गजलें और शायरी >> हर तस्वीर अधूरी हर तस्वीर अधूरीमहताब हैदर नकवी
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प्रस्तुत हैं गजलें ....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
समकालीन उर्दू शायरी में आठवीं दहाई के दौरान जिन शायरों ने अपनी
उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करायी, उनमें महताब हैदर नक़वी का महत्वपूर्ण
स्थान है।
एक सजग और संवेदशील शायर के रूप में प्रतिष्ठित महताब हैदर नक़वी के शे’रो में मौजूदा दौर की आहट स्पष्ट सुनायी देती है। इसकी सहज अभिव्यक्ति किसी भी सहृदय पाठक को अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता रखती है।
एक सजग और संवेदशील शायर के रूप में प्रतिष्ठित महताब हैदर नक़वी के शे’रो में मौजूदा दौर की आहट स्पष्ट सुनायी देती है। इसकी सहज अभिव्यक्ति किसी भी सहृदय पाठक को अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता रखती है।
वही सब देखने के वास्ते आंखें है बाक़ी
कि जिनके बाद बीनाई का बिल्कुल ख़ातमा है।
कि जिनके बाद बीनाई का बिल्कुल ख़ातमा है।
‘हर तस्वीर अधूरी’ महताब हैदर नकवी का देवनागरी में
प्रकाशित
होने वाला पहला संकलन है, जिनकी ग़ज़लें आज के बदले हुए जीवन मूल्यों को
बड़ी मार्मिकता के साथ रेखांकित करती हैं।
सुरेश कुमार
समकालीन उर्दू शायरी में आठवीं दहाई के दौरान जिन शायरों ने अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करायी, उनमें महताब हैदर नक़वी का महत्वपूर्ण स्थान है।
यही नहीं उर्दू ग़ज़ल में नये प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश करने वालों में इसका नाम बड़े भरोशे के साथ लिया जाता है।
महताब हैदर नक़वी की ग़ज़लगो पीढ़ी के सामने जो रास्ता था, वह नासिर काज़मी का बनाया हुआ था। जिसे अहमद मुश्ताक को लेकर शहरयार तक ने और प्रशस्त किया। इस पीढ़ी के सामने यह चुनौती भी थी और दुविधा भी कि वह इसी रास्ते पर चलते हुए और सुगम बनाये या अपने लिए नयी पगडण्डियाँ तलाश करें। निश्चित रूप से इसी रास्ते पर चलते हुए नये रास्तों का तलाश या उनका निर्माण इस पीढ़ी का अभीष्ट है, जो कुछ दूर चलने के बाद छोटी-छोटी और पतली पगडण्डियों के रूप में इनकी शायरी में नजर आता है।
नक़वी की ग़ज़लों में मौजूदा दौर की आहट स्पष्ट सुनायी देती है। जिस दौर में हम जी रहे हैं, वह न सिर्फ मानव जाति के लिये बल्कि सम्पूर्ण जीवों और प्रकृति के लिये प्रतिकूलताओं का दौर है। एक संवेदनशील शायर जिसे लेकर चिन्तित भी है और आशंकित भी।
सुरेश कुमार
समकालीन उर्दू शायरी में आठवीं दहाई के दौरान जिन शायरों ने अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करायी, उनमें महताब हैदर नक़वी का महत्वपूर्ण स्थान है।
यही नहीं उर्दू ग़ज़ल में नये प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश करने वालों में इसका नाम बड़े भरोशे के साथ लिया जाता है।
