लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


इतने में मुझे ममीबाई कामुकदमा मिला। स्मॉल कॉज कोर्ट (छोटी अदालत) में जाना था। मुझसे कहा गया, 'दलाल को कमीशन देना पड़ेगा! ' मैंने साफ इनकार कर दिया।

'पर फौजदारी अदालत के सुप्रसिद्ध वकील श्री...., जो हर महीने तीन चार हजारकमाते हैं, भी कमीशन तो देते हैं।'

'मुझे कौन उनकी बराबरी करनी हैं? मुझको तो हर महीने 300 रुपये मिल जाये तोकाफी हैं। पिताजी को कौन इससे अधिक मिलते थे?'

'पर वह जमाना लद गया। बम्बई का खर्च बड़ा हैं। तुम्हें व्यवहार की दृष्टिसे भी सोचना चाहिये।'

मैं टस-से-मस न हुआ। कमीशन मैंने नहीं ही दिया। फिर भी ममीबाई का मुकदमा तोमुझे मिला। मुकदमा आसान था। मुझे ब्रीफ (मेहनताने) के रु. 30 मिले। मुकदमा एक दिन से ज्यादा चलने वाला न था।

मैंने पहली बार स्मॉल कॉज कोर्ट में प्रवेश किया। मैं प्रतिवादी की तरफ से था, इसलिए मुझे जिरह करनीथा। मैं खड़ा तो हुआ, पर पैर काँपने लगे। सिर चकराने लगा। मुझे ऐसा लगा,मानो अदालत घुम रही हैं। सवाल कुछ सुझते ही न थे। जज हँसा होगा। वकीलों कोतो मजा आया ही होगा। पर मेरी आँखो के सामने तो अंधेरा था, मैं देखता क्या?

मैं बैठ गया। दलाल से कहा, 'मुझसे यह मुकदमा नहीं चल सकेगा। आप पटेल कोसौपिये। मुझे दी हुई फीस वापस ले लीजिये।'

पटेल को उसी दिन के 51 रुपये देकर वकील किया गया। उनके लिए तो वह बच्चो केखेल था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book