लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


खाने-पीने में भी सुधार करने की आवश्यकतास्पष्ट थी। घर में चाय-काफी को जगह मिल चुकी थी। बड़े भाई ने सोचा कि मेरे विलायत से लौटने से पहले घर में विलायत की कुछ हवा तो दाखिल हो ही जानीचाहिये। इसलिए चीनी मिट्टी के बरतन, चाय आदि जो चीजें पहले घर में केवल दवा के रुप में और 'सभ्य' मेंहमानों के लिए काम आती थी, वे सब के लिए बरतीजाने लगीं। ऐसे वातावरण में मैं अपने 'सुधार' लेकर पहुँचा। ओटमील पारिज (जई की लपसी) को घर में जगह मिली, चाय-काफी के बदले कोको शुरू हुआ। पर यहपरिवर्तन तो नाममात्र को ही था, चाय-काफी के साथ के साथ कोको और बढ़ गया। बूट-मोचे घर में घुस ही चुके थे। मैंने कोट-पतलून से घर को पुनीत किया !

इस तरह खर्च बढ़ा नवीनताये बढ़ी। घर पर सफेद हाथी बँध गया। पर यह खर्च लायाकहाँ से जाय? राजकोट में तुरन्त धन्धा शुरू करता हूँ, तो हँसी होती हैं।मेरे पास ज्ञान तो इतना भी न था कि राजकोट में पास हुए वकीस से मुकाबलेमें खड़ा हो सकूँ, तिस पर फीस उससे दस गुनी फीस लेने का दावा ! कौन मूर्खमुवक्किल मुझे काम देता? अथवा कोई ऐसा मूर्ख मिल भी जाये तो क्या मैं अपनेअज्ञान में घृष्टता और विश्वासघात की वृद्धि करके अपने उपर संसार का ऋण और बढ़ा लूँ?

मित्रों की सलाह यह रहीं कि मुझे कुछ समय के लिए बम्बई जाकर हाईकोर्ट की वकालत का अनुभव प्राप्त करना और हिन्दुस्तान के कानून काअध्ययन करना चाहियें और कोई मुकदमा मिल सके तो उसके लिए कोशिश करनी चाहिये। मैं बम्बई के लिए रवाना हुआ। वहाँ घर बसाया। रसोईया रखा। ब्राह्मणथा। मैंने उसे नौकर की तरह कभी रखा ही नहीं। यह ब्राह्मण नहाता था, परधोता नहीं था। उसकी धोती मैंली, जनेऊ मैंला। शास्त्र के अभ्यास से उसे कोईसरोकार नहीं। लेकिन अधिक अच्छा रसोईया कहाँ से लाता?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book