करता है और किस वातावरण में स्वयं को किस प्रकार से ढालता है- वही उसको इस समाज में उचित-अनुचित की प्राप्ति करवाता है।
समाज में कहाँ, कब, कैसा शिष्टाचार किया जाना चाहिए, आइए इसपर एक दृष्टि डालें-
1. विद्यार्थी का शिक्षकों और गुरुजनों के प्रति शिष्टाचार,
2. घर में शिष्टाचार,
3. मित्रों से शिष्टाचार ,
4. आस-पड़ोस संबंधी शिष्टाचार ,
5. उत्सव सम्बन्धी शिष्टाचार,
6 समारोह संबंधी शिष्टाचार,
7 भोज इत्यादि संबंधी शिष्टाचार,
8. खान-पान संबंधी शिष्टाचार,
9. मेजबान एवं मेहमान संबंधी शिष्टाचार,
10. परिचय संबंधी शिष्टाचार,
11. बातचीत संबंधी शिष्टाचार,
12. लेखन आदि संबंधी शिष्टाचार,
13. अभिवादन संबंधी शिष्टाचार,
शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है- चाहे वह गुरुजन के समक्ष हो, परिवार में हो, समाज में हो, व्यवसाय में हो अथवा अपनी मित्र-मण्डली में।
अगर कोई शिक्षित हो, लेकिन उसमें शिष्टाचार नहीं है तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है। क्योंकि जब तक वह समाज में लोगों का सम्मान नहीं करेगा, उसके समक्ष शिष्टता का व्यवहार नहीं करेगा तो लोग उसे पढ़ा-लिखा मूर्ख ही समझेंगे; जबकि एक अनपढ़ व्यक्ति- यदि उसमें शिष्टाचार का गुण है तो- उस पढ़े-लिखे व्यक्ति से अच्छा होगा, जो पढ़ा-लिखा होकर भी शिष्टाचारी नहीं है।
शिक्षा मनुष्य को यथेष्ट मार्ग पर अग्रसर करती है, लेकिन यदि मनुष्य पढ़ ले और शिक्षा के अर्थ को न समझे तो व्यर्थ है।
एक अनजान व्यक्ति एक परिवार में अपने शिष्ट व्यवहार से वह स्थान पा लेता है, जो परिवार के घनिष्ठ संबंधी भी नहीं पा सकते हैं। परिवार के सदस्य का अशिष्ट आचरण उसे अपने परिवार से तो दूर करता ही है, साथ ही वह समाज से भी दूर होता जाता है। जबकि एक अनजान अधिक करीबी बन जाता है।
शिष्ट व्यवहार मनुष्य को ऊँचाइयों तक ले जाता है। शिष्ट व्यवहार के कारण मनुष्य का कठिन-से-कठिन कार्य भी आसान हो जाता है। शिष्टाचारी चाहे कार्यालय में हो अथवा अन्यत्र कहीं, शीघ्र ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाता हैं। लोग भी उससे बात करने तथा मित्रता करने आदि में रुचि दिखाते हैं। एक शिष्टाचारी मनुष्य अपने साथ के अनेक लोगों को अपने शिष्टाचार से शिष्टाचारी बना देता शिष्टाचार वह ब्रह्मास्त्र है, जो अँधेरे में भी अचूक वार करता है- अर्थात् शिष्टाचार अँधेरे में भी आशा की किरण दिखाने वाला मार्ग है।
किस समय, कहाँ पर, किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए- उसके अपने-अपने ढंग होते हैं। हम जिस समाज में रहते हैं हमें अपने शिष्टाचार को उसी समाज में अपनाना पड़ता है, क्योंकि इस समाज में हम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य आपस में जुड़ होते हैं ठीक इसी प्रकार पूरे समाज में, देश में- हम जहाँ भी रहते हैं, एक विस्तृत परिवार का रूप होता है और वहाँ भी हम एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। एक बालक के लिए शिष्टाचार की शुरूआत उसी समय हो जाती है जब उसकी माँ उसे उचित कार्य करने के लिये प्रेरित करती है। जब वह बड़ा होकर समाज में अपने कदम रखता है तो उसकी शिक्षा प्रारंभ होती है। यहाँ से उसे शिष्टाचार का उचित ज्ञान प्राप्त होता है और यही शिष्टाचार जीवन के अंतिम क्षणों तक उसके साथ रहता है। यहीं से एक बालक के कोमल मन पर अच्छे-बुरे का प्रभाव आरंभ होता है। अब वह किस प्रकार का वातावरण प्राप्त करता है और किस वातावरण में स्वयं को किस प्रकार से ढालता है- वही उसको इस समाज में उचित-अनुचित की प्राप्ति करवाता है।
समाज में कहाँ, कब, कैसा शिष्टाचार किया जाना चाहिए, आइए इसपर एक दृष्टि डालें-
1. विद्यार्थी का शिक्षकों और गुरुजनों के प्रति शिष्टाचार,
2. घर में शिष्टाचार,
3. मित्रों से शिष्टाचार ,
4. आस-पड़ोस संबंधी शिष्टाचार ,
5. उत्सव सम्बन्धी शिष्टाचार,
6 समारोह संबंधी शिष्टाचार,
7 भोज इत्यादि संबंधी शिष्टाचार,
8. खान-पान संबंधी शिष्टाचार,
9. मेजबान एवं मेहमान संबंधी शिष्टाचार,
10. परिचय संबंधी शिष्टाचार,
11. बातचीत संबंधी शिष्टाचार,
12. लेखन आदि संबंधी शिष्टाचार,
13. अभिवादन संबंधी शिष्टाचार,
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