महताब हैदर नक़वी की ग़ज़लगो पीढ़ी के सामने जो रास्ता था, वह नासिर काज़मी का बनाया हुआ था। जिसे अहमद मुश्ताक को लेकर शहरयार तक ने और प्रशस्त किया। इस पीढ़ी के सामने यह चुनौती भी थी और दुविधा भी कि वह इसी रास्ते पर चलते हुए और सुगम बनाये या अपने लिए नयी पगडण्डियाँ तलाश करें। निश्चित रूप से इसी रास्ते पर चलते हुए नये रास्तों का तलाश या उनका निर्माण इस पीढ़ी का अभीष्ट है, जो कुछ दूर चलने के बाद छोटी-छोटी और पतली पगडण्डियों के रूप में इनकी शायरी में नजर आता है।
नक़वी की ग़ज़लों में मौजूदा दौर की आहट स्पष्ट सुनायी देती है। जिस दौर में हम जी रहे हैं, वह न सिर्फ मानव जाति के लिये बल्कि सम्पूर्ण जीवों और प्रकृति के लिये प्रतिकूलताओं का दौर है। एक संवेदनशील शायर जिसे लेकर चिन्तित भी है और आशंकित भी।
हुजूम बढ़ता चला जा रहा है चारों तरफ़
भटक न जाएँ कहीं लोग आने-जाने में
वही सब देखने के वास्ते आँखें हैं बाक़ी
कि जिनके बाद बीनाई का बिल्कुल ख़ातमा है।
भटक न जाएँ कहीं लोग आने-जाने में
वही सब देखने के वास्ते आँखें हैं बाक़ी
कि जिनके बाद बीनाई का बिल्कुल ख़ातमा है।
इस पीढ़ी को विरासत में जो मंजर मिला है, उसमें इसे कोई रंग मंच नजर नहीं
आता। इसे पता है कि इसके सामने भारी चुनौतियाँ हैं।
हमारी नस्ल ने ऐसे में आँख खोली है
जहाँ पे कुछ नहीं बेरंग मंज़रों के सिवा
जहाँ पे कुछ नहीं बेरंग मंज़रों के सिवा
नक़वी की शायरी में आज के इन्सान की बेबसी भी साफ़ नज़र आती है।
हर बार यही सोच लौट आये है हम लोग
पानी में उतर जाते जो गिरदाब न होते
पानी में उतर जाते जो गिरदाब न होते
और फिर यह संतोष भी, कि ऐसी विषम परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को बचाये
रखना क्या कम बड़ी बात है।
क्या कम है हम लोग अभी तक जिन्दा है
यूँ तो दरिया ने कितनी तुग़ियानी की
यूँ तो दरिया ने कितनी तुग़ियानी की
लेकिन सिर्फ़ ऐसा ही नहीं है, जिंदगी को बेहतर बनाने के लिये जिन ख्वाबों
की ज़रूरत होती है, उन्हें देखने के लिए नक़वी एक वातावरण तैयार करने में
लगे हैं। महज़ ख्वाब देखना उनकी फ़ितरत में नहीं है, व्यावहारिक धरातल पर
वे उन्हें हकीकत में भी बदलना चाहते हैं। और उनकी यह कोशिश ग़ज़ल जैसी
सर्वप्रिय और समृद्ध विद्या में भी संभावनाओं के नये द्वार खोलने में सफल
होगी ऐसा विश्वास है।
ऐ हवा ! मैं चुन रहा हूँ रेत के ज़र्रे अभी
मेरी आँखों में कोई भी ख्वाब का मंज़र नहीं
मेरी आँखों में कोई भी ख्वाब का मंज़र नहीं
महताब हैदर नक़वी पिछले तीन दशकों से शे’र रहे हैं। इनके दो
काव्य-संग्रह ‘शब आहंग’ (1988) और
‘मावरा-ए-सु़खन’ (2006) उर्दू में प्रकाशित हो चुके
हैं।
हिन्दी की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी ग़ज़ले सम्मान के साथ
प्रकाशित होती रही हैं। हर तस्वीर अधूरी देवनागरी में प्रकाशित होने वाला
इनका पहला ग़ज़ल संग्रह है। मुझे यकीन है कि हिन्दी कविता के पाठकों को ये
ग़ज़लें बेहद पसन्द आयेंगी और समकालीन उर्दू शायरी श्रृंखला के अन्तर्गत
प्रकाशित अन्य संकलनों की तरह वे इस कृति का भी भरपूर स्वागत करेंगे।
1
उसे भुलाये हुए मुझको इक ज़माना हुआ
कि अब तमाम मेरे दर्द का फ़साना हुआ
हुआ बदन तेरा दुश्मन, अदू1 हुई मेरी रूह
मैं किसके दाम2 में आया हवस निशाना हुआ
यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ
कि जिसकी सुबह महकती थी, शाम रोशन थी
सुना है वो दर-ए-दौलत ग़रीब-ख़ाना हुआ
वो लोग खुश हैं कि वाबस्ता-ए-ज़माना3 हैं
मैं मुतमइन4 हूँ कि दर इसका मुझ पे वा5 न हुआ
कि अब तमाम मेरे दर्द का फ़साना हुआ
हुआ बदन तेरा दुश्मन, अदू1 हुई मेरी रूह
मैं किसके दाम2 में आया हवस निशाना हुआ
यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ
कि जिसकी सुबह महकती थी, शाम रोशन थी
सुना है वो दर-ए-दौलत ग़रीब-ख़ाना हुआ
वो लोग खुश हैं कि वाबस्ता-ए-ज़माना3 हैं
मैं मुतमइन4 हूँ कि दर इसका मुझ पे वा5 न हुआ
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1. शत्रु 2. जाल 3. युग से सम्बद्ध 4. संतुष्ट 5. खुला हुआ
1. शत्रु 2. जाल 3. युग से सम्बद्ध 4. संतुष्ट 5. खुला हुआ
2
सुबह की पहली किरन पर रात ने हमला किया
और मैं बैठा हुआ सारा समां देखा किया
ऐ हवा ! दुनिया में बस तू है बुलन्दइक़बाल1 है
तूने सारे शहर पे आसेब2 का साया किया
इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया
वस्ल3 की शब को दयार-ए-हिज्र4 तक सब छोड़
आए
काम अपने रतजगों ने ये बहुत अच्छा किया
सबको इस मंजर में अपनी बेहिसी पर फ़ख़ है
किसने तेरा सामना पागल हवा कितना किया
और मैं बैठा हुआ सारा समां देखा किया
ऐ हवा ! दुनिया में बस तू है बुलन्दइक़बाल1 है
तूने सारे शहर पे आसेब2 का साया किया
इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया
वस्ल3 की शब को दयार-ए-हिज्र4 तक सब छोड़
आए
काम अपने रतजगों ने ये बहुत अच्छा किया
सबको इस मंजर में अपनी बेहिसी पर फ़ख़ है
किसने तेरा सामना पागल हवा कितना किया
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1. तेजस्वी 2. प्रेत-बाधा 3. मिलन 4. विरह-स्थल
1. तेजस्वी 2. प्रेत-बाधा 3. मिलन 4. विरह-स्थल
3
मुख़्तसर-सी1 ज़िन्दगी में कितनी नादानी करे
इस नज़ारों को कोई देखे कि हैरानी करे
धूप में इन आबगीनों2 को लिए फिरता हूँ मैं
कोई साया मेरे ख़्वाबों की निगहबानी करे
रात ऐसी चाहिए माँगे जो दिनभर का हिसाब
ख़्वाब ऐसा हो जो इन आँखों में वीरानी करे
एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज़दा एक पेशानी3 करे
साहिलों पर मैं खड़ा हूँ तिश्नाकामों4 की तरह
कोई मौज-ए-आब5 मेरी आँख को पानी करे
इस नज़ारों को कोई देखे कि हैरानी करे
धूप में इन आबगीनों2 को लिए फिरता हूँ मैं
कोई साया मेरे ख़्वाबों की निगहबानी करे
रात ऐसी चाहिए माँगे जो दिनभर का हिसाब
ख़्वाब ऐसा हो जो इन आँखों में वीरानी करे
एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज़दा एक पेशानी3 करे
साहिलों पर मैं खड़ा हूँ तिश्नाकामों4 की तरह
कोई मौज-ए-आब5 मेरी आँख को पानी करे
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1. छोटी-सी 2. बहुत बारीक काँच की बोतलें 3. माथा 4. प्यासों 5. पानी की लहर
1. छोटी-सी 2. बहुत बारीक काँच की बोतलें 3. माथा 4. प्यासों 5. पानी की लहर
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